72 साल की उम्र में चढ़ा पढ़ाई का ऐसा चस्का कि बैग लेकर पहुंच गए स्कूल

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सीखने की कोई उम्र नहीं होती और सपनों को पूरा करने के लिए भी वक्त नहीं देखा जाता। 72 साल के मुकुंद चारी कभी अंग्रेजी की वजह से अपना ग्रैजुएशन नहीं पूरा कर पाए थे। आज वह उसी इंग्लिश लिटरेचर में डिग्री के लिए दोबारा स्कूल की ओर चल पड़े हैं।

स्कूल में मुकुंद आठवीं से पढ़ाई शुरू कर रहे हैं

मुकुंद ने दोबारा स्कूल जाने का फैसला लिया है ताकि वह अपने इंग्लिश लिटरेचर में डिग्री हासिल करने का सपना सच कर सकें। मुंबई के सेंट जेवियर्स नाइट स्कूल में मुकुंद आठवीं से पढ़ाई शुरू कर रहे हैं।

घर आया और उदास होकर उस चैप्टर को वहीं बंद कर दिया

मुंबई की ग्रांट रोड निवासी मुकुंद सिक्यॉरिटी गार्ड के रूप में रिटायर हो चुके हैं। उन्होंने 1950 के दशक में मराठी मीडियम स्कूल से पढ़ाई की। टूटी-फूटी अंग्रेजी में मुकुंद बताते हैं, ’11वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं दक्षिणी मुंबई के एक कॉलेज में ऐडमिशन के लिए गया। मैं लिटरेचर पढ़ना चाहता था लेकिन मुझे बताया गया कि वहां शिक्षा इंग्लिश में दी जाएगी। मैं इंग्लिश में पढ़ने के लिए कॉन्फिडेंट नहीं था क्योंकि मेरी स्कूलिंग मराठी में हुई थी। मैं वापस घर आया और उदास होकर उस चैप्टर को वहीं बंद कर दिया।’

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अब वह अपने नए स्कूल में भाषा में पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इंग्लिश सीखने के लिए मुकुंद फिर से 8वीं में दाखिला लेने वाले थे लेकिन उसी दौरान उनके माता-पिता की मौत हो गई जिस वजह से उन्हें परिवार का खर्चा चलाने के लिए नौकरी करनी पड़ी। वह कहते हैं, ‘लेकिन एक चीज हमेशा मेरे दिमाग में बनी रही वह थी अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री। मैंने शेक्सपीयर को नहीं पढ़ा लेकिन सुना है कि उनकी रचनाएं महान हैं।’

मंदिर जाने के बजाय मैंने स्कूल जाना भी शुरू कर दिया

इस साल उन्होंने क्रॉफोर्ड बाजार में शाम को स्कूली बच्चों का एक समूह देखा जिसने उन्हें दोबारा स्कूल जाने का विचार दिया। वह कहते हैं, ‘मुझे अधूरा सा लगता है कि मैंने अपनी डिग्री भी नहीं ली है क्योंकि मैं इंग्लिश बोलने में सक्षम नहीं था। मैंने सोचा कि मेरे पास कुछ ही साल बचे हैं और मैं इनमें अपने सपने पूरे कर सकता हूं। अपने दोस्तों के साथ सिर्फ मंदिर जाने के बजाय मैंने स्कूल जाना भी शुरू कर दिया।’

मुकुंद के अध्यापकों का कहना है कि वह किसी भी दिन क्लास में बैठना नहीं भूलते। स्कूल हेड अजीत दवे का कहना है, ‘वह युवाओं की तरह ही काफी ऊर्जा से भरे हैं। यहां तक कि वह लिफ्ट के बजाय दूसरे बच्चों के साथ सीढ़ियां चढ़ते हैं।’साभारNBT

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