अखिलेश और जयंत को है बसपा सुप्रीमो की ‘हां’ का इंतजार

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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव सूबे में भाजपा के खिलाफ जीत दर्ज करने को किसी से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल के प्रभाव का लाभ भी लेने के प्रयास में हैं। आज लखनऊ में अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय लोकदल के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी से मुलाकात की। कैराना लोकसभा के साथ ही नूरपुर विधानसभा उपचुनाव में दोनों मिलकर मैदान में उतरेंगे। इन दोनों जगह पर प्रत्याशी की बाबत अब बसपा मुखिया मायावती से वार्ता के बाद आगे की रणनीति तय होगी।

मुखिया मायावती की रजामंदी का इंतजार है

उत्तर प्रदेश में कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में भाजपा की घेराबंदी करने को समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच एकजुटता की सहमति बनी लेकिन बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की रजामंदी का इंतजार है। इस पहल पर एक- दो दिन में असल तस्वीर स्पष्ट होने की उम्मीद है। उप चुनाव में गठबंधन की चाहत लेकर रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी कल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के आवास पर दोपहर पहुंचे।

2019 में भी गठबंधन बना रहेगा

दोपहर के भोजन पर दोनों नेताओं के बीच करीब तीन घंटे चली मुलाकात में मिलकर भाजपा को रोकने की एकराय बनी। मुलाकात को पूरी तरह गोपनीय रखा गया था, अन्य किसी नेता को साथ नहीं लिया गया। बैठक के बाद जयंत चौधरी ने बताया कि वार्ता सफल रही। भाजपा को हराने को एकजुट होकर लडऩे पर सहमति बनी है। वर्ष 2019 में भी गठबंधन बना रहेगा। रालोद से गठबंधन के सवाल पर बसपा के प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर ने कहा कि पार्टी सुप्रीमो मायावती ही इस संबंध में कोई फैसला करेंगी। फिलहाल वह कर्नाटक चुनाव में व्यस्त हैं।

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दोनों नेताओं के बीच चली वार्ता की अधिकृत जानकारी नहीं दी गयी। सूत्रों का कहना है कि कैराना सीट रालोद के लिए छोडऩे से इन्कार कर दिया। इससे रालोद द्वारा जयंत को साझा उम्मीदवार बनाकर चुनाव लड़ाने की तैयारियों को झटका लगा लेकिन नूरपुर सीट मिलने की उम्मीद रालोद समर्थक लगाए है। सपा नेताओं का कहना है कि कैराना में पिछले चुनाव परिणामों को देखते हुए रालोद की दावेदारी बेहद कमजोर है।

किरनपाल कश्यप का दावा भी मजबूत हुआ

कैराना सीट पर सपा अपना दांव बदल सकती है। सूत्रों का कहना है कि साझा उम्मीदवार के तौर पर गैर मुस्लिम को मैदान में उतारा जा सकता है। पूर्व सांसद तब्बसुम हसन को सपा उम्मीदवार के तौर पर प्रचारित किया जा रहा था लेकिन बदले हालात में पूर्व मंत्री किरनपाल कश्यप का दावा भी मजबूत हुआ। वहीं, नूरपुर विधानसभा सीट पर पूर्व विधायक नईमुलहसन की दावेदारी तगड़ी है। कैराना क्षेत्र से साझा प्रत्याशी गैर मुस्लिम रहेगा तो नूरपुर से मुसलमान को मौका देने की उम्मीद है।

…तो कांग्रेस कोई पेंच फंसा सकती है

कैराना व नूरपुर उपचुनाव को लेकर गठबंधन की जोड़तोड़ में कांग्रेस हाशिए पर है। स्थानीय नेता चुनाव लडऩे को उत्साहित नहीं और शीर्ष नेतृत्व से अपनी मंशा जाहिर कर चुके है। प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर का कहना है कि राहुल गांधी के कर्नाटक चुनाव में व्यस्त होने के कारण फैसला नहीं हो पाया है। उधर सूत्रों का कहना है कि कैराना को लेकर कांग्रेस गंभीर है। उपाध्यक्ष इमरान मसूद संकेत दे चुके हैं कि अगर जयंत चुनाव मैदान में उतरते हैं तो समर्थन को तैयार हैं। बता दे कि कांग्रेस की पांच में से तीन विधानसभा क्षेत्रों में स्थिति मजबूत है। सूत्रों का कहना है कि इमरान व हसन परिवार के बीच तनातनी छिपी नहीं है। सपा हसन परिवार से प्रत्याशी उतारती है तो कांग्रेस कोई पेंच फंसा सकती है।

अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती है

गोरखपुर तथा इलाहबाद के फूलपुर लोकसभा उप चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की मदद से जीत के बाद बेहद सपा ने दोनों सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारने का ऐलान पहले ही कर दिया है। माना जा रहा है कि कैराना लोकसभा सीट से पूर्व मंत्री किरनपाल कश्यप और नूरपुर विधानसभा सीट से नैमुल हसन को सपा अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती है। अब आरएलडी विपक्षी एकता को बनाए रखने के लिए कैराना सीट छोड़ सकती है। आरएलडी कैराना लोकसभा उप चुनाव की जगह पर नूरपुर विधानसभा उप चुनाव में ज्यादा दिलचस्पी ले रही है।

यूपी कांग्रेस के उपाध्यक्ष इमरान मसूद पहले ही संकेत दे चुके हैं कि अगर जयंत चौधरी चुनाव मैदान में उतरते हैं तो हम आरएलडी का समर्थन करने के लिए भी तैयार हैं। कांग्रेस की पांच में से तीन विधानसभा क्षेत्रों में स्थिति मजबूत है। कैराना लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इस लोकसभा सीट में शामली जिले की थानाभवन, कैराना और शामली विधानसभा सीटों के अलावा सहारनपुर जिले के गंगोह व नकुड़ विधानसभा सीटें आती हैं। मौजूदा समय में इन पांच विधानसभा सीटों में चार भाजपा के पास हैं और कैराना विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी के पास है। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मैदान में उतरी समाजवादी पार्टी ने शामली व नकुड़ सीटें कांग्रेस को दी थीं।

कैराना लोकसभा की सियासत इतिहास

कैराना लोकसभा सीट 1962 में वजूद में आई। तब से लेकर अब तक 14 बार चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस और भाजपा दो-दो बार चुनाव जीत सकी हैं। ये सीट अलग-अलग राजनीतिक दलों के खाते में जाती रही है। कैराना लोकसभा सीट पर पहली बार हुए चुनाव में निर्दलीय यशपाल सिंह ने जीत दर्ज की थी। 1967 में सोशलिस्ट पार्टी, 1971 में कांग्रेस, 1977 में जनता पार्टी, 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर), 1984 में कांग्रेस, 1989, 1991 में कांग्रेस, 1996 में सपा, 1998 में भाजपा, 1999 और 2004 में राष्ट्रीय लोकदल, 2009 में बसपा और 2014 में भाजपा ने जीत दर्ज कर चुकी है। भाजपा के हुकुम सिंह ने निधन से यह सीट खाली हो गई है।

कैराना का जातीय समीकरण

कैराना लोकसभा क्षेत्र में 17 लाख मतदाता हैं। जिनमें पांच लाख मुस्लिम, चार लाख बैकवर्ड (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति और अन्य शामिल) और डेढ़ लाख वोट जाटव दलित है और एक लाख के करीब गैरजाटव दलित मतदाता हैं। कैराना सीट गुर्जर बहुल मानी जाती है। यहां तीन लाख गुर्जर मतदाता हैं, इनमें हिंदू-मुस्लिम दोनों गुर्जर शामिल हैं। इस सीट पर गुर्जर समुदाय के उम्मीदवारों ने ज्यादातर बार जीत दर्ज की हैं।

कैराना में मुस्लिम सियासत

कैराना में मुस्लिम आबादी अच्छी खासी होने के बाद भी 14 लोकसभा चुनाव में महज 4 बार ही मुस्लिम सांसद बने हैं। 2014 के चुनाव में भाजपा के हुकुम सिंह के खिलाफ दो मुस्लिम उम्मीदवार थे। सपा ने नाहिद हसन को और बसपा ने कंवर हसन को उतारा था। मुजफ्फरनगर दंगे (2013) के चलते वोटों का ध्रुवीकरण हुआ और दो मुस्लिम प्रत्याशी के होने से मुस्लिम वोट बंटने का फायदा हुकुम सिंह को मिला।

वोटों का समीकरण

भाजपा को पांच लाख 65 हजार 909 वोट मिले थे। सपा को 3 लाख 29 हजार 81 और बसपा को 1 लाख 60 हजार 414 वोट मिले थे।

दैनिक जागरण

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