कभी 20 हजार रुपए में शुरू की थी कंपनी , आज है सालाना टर्नओवर 32 करोड़
कहते हैं कभी-कभी आप मेहनत करने के बाद भी उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाते हैं जहां आपको पहुंचना होता है, क्योंकि किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर होता है। ऐसे में आप जब किसी दूसरे क्षेत्र में मेहनत करते हैं तो मेहनत आपकी बेवजह साबित हो जाती है। कुछ ऐसी ही कहानी है शिमला के एक युवक की जिसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए विदेश जाने का फैसला किया लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
इसलिए जब वो शिमला से सिंगापुर जाने कि लिए फ्लाइट पकड़ने के लिए जा रहा था तो उसकी फ्लाइट मिस हो जाने के कारण उसे फिर से वापस आना पड़ा। लेकिन आते समय जब वो टैक्सी में बैठा था तो सामने कुछ गाड़ियों पर मैसेज लिखे हुए थे। जिसे देखकर उसके मन में एक आइडिया आया कि अगर टैक्सियों के पीछे पोस्टर लगाकर विज्ञापन किया जाए तो उससे किसी भी ब्रांड का प्रचार एक जगह न होकर पूरे शहर में हो सकता है।
इस विचार के साथ ही उसने एक ऐड एजेंसी खोलने का मन बनाया और महज 20 हजार रुपए से कंपनी खोल दी। लेकिन रघु खन्ना के इस काम को लोगों ने मजाक बनाकर हंसने लगे। क्योंकि लोगों का मानना था कि एड केवल कप्रंट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से ही किया जा सकता है। लेकिन इन सबके बावजूद रघु खन्ना ने अपने काम पर ध्यान दिया। रघु ने एक वेबसाइट बनाई और इस वेबसाइट के माध्यम से उन्होंने करीबह 15 सौ कार मालिकों का ध्यान अपनी इस वेबसाइट की तरफ आकर्षित कर लिया।
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और पहले ही हफ्ते में उन्हें 8 एड मिले। बता दें कि रघु खन्ना की ऐसी पहली कंपनी थी जिसने एड ऑन व्हीकिल्स के कॉन्सेप्ट पर काम कर रही थी। उन्होंने बेंगलुरू स्थित डिजिडल प्रिंट्स नेटवर्क नाम की कंपनी के साथ मिलकर काम किया। एक लड़का जो कभी नंबरों के लिए टीचरों के सामने हाथ जोड़ता था।
आज वो विज्ञापन उद्योग के गेम चेंजर बन चुके थे। रघु खन्ना का ये कॉनसेप्ट कार से शुरू होकर आज ट्रेन और प्लेन तक पहुंच चुका है। साथ ही देश की बड़ी से बड़ी मल्टीनेशनल कंपनिया भी उनके इस प्रोजेक्ट के साथ जुड़कर काम कर रही है।
रघु खन्ना का ये बिजनेस आज करीब 65 हजार एयर पोर्ट कैब्स, 2 लाख ऑटो और 45 सौ प्राइवेट गाड़ियों में होता है। और कंपनी की वार्षिक कमाई करीब 32 करोड़ रुपए हो गई है।