ओमप्रकाश राजभर से क्यों डर रही है भाजपा

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उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में कैबिनेट मंत्री और भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर से आखिर भाजपा इतनी डर क्यों रही है ? जबकि विधानसभा में भाजपा की दो-तिहाई से अधिक सीटें हैं। उनके समर्थन वापस लेने से भी योगी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है।

पचास फीसदी आरक्षण देने की भी मांग कर रहे हैं

राज्यसभा चुनाव के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलने के बाद उनकी नाराजगी दूर हो गई थी। लेकिन इस मुलाकात के एक सप्ताह बाद ही उन्होंने पुन: योगी सरकार की कार्यशैली की आलोचना करते हुए छह माह का अल्टिमेटम दे दिया है। कहा है कि हमारी मांगें पूरी नहीं हुई तो हम सरकार से समर्थन वापस भी ले सकते हैं। वह महिलाओं को पचास फीसदी आरक्षण देने की भी मांग कर रहे हैं।

जनपदों में राजभर समुदाय की प्रभावशाली भूमिका है

दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, वाराणसी, देवरिया, गोरखपुर, अम्बेडकर नगर आदि जनपदों में राजभर समुदाय की प्रभावशाली भूमिका है। अलग पार्टी बनाकर इस समुदाय के लोगों को उन्होंने संगठित किया है। जो उनकी ताकत है और इसी बल पर वो भाजपा को आंखे दिखा रहे हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी उनकी इस ताकत को समझ रहे हैं। इसी कारण उनकी चिंता बढ़ गई और नींद उड़ी है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन करके ओमप्रकाश राजभर अपने चार विधायकों को जिताने में सफल हो गए थे।

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ओमप्रकाश राजभर ने 1981 में कांशीराम के साथ मिलकर राजनीति शुरू की थी। 2001 में बीएसपी सुप्रीमो मायावती से विवाद हो जाने पर उन्होंने बसपा छोड़ दी और अपनी अलग पार्टी बना ली। यूपी और बिहार में वो कई बार अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारे थे। उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। उनकी भूमिका वोटकटवा की रही। पूर्वांचल में ओमप्रकाश राजभर भले अपने दम पर सीट निकालने में सफल न हो सके, लेकिन दूसरों का खेल बिगाड़ने में वो सक्षम हैं।

गठबंधन करके चुनावी बाजी अपने पक्ष में कर ली थी

2017 में भाजपा से गठबंधन करने से पहले राजनीतिक क्षेत्र में उनकी पहचान “खेल बिगाड़ने वाले” नेता के तौर पर रही। भाजपा इस जमीनी धरातल को अच्छी तरह समझती है। और यही उसकी चिंता का कारण भी है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पटेल, राजभर, निषाद, कुर्मी आदि जातियों को संगठित करने वाले नेताओं के साथ गठबंधन करके चुनावी बाजी अपने पक्ष में कर ली थी। गोरखपुर व फूलपुर में हुए लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की हार के सम्बन्ध में उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि चुनाव में उन्हें कोई पूछा नहीं था, इसी कारण भाजपा चुनाव हार गई।

अधिकारी मंत्री ही नहीं मानते

उनकी नाराजगी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार के एक वर्ष पूरा होने पर उन्होंने योगी को दस में तीन नम्बर दिया है। यानी योगी सरकार फेल हो गई। उनका यह भी आरोप है कि प्रदेश के अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते हैं। उन्हें तो अधिकारी मंत्री ही नहीं मानते। अपनी नाराजगी वो कई बार सार्वजनिक रूप से दर्शा चुके हैं।

राजभर दबाव की राजनीति का प्रयोग कर रहे हैं

उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा और बसपा में बढ़ रही नजदीकियों से भी चुनावी समीकरण की गणित बदल रही है। विपक्ष महागठबंधन में शामिल होने के लिए उन पर डोरे डाल रहा है। यही कारण है कि 2019 के चुनाव से पूर्व ओमप्रकाश राजभर दबाव की राजनीति का प्रयोग कर रहे हैं। बदले राजनीतिक समीकरण में भाजपा उन्हें छोड़ना नहीं चाहती है। दूसरी तरफ विपक्ष उन्हें महागठबंधन में शामिल करना चाहता है। ओमप्रकाश गठबंधन राजनीति के उस चौराहे पर खड़े हैं, जहां खोने के लिए उनके पास कुछ नहीं है। उनके दोनों हाथ में लड्डू है।

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