क्या मोदी-शाह की तोड़ कांग्रेस यूपी में ला पायेगी?
आशीष बागची
ऐसा लगता है कि कांग्रेस के दिन न सिर्फ देश में बल्कि यूपी में भी अच्छे नहीं चल रहे हैं. राजबब्बर(Rajbabbar) का यूपी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफे को इसी नजरिये से देखा जा रहा है. अपने इस्तीफे के पीछे वे यह कारण बताते हैं कि मुझे एक विशेष काम देकर यहां भेजा गया था. मैं जितना काम कर सकता था, उतना किया. कुछ अच्छा हुआ होगा, कुछ ख़राब हुआ होगा. लेकिन इसके पीछे राहुल गांधी की ओर से युवा पीढ़ी को नेतृत्व देने की बात कही जाती रही है.
संघर्ष तो किया पर सफल नहीं रहे
माना जाता है कि राजबब्बर(Rajbabbar) ने उत्तर प्रदेश में संघर्ष तो किया पर वे संगठन को धार नहीं दे सके. राज बब्बर(Rajbabbar) को उत्तर प्रदेश की कमान विधानसभा चुनाव से पहले सौंपी गई थी. उन्होंने पिछले एक साल के अपने कार्यकाल में मेहनत भी कम नहीं की. योगी सरकार के खिलाफ जमीन पर उतरकर संघर्ष भी किया. इसके बावजूद पार्टी के संगठन को धार नहीं मिल सकी. 2019 के चुनाव में भी वे कोई करिश्मा दिखाने की हालत में नहीं आ पा रहे थे. लिहाजा वे दिनोंदिन अप्रासंगिक हो गये थे.
पुराने समाजवादी रहे हैं राजबब्बर
राजबब्बर(Rajbabbar) जनता दल में 1989 में आये. इस तरह उनका राजनीतिक श्रीगणेश राजनीति में हुआ. उन दिनों विश्वनाथ प्रताप सिंह जनता दल की अगुवाई कर रहे थे. बाद में वे समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये. तीन बार लोकसभा के लिए चुने गये. 1994 से 1999 तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे. 2006 में वे समाजवादी पार्टी से निलंबित किये गये. 2008 में वे कांग्रेस में शामिल हुए और 2009 में पुन: सांसद बने. उस समय उन्होंने अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल को हराया था. 2014 में वे गाजियाबाद में जनरल वी के सिंह के मुकाबले खड़े हुए और चुनाव हार गये.
विवादों से है नाता
अपने बयानों के लिए मशहूर अभिनेता सह राजनेता राजबब्बर(Rajbabbar) हमेशा ही विवादों में रहे हैं. साथ ही अपनी हंसी उड़ाते भी रहे हैं.
कांग्रेस के पवक्ता के रूप में 2013 में उन्होंने बयान दिया कि मुंबई में 12 रुपये में एक व्यक्ति को भरपेट खाना उपलब्ध हो जाता है. उन्होंने यह भी बताया कि 28 से 32 रुपये में आदमी को भरपेट खाना उपलब्ध हो जाता है, जिसपर काफी हंसी उड़ी थी. बाद में उन्होंने इस वक्तव्य के लिए काफी भी मांगी थी. 13 जुलाई, 2013 को उन्होंने नरेंद्र मोदी की तुलना एडोल्फ हिटलर से की जिसपर उनकी तीखी आलोचना हुई.
ब्राह्मण को नेतृत्व देने की योजना
उत्तर प्रदेश में राज बब्बर के नेतृत्व में पार्टी ने 2017 विधानसभा चुनाव, नगर निकाय चुनाव और उपचुनाव लड़ा लेकिन प्रदर्शन बेहद खराब रहा. विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस मिलकर लड़ी थीं. इसके बावजूद पार्टी के विधायकों की संख्या 29 से घटकर 7 पर आ गई. नगर निकाय चुनाव में भी पार्टी को करारी हार मिली. उपचुनाव में तो पार्टी अपनी जमानत भी नहीं बचा सकी. उसे 2014 लोकसभा चुनाव से भी कम वोट मिले.
क्या कांग्रेस तोड़ पायेगी मोदी-शाह का तिलस्म
माना जाता है कि उत्तर प्रदेश में मोदी-शाह के सियासी तिलस्म को तोड़ने के लिए कांग्रेस ने अपने परंपरागत ब्राह्मण वोट की तरफ लौटने की योजना बनाई है. इसीलिए उनकी जगह पार्टी की कमान किसी ब्राह्मण चेहरे को सौंपने का कयास इन दिनों तेज है.
किसी भी समीकरण में फिट नहीं
माना जाता है कि राज बब्बर उत्तर प्रदेश के बदलते राजनीतिक समीकरण में कहीं से भी फिट नहीं बैठ पा रहे थे. सूबे में बीजेपी राजपूत नेतृत्व के साथ सत्ता में है और ओबीसी को साधने की कवायद में है. वहीं बसपा-सपा की दोस्ती तेजी से परवान चढ़ रही है. इन दोनों दलों के साथ आने से नयी जातीय गणित बनी है. ऐसे में कांग्रेस भी नया समीकरण साधने में जुट गई है.
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एकजुट विपक्ष को साधने में रोड़ा बन रहे थे
बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो रहे विपक्ष में कांग्रेस राज बब्बर के चलते अपनी जगह नहीं बना पा रही थी. कांग्रेस ऐसे चेहरे को लाना चाहती है, जो सपा-बसपा को साध सके.
उपचुनाव के नतीजों का फायदा लेने की रणनीति
उत्तर प्रदेश में योगी के गढ़ गोरखपुर उपचुनाव में बीजेपी के उपेंद्र शुक्ल की हार से राज्य के ब्राह्मणों में खासी नाराजगी है. उन्हें लगता है कि शुक्ल की हार अस्वाभाविक है. जानबूझकर राजपूतों ने उन्हें हरवाया. ऐसे में कांग्रेस के पास मौका है कि वह ब्राह्मणों को साध ले जो कि उसका परंपरागत वोट बैंक है. कांग्रेस की प्रदेश राजनीति में बदलाव का यह संकेत नए अभियान की ओर बढ़ने का संकेत है.
दिल्ली अधिवेशन के बाद से ही कयास
दिल्ली अधिवेशन के बाद ही संगठन में फेरबदल के संकेत सामने आने लगे थे. राजबब्बर के त्याग पत्र को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है. अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नए नाम की चर्चाएं जोरों से शुरू हो गई हैं, जिसमें पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद, पूर्व सांसद राजेश मिश्र, प्रमोद तिवारी और पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी के नाम जोरों से चल रहे हैं. जानकारों का तो यहां तक कहना है कि प्रदेश में एक अध्यक्ष और चार उपाध्यक्ष तैनात किए जाएंगे.
देखना होगा कि अभिनेता सह राजनेता राजबब्बर की विदाई के बाद कांग्रेस का नया अध्यक्ष इस संगठन को कितना आगे ले जा पाता है.