जानें, कैसा रहा शी जिनपिंग का चीन की सत्ता तक का सफर?

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चीन ने अपने राष्ट्रपति के सीमित कार्यकाल वाले प्रावधान को हटा लिया है, इसके बाद मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग ताउम्र चीन के राष्ट्रपति बने रह सकते हैं। रविवार को नेशनल्स पीपल्स कांग्रेस की सालाना बैठक में इससे संबंधित प्रस्ताव को पारित किया गया। इस प्रस्ताव को चीन की नेशनल्स पीपल्स कांग्रेस में किस तरह का समर्थन मिला, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केवल दो वोट इस प्रस्ताव के खिलाफ थे और 2,964 मतदाताओं में केवल तीन सदस्य अनुपस्थित थे।

 चीन में 1990 के दशक से यह नियम था कि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के तौर पर अधिकतम दो कार्यकाल के लिए ही चुना जा सकता है। लेकिन शी जिनपिंग ने पिछले साल अक्टूबर में हुए कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन में संभावित उत्तराधिकारी पेश करने की परंपरा तोड़ दी थी। इसके बजाय उन्होंने खासी राजनीतिक ताकत अपने पास रखना ही तय किया था। सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने जिनपिंग की विचारधारा को संविधान में शामिल करने का फैसला किया था और संविधान में उन्हें चीन के पहले कम्युनिस्ट नेता और संस्थापक माओत्से तुंग के बराबर दर्जा दिया गया था।
जिनपिंग का सफर

इक्कीसवीं सदी में ऐसे बहुत कम नेता हैं जो गुफा में रहे हों। जिन्होंने खेतों में मेहनत की हो। फिर वो सत्ता के शिखर पर पहुंचे हों। पांच दशक पहले जब चीन में सांस्कृतिक क्रांति का तूफान आया हुआ था, उस वक्त पंद्रह बरस के लड़के शी जिनपिंग ने देहात में मुश्किल भरी जिंदगी की शुरुआत की थी। चीन के अंदरूनी इलाके में जहां चारों तरफ पीली खाइयां थीं, ऊंचे पहाड़ थे। वहां से जिनपिंग की जिंदगी की जंग शुरू हुई थी।

जिस इलाके में जिनपिंग ने खेती-किसानी की शुरुआत की थी, वो गृह युद्ध के दौरान चीन के कम्युनिस्टों का गढ़ था। येनान के लोग अपने इलाके को चीन की लाल क्रांति की पवित्र भूमि कहते थे। चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रपति के कार्यकाल पर लगी सीमा को हटाने का प्रस्ताव रखा है। ये ऐसा कदम है जो मौजूदा नेता शी जिनपिंग को सत्ता में बनाए रखेगा। चीन की राजनीति में इसे एक निर्णायक घड़ी के तौर पर देखा जा रहा है। वो आज एक ऐसे देश की अगुवाई कर रहे हैं, जो बड़ी तेजी से दुनिया की सुपरपावर के तौर पर उभर रहा है।

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लेकिन चीन ऐसा देश है जो इस बात पर कड़ी निगाह रखता है कि उसके नेता के बारे में क्या कहा जाता है। शी जिनपिंग की अपनी कहानी को काफी हद तक काट-छांटकर पेश किया जाता है। दिलचस्प बात ये है कि जहां चीन के तमाम अंदरूनी इलाकों का तेजी से शहरीकरण हो रहा है, वहीं राष्ट्रपति शी के गांव को जस का तस रखा गया है। कम्युनिस्ट पार्टी के भक्तों के लिए वो एक तीर्थस्थल है।

जमीनी जुड़ाव

1968 में चेयरमैन माओ ने फरमान जारी किया था कि लाखों युवा लोग शहर छोड़कर गांवों में जाएं। वहां वो जिंदगी की मुश्किलात का सामना करके, आगे बढ़ने के सबक किसानों और मजदूरों से सीखें। शी जिनपिंग कहते हैं कि उस तजुर्बे से उन्होंने भी बहुत कुछ सीखा। शी का कहना है कि आज वो जो कुछ भी हैं, वो उसी दौर की वजह से हैं। उनका किरदार उसी गुफा वाले दौर ने गढ़ा। जिनपिंग अक्सर कहा करते हैं, “मैं पीली मिट्टी का बेटा हूं। मैंने अपना दिल लियांगजिआहे में छोड़ दिया था। उसी जगह ने मुझे बनाया।”

जिनपिंग कहते हैं, “जब मैं लियांगजिआहे पहुंचा तो पंद्रह बरस का लड़का था। मैं फिक्रमंद था। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।” लेकिन 22 बरस का होते-होते मेरी सारी शंकाएं दूर हो गई थीं। मैं आत्मविश्वास से लबरेज था। मेरी जिंदगी का मकसद पूरी तरह साफ हो चुका था।” उस दौर में हर शख्स चेयरमैन माओ की मशहूर छोटी लाल किताब पढ़ा करता था। आज चेयरमैन शी के खयालात बड़ी-बड़ी लाल होर्डिंग पर लिखे दिखाई देते हैं। उनके सम्मान में एक म्यूजियम भी बनाया गया। इस म्यूजियम में इस बात का जिक्र मिलता है कि उन्होंने अपने साथी किसानों-मजदूरों के लिए क्या-क्या अच्छे काम किए।

लेकिन इन किस्सों को इस तरह काट-छांटकर पेश किया गया है कि उसमें शी जिनपिंग की जिंदगी की असली कहानी का पता लगाना बेहद मुश्किल है। राष्ट्रपति के तौर पर अपने पहले पांच साल के कार्यकाल में शी जिनपिंग ने अपना एक महान इंसान का किरदार गढ़ा है। वो खुद को एक ऐसे शख्स के तौर पर पेश करते हैं, जो जननेता है। वो अक्सर गली-कूचों की सैर पर जाते हैं। गरीबों के घर जाया करते हैं। वो जनता की जुबान में बात करते हैं। वो अक्सर छात्रों को बताते हैं कि जिंदगी एक बटन वाली कमीज है, जिसके शुरू के बटन सही तरीके से लगाने चाहिए, वरना सारे बटन गलत बंद होते हैं। वो कई बार लंच के लिए कतार में खड़े हुए हैं। वो अपने खाने का बिल खुद भरते हैं।

तजुर्बा

लेकिन एक मिथक के तौर पर शी जिनपिंग की कहानी का केंद्र है उनका गुफा में बिताया हुआ शुरुआती जीवन। जहां वो सियासत से अलग कर दिए गए थे। जिनपिंग कहते हैं, “जिनको सत्ता का तजुर्बा कम है, वो इसे नया और राजदाराना तजुर्बा समझते हैं। लेकिन मैं इन पर्दों के पार, बड़ी गहराई से सियासत को देखता हूं।” “मैं फूलों के हार और तालियों की गड़गड़ाहट से परे हटकर देखता हूं। मैं नजरबंदी वाले घर देखता हूं। मैं इंसानी रिश्तों की कमजोरी देखता हूं।”

“मैं राजनीति को गहराई से समझता हूं।” बचपन से जवानी के बीच शी जिनपिंग दोनों तरह की जिंदगी का तजुर्बा कर चुके थे। उनके पिता भी कम्युनिस्ट क्रांति के हीरो थे। ऐसे में शी ने एक राजकुमार वाली जिंदगी का तजुर्बा भी किया था। 2009 के एक खुफिया अमरीकी केबल के मुताबिक शी के एक करीबी दोस्त ने बताया था कि उनके शुरुआती दस सालों ने उनके किरदार की बुनियाद रखी थी। इसके बाद कम्युनिस्ट क्रांति के दौरान जब वो किसानों के बीच रहे, तो उस तजुर्बे ने भी उनकी आगे की जिंदगी पर गहरा असर डाला था।

जान का खतरा

लेकिन साठ के दशक में चेयरमैन माओ ने अपनी ही पार्टी के नेताओं पर जो ज़ुल्म ढाए, उसका सितम शी जिनपिंग को भी उठाना पड़ा था। पहले तो शी के पिता को पार्टी से बाहर कर दिया गया। फिर उन्हें जेल भेज दिया गया। शी के परिवार को बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। उनकी एक बहन की मौत हो गई। शायद उन्होंने खुदकुशी कर ली थी। 13 साल की उम्र में ही शी जिनपिंग की पढ़ाई बंद हो गई थी। क्योंकि बीजिंग के सारे स्कूल बंद कर दिए गए थे।

ऐसा इसलिए ताकि छात्र अपने अध्यापकों की निंदा कर सकें। उन्हें पीट सकें। या फिर उन्हें जान से मार सकें। परिवार और दोस्तों के बगैर, शी जिनपिंग काफी दिनों तक माओ के बदनाम रेड गार्ड्स से बचते-छुपते फिरे थे। एक बार उन्होंने एक रिपोर्टर से एक एनकाउंटर का भी जिक्र किया था। शी जिनपिंग ने बताया था, “मैं केवल 14 बरस का था।

रेड गार्ड्स ने मुझसे पूछा कि तुम अपने जुर्म को कितना गंभीर मानते हो?” “मैंने कहा कि तुम खुद अंदाजा लगा लो, क्या ये मुझे मारने के लिए काफी है? रेड गार्ड्स ने कहा कि हम तुम्हें सैकड़ों बार मार सकते हैं।” “मेरे हिसाब से एक बार मरने या बार-बार मारे जाने में कोई फर्क नहीं।” शी की पीढ़ी के बहुत से चीनी लोग ये मानते हैं कि उस दौर में जब स्कूल बंद हो गए थे, जब वो जान बचाकर छुपते फिर रहे थे। तब की मुश्किलों ने उनके जहन पर गहरा असर डाला था। उन्हें मजबूत बनाया था।

(साभार- अमर उजाला)
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