ये हैं बड़े रक्षा घोटाले, जिन्होंने हिलाकर रख दी देश की नींव
भारत एक कृषि प्रधान देश है, लेकिन यहां हुए घोटालों को देखते हुए इसे घोटालों का देश भी कहा जाता है। अगर सिर्फ रक्षा क्षेत्र की बात की जाए तो आजाद भारत में इस क्षेत्र में भी कई घोटाले हुए हैं। अभी वर्तमान की बात करें तो पिछली यूपीए सरकार में हुए अगस्ता हेलीकॉप्टर डील में कथित घूसखोरी के मामले में कुछ दिनों पहले पूर्व वायु सेना प्रमुख एसपी त्यागी को सीबीआई ने गिरफ्तार किया है। आज हम देश में हुए रक्षा घोटालों के बारे में आपको बताएंगे। जिन्होंने देश की नींव हिला कर रख दी।
1-जीप घोटाला
यह घोटाला आजाद भारत का पहला रक्षा घोटाला है। जो वर्ष 1948 में हुआ था, उस समय जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। इस मामले में मुख्य आरोप वीके कृष्ण मेनन को बनाया गया था।
आजादी के सिर्फ एक साल बाद ही पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया जिसे रोकने के लिए भारतीय सेना ने तैयारी शुरू कर दी तब सेना को अपने लिए बेहतरीन जीपों की जरूरत महसूस हुई और उस समय सेना के लिए जीपे खरीदने का जिम्मा वीके कृष्णा मेनन को सौंपा गया जो उस समय लंदन में भारतीय हाई कमिश्नर थे।
जीपे खरीदें के लिए कई कंपनियों से ताबड़तोड़ सौदे किये गए और इनमें से कई कंपनियां काफी विवादस्पद थी, उसके बाद भीन केवल सौदे किये गए, बल्कि बिना किसी औपचारिकता के 2000 जीप खरीदने के लिए 1 लाख 72 हजार पौंड भी एडवांस दे दिए गए।लेकिन हद तो तब हुई जब भारत केवल 155 जीप ही आईं और वो भी ऐसी स्थिति में जो साधारण सड़क पर भी चलने की स्थिति में नहीं थी।
इसके बाद पूरे विपक्ष ने हंगामा कर दिया और मेनन पर पैसा खाने का आरोप लगाया, लेकिन तब कांग्रेस का दबदबा था तो न्यायायिक मांग ख़ारिज कर एक कांग्रेसी समर्थक अनन्तसायनम अयंगर के नेतृत्व में एक जांच कमेटी बैठा दी गई और बाद में अचानक जांच को ख़त्म कर आरोपी कृष्णा मेनन को सरकार में मंत्री भी बना दिया गया।
2-बोफोर्स घोटाला
दूसरा रक्षा घोटाला साल 1987 में हुआ, जिसे बोफोर्स घोटाले के नाम से जाना जाता है। उस समय देश में कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। इस घोटाले का मुख्य आरोपी ओत्तावियो क्वात्रोची को बनाया गया।
साल 1987 में अचानक ही यह भेद खुला की स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने इंडियन आर्मी से तोप सप्लाई का ठेका लेने लिए तत्कालीन सरकार को 80 लाख डॉलर की दलाली दी गई थी। इसमें कुल 400 तोपों का सौदा करीब 1.3 अरब डॉलर में हुआ था।
विपक्ष ने इस मुद्दे को बहुत उछाला और इसमें मुख्या नाम ओत्तावियो क्वात्रोची का आया जो खुद गांधी परिवार का करीबी रिश्तेदार बताया जाता है, उसे ही इस पूरे मामले का मुख्य आरोपी बनाया गया और कहा गया की उसने इस मामले में दलाल की भूमिका निभाई।
इस मामले में खुद राजीव गांधी भी लपेटे में आये और उनपर भी दलाली खाने का आरोप लगा। ये भी आरोप है कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारत के साथ सौदे के लिए 1.42 करोड डॉलर की रिश्वत ली थी।
लम्बे समय तक राजीव गांधी भी इसमें आरोपी बने रहे, लेकिन उनकी मौत के बाद उनका नाम इस घोटाले से हटा दिया गया।इसमें सीबीआई पर भी आरोप लगा की वह एक पालतू की तरह काम कर रही है। इतना बड़ा घोटल हुआ, लेकिन आज तक इस मामले में कोई भी पकड़ा नहीं जा सका है।
4-कॉफिन स्कैम
भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध हुआ। इस वॉर के दौरान ये घोटाला सामने आया। उस समय देश में भाजपा की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के शव को घर पहुंचाने के लिए जिन ताबूतों को खरीदा गया, उसमें भारी घोटाला हुआ। इसी मामले में देश की केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने अमेरिका के एक ठेकेदार और कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।
इन अधिकारियों ने 1999-2000 के दौरान ऐसे 500 एल्यूमुनियम ताबूत और 3000 शव थैले खरीदने के लिए अमेरिका की एक कंपनी के साथ सौदा किया था। कारगिल युद्ध के बाद तब विपक्ष में बैठ रही कांग्रेस ने तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस पर ताबूत आयात में घोटाले का आरोप लगाया था। विपक्ष ने जॉर्ज से इस्तीफे की भी मांग की थी। बाद में इस मामले में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई थी।
4-बराक मिसाइल घोटाला
रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार का एक और नमूना2001 में बराक मिसाइल की खरीदारी में देखने को मिला। उस समय देश में भाजपा की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। इंडिया ने इजरायल से मिसाइल खरीदने का प्लान बनाया। उसकी कीमत लगभग 270 मिलियन डॉलर थी। इस सौदे पर डीआरडीपी के तत्कालीन अध्यक्ष (उस समय प्रधानमंत्री के साइंटिफिक एडवाइजर) एपीजे अब्दुल कलाम ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी। फिर भी यह सौदा हुआ। इस मामले मेंआरके जैन, जॉर्ज फ़र्नांडिस को मुख्या आरोपी बनाया गया। जिसमें सीबीआई ने 2006 में एफआईआर भी दर्ज की। एफआईआर में समता पार्टी के पूर्व कोषाध्यक्ष आरके जैन की गिरफ्तारी भी हुई।
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बाद में सीबीआई ने पूरा मामला झूठा पाते हुए सभी आरोपियों को क्लीन चीट दे दी, इसके बाद बीजेपी ने तहलका पर विपक्षी पार्टी के इशारे पर झूठा आरोप प्लान करने का आरोप लगाया और तहलका के ऊपर सीबीआई जांच की मांग की।
सुदीप्ता घोष केस
यह घोटाला 2009 में सामने आया। उस समय देश में कांग्रेस की सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। इस मामले में पूर्व ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड के डायरेक्टर जनरल सुदीप्त घोष को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया। घोष पर आरोप था कि इन्होंने दो भारतीय और चार विदेशी कंपनियों से रिश्वत ली है। ये वो कंपनियां थीं जिन्हें रक्षामंत्री ए के अंटनी ब्लैक लिस्टेड कर चुके थे।
टाटा ट्रक घोटाला
यह घोटाल भी मनमोहन सरकार में 2012 में सामने आया है। जिसमें पूर्व आर्मी चीफ जनरल वीके सिंह ने आरोप लगाया कि एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने 2010 में घटिया वाहनों की खरीद से संबंधित एक समझौते को मंजूरी देने के लिए उन्हें 14 करोड़ रिश्वत देने की पेशकश की थी। यहां पर ट्रकों की क्वालिटी पर भी कई सवाल खड़े हुए थे।