तीन तलाक बिल : राज्यसभा में लटक गया बिल, ये हैं सीमित विकल्प…

0

संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार आखिरकार एक बार में तीन तलाक संबंधी विधेयक राज्यसभा से पारित नहीं करा सकी, जबकि यह लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका है। राज्यसभा में बिल लंबित रहने के कारण अब सरकार के पास इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए बहुत सीमित विकल्प रह गए हैं। इस विधेयक के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर राज्यसभा के पूर्व महासचिव वी. के. अग्निहोत्री ने कहा कि सरकार के पास एक विकल्प है कि वह अध्यादेश जारी कर दे। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा करना उच्च सदन के प्रति असम्मान होगा।

गौरतलब है कि एक बार में तीन तलाक को अपराध घोषित करने के प्रावधान वाले मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक को शीतकालीन सत्र में लोकसभा पारित कर चुकी है। राज्यसभा में विपक्ष बिल को सिलेक्ट कमिटी को भेजने की मांग पर अड़ गया, जिससे सरकार इसे पारित नहीं करा सकी। हालांकि सरकार ने उच्च सदन में इसे चर्चा के लिए रख दिया है और यह फिलहाल उच्च सदन की संपत्ति है।

इस विधेयक के बारे में पूछे जाने पर राज्यसभा के पूर्व महासचिव ने कहा कि आमतौर पर अध्यादेश तब जारी किया जाता है जब सत्र न चल रहा हो और इसे सदन में पेश न किया गया हो। उन्होंने कहा, ‘जब सदन में विधेयक पेश कर दिया गया हो तो इस पर अध्यादेश लाना सदन के प्रति सम्मान नहीं समझा जाता, लेकिन पूर्व में कुछ ऐसे उदाहरण रहे हैं कि सदन में विधेयक होने के बावजूद अध्यादेश जारी किया गया।’

अग्निहोत्री ने कहा कि सरकार इस विधेयक को सिलेक्ट कमिटी के पास भी भेज सकती थी। ऐसे भी उदाहरण हैं कि सिलेक्ट समिति ने एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट दे दी। वैसे भी, यह केवल 6-7 उपबंध वाला विधेयक है। उन्होंने कहा कि सरकार के पास यह विकल्प भी था कि विपक्ष जो कह रहा है उसके आधार पर वह स्वयं ही संशोधन ले आती। उन्होंने बताया कि चूंकि यह विधेयक सरकार राज्यसभा में रख चुकी है और जब तक उच्च सदन इसे खारिज नहीं कर देती, सरकार इस पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाकर इसे पारित नहीं करा सकती।

उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील और राज्यसभा में कांग्रेस सदस्य विवेक तनखा भी मानते हैं कि इस बारे में अध्यादेश लाने के लिए कानूनी तौर पर सरकार के लिए कोई मनाही नहीं है। हालांकि परंपरा यही रही है कि संसद में लंबित विधेयक पर अध्यादेश नहीं लाया जाता। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में कहा था कि सरकार इस विधेयक को इसलिए पारित कराना चाहती है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि इस बारे में 6 महीने के भीतर संसद में कानून बनाया जाए।

Also Read : यूपी: हज हाउस की दीवारों पर चढ़ा भगवा

इस बारे में तनखा का कहना है कि उच्चतम न्यायालय ने 6 माह के भीतर कानून बनाने का जो आदेश दिया था, वह अल्पमत का दृष्टिकोण है। इस बारे में बहुमत वाले दृष्टिकोण में इसका कोई जिक्र नहीं है। तनखा ने कहा कि कांग्रेस का मानना है कि इस मामले में जल्दबाजी दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने एक बार में तीन तलाक पर जो रोक लगाई है, वह स्वयं अपने में एक कानून बन चुका है। न्यायाधीश का फैसला अपने आप में एक कानून है। विधायिका तो केवल उसे संहिताबद्ध करती है।

तनखा ने कहा कि झगड़ा फैसले को लेकर नहीं बल्कि सरकार द्वारा इस विधेयक में जो अतिरिक्त बातें जोड़ी गई हैं, उसको लेकर है। उन्होंने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया, ‘आप अपने राजनीतिक लाभ के लिए इसका (तीन तलाक देने के आरोप का) अपराधीकरण कर रहे हैं। विवाह के मामले फौजदारी अपराध नहीं हो सकते।’ तनखा ने कहा कि सरकार ने जल्द पारित कराने के नाम पर इस विधेयक को सिलेक्ट कमिटी में भेजने की विपक्ष की मांग को नहीं माना। अब यह विधेयक संसद के अगले सत्र से पहले पारित नहीं हो सकता।

उन्होंने आगे कहा कि यदि प्रवर समिति वाली बात मान ली जाती तब भी इस विधेयक को अगले सत्र में ही पारित होना था। उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में एक बार में तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत को गैरकानूनी घोषित करते हुए सरकार से इसे रोकने के लिए कानून बनाने को कहा है। राज्य सभा में इस बिल पर जोरदार बहस हुई और कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां इसे सिलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग पर कायम रहीं।

(साभार- नवभारत टाइम्स)

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More