नव्या ने दी हस्तकलाओं को नई पहचान
भारतीय हस्तकला सिर्फ अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर नहीं है, बल्कि मजबूत अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख निशानी भी है। लेकिन आधुनिकता की दौड़ में हस्तकला की अधिकतर उद्योग-धंधे तबाह हो चुके हैं और भविष्य अच्छा नहीं दिखाई दे रहा। लेकिन उत्तर प्रदेश की युवा नव्या अग्रवाल ने परंपरागत चली आ रही, हस्तकला को सीतापुर में रहकर ही देश के महानगरों तक पहुंचाने का काम किया है।
हस्तकलाओं का उत्थान
लखनऊ से 90 किलोमीटर की दूरी पर नव्या ने 2013 में अपने छोटे-से आई वैल्यू एवरी आइडिया (आईवीईएल) की स्थापना की। हालांकि बाजार में कई बड़ी-बड़ी कंपनियां हैं जो हस्तकलाकारों को उत्थान के लिए काम कर रही हैं, लेकिन आईवीईआई जैसी संस्थाओं की भी आवश्यकता काफी महत्वपूर्ण है। नव्या ने देश भर की स्थिति की जानकारी प्राप्त करते हुए छोटा ही सही, लेकिन महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है।
आश्वासन पर चले आए कर्मचारी
नव्या ने अपने पिता से 3.50 लाख रुपये कर्ज लेकर आईवीईआई की स्थापना की थी। 12 हस्तकलाकारों के साथ एक छोटी सी कार्यशाला शूरू की। उनमें ऐसे कलाकार भी थे, जो घरेलू स्तर पर लकड़ी की चूड़ियां बनाते थे, तो कोई मेंहदी डिजाइन करता था। सारे कर्मचारी मौखिक आश्वासन पर चले आए।
नव्या ने उन्हें कई तरह के नए काम बताए। फिर उन्होंने उनके कौशल को सुधारना तथा संवारना शुरू किया, लेकिन सबसे बड़ा सवाल था कि इन उत्पादों को बेचा कैसे जाए।
उठाना पड़ा नुकसान
शुरू में आईवीईआई की बिक्री केवल 20 हजार रुपये थी। नव्या को नुकसान भी उठाना पड़ा, लेकिन इन सब के पीछे जो प्रतिक्रिया मिल रही थी, उसका महत्व अधिक था। लोग उन उत्पादों की तारीफ कर रहे थे, यह नव्या को काफी खुशी देने वाला था। इसका मतलब था कि वह सही दिशा में आगे बढ़ रही हैं।
मिली पहली कामयाबी
नव्या के लिए सबसे पहली बड़ी कामयाबी कुकु क्रेट का आर्डर मिलना था। कंपनी को 100 मिकी माउस और घड़ियां बनाने का आर्डर मिला था, जिसे बच्चों ने रंगा था। नव्या का उत्पादन मूल्य 100 रुपये था और उन्होंने उसे 110 रुपये में बेचा। यह बहुत कम फायदा था, लेकिन इस आर्डर ने उन्हें नई दिशा में काम करने की प्रेरणा दी।
कारवां बढ़ता गया
एक साल के भीतर आईवीईआई के उत्पाद बैंगलूर, चेन्नई, मुंबई और हैदराबाद के असंख्य घरों तक पहुंच गए। नव्या का व्यापार धीरे-धीरे फैलता गया और आर्डरों की संख्या बढ़ती गई। आईवीईआई को इसके बाद फ्लिपकार्ट, स्नैपडीत तथा अमेजान जैसी ई-कामर्स कंपनियों के साथ-साथ कार्पोरेट कंपनियों के आर्डर भी मिलने लगे।
18 लाख तक पहुंचा कारोबार
नव्या के पास इस समय 18 फुल टाइन क्राफ्ट्स मैन हैं। शुरू में वे 200 रुपये प्रतिदिन कमाते थे। लेकिन अब वही कर्मचारी 60 रुपये प्रति घंटा कमाते हैं। पहले साल आईवीआई ने एक लाख रुपये राजस्व कमाया था। नव्या के दिन रात अथक प्रयास जारी रहे और इसे उनकी टीम ने पिछले वर्ष 18 लाख तक पहुंचाया है।
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