वो किस्सा जिसने अटल को पत्रकार से बनाया प्रधानमंत्री…

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देश के महानतम प्रधानमंत्रियों में से एक और प्रमुख राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ एक अच्छे नेता ही नहीं, बल्कि एक कुशल पत्रकार भी थे. असल में उनके करियर की शुरुआत पत्रकारिता से ही हुई थी और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी उस समय पत्रकारिता से जुड़े थे. अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीति में आना एक दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानी है, जिसे खुद उन्होंने कभी साझा किया था.

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे और उनका बचपन आसान नहीं था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी. उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में करियर शुरू किया. इस दौरान उन्होंने ‘राष्ट्रधर्म’, ‘पान्चजन्य’ और ‘वीर अर्जुन’ जैसी प्रमुख पत्रिकाओं का संपादन किया. वे बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे और संघ की विचारधारा ने ही उन्हें देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा दी. इसके लिए उन्होंने पत्रकारिता को एक अच्छा माध्यम समझा और इसे अपना करियर बनाया.

1953 में आया बड़ा मोड़..

एक इंटरव्यू में अटल जी ने बताया था कि वे बतौर पत्रकारिता अपना काम बखूबी कर रहे थे. बात 1953 की है, जब भारतीय जनसंघ के नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर को विशेष दर्जा देने के खिलाफ थे. जम्मू कश्मीर में लागू परमिट सिस्टम का विरोध करने के लिए डॉ. मुखर्जी श्रीनगर चले गए. परमिट सिस्टम के अनुसार, किसी भी भारतीय को जम्मू कश्मीर राज्य में बसने की इजाजत नहीं थी. यही नहीं, दूसरे राज्य के किसी भी व्यक्ति को जम्मू कश्मीर में जाने के लिए अपने साथ एक पहचान लेकर जाना अनिवार्य था. डॉ. मुखर्जी इसका विरोध कर रहे थे. वे परमिट सिस्टम को तोड़कर श्रीनगर पहुंच गए थे.

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मुखर्जी के शब्द बने प्रेरणा

अटल बिहारी वाजपेयी जो उस समय पत्रकार थे जो इस घटना को कवर करने उनके साथ गए थे. वह खुद बताते हैं, “हम दोनों श्रीनगर पहुंचे जहां डॉ. मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन मुझे डॉ. मुखर्जी ने कहा, ‘वाजपेयी, तुम जाकर दुनिया को बता दो कि मैं कश्मीर में बिना परमिट के आ गया हूं.’ कुछ ही दिनों बाद डॉ. मुखर्जी की नजरबंदी के दौरान बीमारी के कारण मृत्यु हो गई. यह घटना वाजपेयी के दिल पर गहरी छाप छोड़ गई. वह कहते हैं, “मुझे लगा कि मुझे उनके विचारों को आगे बढ़ाना चाहिए ” यही वह पल था, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में कदम रखने का निर्णय लिया. इसके बाद 1957 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद बने. इस तरह पत्रकारिता से राजनीति तक का उनका सफर शुरू हुआ, जो उन्हें भारत के प्रधानमंत्री पद तक ले गया.

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