बाबरी मस्जिद विध्वंस ने इस तरह बदली समाज, राजनीति की पृष्ठभूमि…

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6 दिसंबर, 1992 का दिन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद मोड़ के रूप में उभर कर सामने आया. इस दिन, अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया, जिसे लेकर दशकों से विवाद चल रहा था. इस घटना ने न केवल देश की राजनीति को प्रभावित किया, बल्कि भारतीय समाज को गहरे सांप्रदायिक और धार्मिक विभाजन में भी झोंक दिया. बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर आज भी यह घटना देशभर में चर्चा का विषय बनती है. यह एक समय के घावों को ताजा करती है और समाज में सहिष्णुता और एकता की आवश्यकता को रेखांकित करती है.

बाबरी मस्जिद का ऐतिहासिक संदर्भ

बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528 में मुग़ल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा अयोध्या में कराया गया था. मस्जिद के निर्माण को लेकर हिंदू समाज में यह मान्यता रही थी कि यह स्थल भगवान राम की जन्मभूमि है. अयोध्या में राम मंदिर के स्थान को लेकर हिंदू समाज का गहरा धार्मिक और ऐतिहासिक जुड़ाव था. समय के साथ यह विवाद गहराता गया और 20वीं सदी के अंत तक यह एक अत्यधिक संवेदनशील मुद्दा बन चुका था.

राम मंदिर आंदोलन और बाबरी मस्जिद विवाद

1980 के दशक में जब राम मंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन तेज हुआ तो बाबरी मस्जिद को लेकर एक नया मोड़ आया. हिंदू संगठनों ने यह दावा करना शुरू किया कि बाबरी मस्जिद को राम जन्मभूमि पर बनवाया गया था और इस स्थान पर राम मंदिर का पुनर्निर्माण होना चाहिए. इस आंदोलन ने देशभर में उग्र और भावनात्मक माहौल बना दिया. भारतीय जनता पार्टी (BJP) और विश्व हिंदू परिषद (VHP) जैसे संगठनों ने इस आंदोलन को समर्थन दिया और 1992 में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया.

जब भड़क उठे थे दंगे

6 दिसंबर, 1992 को जब हजारों की संख्या में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद पर हमला किया और उसे ढहा दिया, तो यह घटना न केवल एक ऐतिहासिक स्थल का विनाश थी, बल्कि यह देश की धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भाव को भी खतरे में डालने वाली थी. इस विध्वंस के बाद पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें सैकड़ों लोग अपनी जान गंवाने के साथ-साथ लाखों की संख्या में लोग प्रभावित हुए.

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

बाबरी मस्जिद का विध्वंस भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. इस घटना के बाद बीजेपी ने भारतीय राजनीति में एक नई ताकत के रूप में अपनी पहचान बनाई. पार्टी ने राम मंदिर के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया, जिसके कारण पार्टी की ताकत और लोकप्रियता में काफी इज़ाफा हुआ. वहीं दूसरी ओर यह घटना समाज में गहरे धार्मिक और सांप्रदायिक विभाजन को जन्म देने का कारण बनी. मुसलमानों के बीच यह आक्रोश और असुरक्षा का कारण बनी, जबकि हिंदू समाज में इसे अपनी धार्मिक पहचान के पुनर्निर्माण के रूप में देखा गया.

धार्मिक उन्माद और सहिष्णुता की आवश्यकता

बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भारत में सांप्रदायिक हिंसा और तनाव का माहौल बना. इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब धार्मिक भावनाएं राजनीति के साथ जुड़ जाती हैं, तो समाज में उन्माद और हिंसा का माहौल बन सकता है. यह घटना हमें यह सिखाती है कि हमारे देश की विविधता में ही हमारी ताकत है और हमें एक-दूसरे के धर्म, संस्कृति और पहचान का सम्मान करना चाहिए. भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने की दिशा में यह घटना एक गहरी चुनौती साबित हुई, क्योंकि इसने धार्मिक ध्रुवीकरण को और बढ़ावा दिया.

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न्याय और सुलह की प्रक्रिया

बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भारतीय न्यायपालिका ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए. आखिरकार, 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में निर्णय सुनाया और विवादित भूमि को हिंदू पक्ष को सौंप दिया. हालांकि, यह निर्णय कुछ हद तक सांप्रदायिक विवाद को समाप्त करने में मददगार साबित हुआ, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना ने भारतीय समाज में गहरे निशान छोड़ दिए हैं.

बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी हर साल हमें यह याद दिलाती है कि, हमें अपनी ऐतिहासिक धरोहर और सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए सतर्क रहना चाहिए. यह घटना एक ऐसा अध्याय है, जिसे हम केवल इतिहास के पन्नों तक सीमित नहीं रख सकते, बल्कि हमें इसे भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए एक चेतावनी के रूप में देखना चाहिए. भारत को एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बनाने के लिए हमें धर्म, जाति और समुदाय से ऊपर उठकर एक दूसरे के साथ सहिष्णुता, सम्मान और भाईचारे का व्यवहार करना होगा.

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