जाति, संप्रदाय के अलावा इन बदलावों के साथ 2025 में होगी जनगणना….

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प्रति 10 वर्षों में होने वाली जनगणना को लेकर बड़ी खबर सामने आ रही है. इसमें अगले साल यानी 2025 में जनगणना की शुरूआत कराई जाएगी, जो पूरे एक साल तक जारी रहेगी. इसके साथ ही अब हर 10 साल पर होने वाली जनगणना अब अगली बार 2035 में कराई जाएगी. आपको बता दें कि अब तक कराई जाने वाली जनगणना हर दस साल में होने वाली जनगणनों दशकों में कराई जाती थी जैसे 1991, 2001, 2011. इसी क्रम में दस सालों के अंतराल के बाद साल 2021 में जनगणना होनी थी, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से जारी पाबंदियों के चलते इसे टालना पड़ा था. ऐसे में अब यह जनगणना 2025 में कराई जाएगी, जिसके साथ ही अब जनगणना के चक्र में भी बदलाव हो जाएगा. अब हर 10 सालों पर जनगणना तो होगी लेकिन 2025 के बाद 2035, 2045 और 2050 के क्रम में यह कराई जाएगी.

संप्रदाय को लेकर पूछें जाएंगे सवाल

वहीं आपको बता दें कि लोकसभा सीटों का परिसीमन जनगणना पूरी होने के बाद होगा. परिसीमन प्रक्रिया साल 2028 तक पूरी की जा सकती है. दरअसल, विपक्ष लगातार जातिगत जनगणना की मांग कर रहा है, लेकिन सरकार इस पर फिलहाल किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है. अब तक कराई गई जनगणना में सिर्फ धर्म और वर्ग की पूछताछ जाती थी. इसके साथ ही सामान्य, अनुसूचित जाति और जनजाति की जनगणना की जाती थी. वहीं अब लोगों पूछा जा सकता है कि वे किस संप्रदाय के अनुयायी हैं. इसे हम उदाहरण के तौर पर भी समझ सकते है. कर्नाटक में लिंगायतों को आम लोगों से अलग संप्रदाय माना जाता है. इसी तरह अनुसूचित जाति में वाल्मीकि और रविदासी हैं यानी सरकार वर्ग, धर्म और संप्रदाय के आधार पर जनगणना की मांग पर भी विचार कर रही है.

राजनीतिक मुद्दा बनाने की हो सकती है कोशिश

फिलहाल केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना को जनगणना के साथ जोड़ने का औपचारिक निर्णय नहीं लिया है, लेकिन मोदी सरकार जातिगत जनगणना को राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश कर सकती है. क्योंकि सरकार भी चाहती है कि NDA में इस मुद्दे पर कोई मतभेद न हो और सभी धर्मों की आबादी में मौजूद जाति व्यवस्था की जड़ों का पता लगाया जा सके. आरक्षण सहित किसी भी सुविधा के लिए कोई विशिष्ट योजना बनाने की आवश्यकता होने पर यह अभियान पहला और महत्वपूर्ण ट्रिपल टेस्ट होगा.

जनगणना का क्या है इतिहास ?

आपको बता दें कि, भारत में जनगणना का इतिहास अंग्रेजी हुकूमत से चला आ रहा है. देश में पहली जनगणना साल 1871 में गवर्नर जनरल लॉर्ड मेयों के शासन में कई गयी थी. यह जनगणना आयुक्त डब्ल्यू.सी. प्लोडेन द्वारा कराई गई थी. इसके पश्चात हर दस साल पर जनगणना कराए जाने की शुरूआत कर दी गई थी. हालांकि, इस दौरान कुछ सालों में गैप देखा गया है, लेकिन आजाद भारत के बाद साल 1951 में कराई गई पहली जनगणना के बाद से यह निरंतर जारी है. अब तक कुल छः बार जनगणना कराई गई है. आजादी के बाद कब-कब कराई गई जनगणना…
1951
1961
1971
1991
2001
2011

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जनगणना कराने का क्या है उद्देश्य ?

हर दस सालों में सरकार द्वारा जनगणना कराने के कई सारे उद्देश्य होते हैं,जिन्हें हम बिन्दुओं में समझ सकते हैं…
-जनगणना के ज़रिए देश की आबादी गिनी जाती है. इससे देश के जनसांख्यिकीय आंकड़े मिलते हैं, जिनका इस्तेमाल राष्ट्रीय नीतियों और योजनाओं को बनाने में किया जाता है.
-जनगणना से देश के लोगों के बारे में कई तरह की सांख्यिकीय जानकारी मिलती है. इन आंकड़ों का इस्तेमाल सरकार के कार्यक्रमों के मूल्यांकन में भी किया जाता है.
-जनगणना से देश की सामाजिक विषमता और असमानता का अध्ययन किया जाता है. जनगणना में जाति, धर्म, भाषा, शिक्षा, लिंग जैसी सामाजिक विशेषताओं के बारे में जानकारी जुटाई जाती है.
-जनगणना से देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना का अध्ययन किया जा सकता है.
-जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल संसद, राज्यों की विधानसभाओं, और स्थानीय निकायों के प्रतिनिधित्व का आवंटन और निर्वाचन क्षेत्रों के सीमांकन में किया जाता है.
-जनगणना से देश की वर्तमान स्थिति की तुलना अतीत के साथ-साथ बाकी दुनिया से की जा सकती है.

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