आज लॉन्च हो सकती है अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट-8 (ईओएस-8)…

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स्वतंत्रता दिवस की 78 वीं वर्षगांठ पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो लेटेस्ट अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट (EOS-8) को आज लांच कर सकता है. यह लॉचिंग बेंगलुरू स्थित श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से की जाएगी. 175.5 किलोग्राम वजनी यह सैटेलाइट पर्यावरण की निगरानी करेगा, आपदा प्रबंधन करेगा और तकनीकी सुधार करेगा. EOS-8 में तीन विशिष्ट स्टेट-ऑफ-द-आर्ट पेलोड हैं. इसका सिक यूवी डोजीमीटर (SiC UV Dosimeter), इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इंफ्रारेड पेलोड (EOIR) और ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम रिफ्लेक्टोमेट्री पेलोड (GNSS-R)। EOIR दिन और रात दोनों में मिड और लॉन्ग वेव की इंफ्रारेड चित्रण करेगा.

आपदाओं से करेगा सुरक्षा

इसके द्वारा भेजी जा रही तस्वीरों से आपदाओं की जानकारी मिलेगी, जैसे- जंगल में आग लगना, ज्वालामुखीय घटना GNSS-R समुद्री सतह की हवा का विश्लेषण करेगा. मिट्टी की नमी और बाढ़ की जानकारी मिलेगी. वहीं, SiC यूवी डोजीमीटर से अल्ट्रावायलेट रेडिएशन का विश्लेषण किया जाएगा, इससे गगनयान मिशन को सहायता मिलेगी.

कम्युनिकेशन और पोजिशनिंग में मदद करेगा

EOS-8 सैटेलाइट धरती से 475 किलोमीटर की ऊंचाई पर निचली कक्षा में घूमेगा. यही कारण है कि यह सैटेलाइट कई और तकनीकी सहायता भी प्रदान करेगा. इंटीग्रेटेड एवियोनिक्स प्रणाली की तरह इसमें कनेक्शन, बेसबैंड, स्टोरेज और पोजिशनिंग (CBSP) पैकेज शामिल है, यानी एक ही उपकरण कई कार्य कर सकता है. इसमें 400 जीबी की डेटा स्टोरेज क्षमता है.

मिशन में लगेगा इतना समय

इस मिशन का अवधि एक वर्ष है, अंतरिक्ष में इसे ले जाने के लिए SSTV रॉकेट का उपयोग होगा यानी छोटी उपग्रह लॉन्च व्हीकल SSSV-D3 में D3 तीसरी डिमॉन्स्ट्रेशन फ्लाइट है. यह रॉकेट मिनी, माइक्रो और नैनो सैटेलाइट्स को प्रक्षेपित करने के लिए बनाया गया है.  SSLV को इस लॉन्चिंग के बाद पूरी तरह से ऑपरेशनल रॉकेट का दर्जा मिलेगा. इस रॉकेट ने पहले भी दो बार उड़ान भरी है. 7 अगस्त 2022 को SSLV-D1 की पहली उड़ान हुई, 10 फरवरी 2023 को पहली SSLV-D2 उड़ान हुई. तीन सैटेलाइट भेजे गए AzaadiSAT-2, Janus-1 और EOS-07.

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इसरो का यह रॉकेट कैसे करेगा काम

छोटे सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग में SSSV का उपयोग किया जाता है, यह एक छोटा लॉन्च व्हीकल है. इससे 500 किलोग्राम से 300 किलोग्राम तक के सैटेलाइट्स को 500 किलोमीटर से नीचे या धरती की निचली कक्षा में सूर्य के सिंक्रोनस ऑर्बिट में भेज सकते हैं. इस ऑर्बिट की लंबाई 500 किमी से अधिक है.

SSLV की लंबाई 2 मीटर, व्यास 2 मीटर  और वजह 120 टन है. SSLV 100 से 500 किलोग्राम के पेलोड्स को एसएसएलवी 500 किमीटर तक पहुंचा सकता है. वहीं यह  SSSV 72 घंटे में तैयार हो जाता है और  SSLV फिलहाल श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से लॉन्च किया जाएगा.

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