ईडी-सीबीआई की गीदड़ भभकी से नही डरता यह नेता, मोदी भी खाते हैं खौंफ

बनारस में कांग्रेसियों ने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का मनाया जन्मदिन

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वाराणसी जिला व महानगर कांग्रेस कमेटी ने रविवार को अखिल भारतीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का जन्मदिन जिला कैम्प कार्यालय में मनाया. इस दौरान वक्ताओं ने उनके पारिवारिक और राजनीतिक जीवन के संघर्षों को याद किया.

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इस मौके पर जिला अध्यक्ष राजेश्वर सिंह पटेल व महानगर अध्यक्ष राघवेन्द्र चौबे ने कहाकि एक मिल मजूदर का बेटा जो छात्र जीवन में दीवारों पर गांधी और आंबेडकर के विचार लिखता था, आज वो देश की राजनीति का रोल मॉडल है. देश की सबसे बड़ी और पुरानी कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष है. आज कांग्रेस पार्टी उनके दीर्घकालिक राजनीतिक अनुभवों का लाभ लेकर निरंतर आगे बढ़ रही है. उन्होंने कहाकि यह नेता किसी से नहीं डरता… न सरकार से… न सत्ता की तानाशाही से और न ही ईडी-सीबीआई की गीदड़ भभकी से. यह राहुल गांधी की तरह निडर और निर्भीक होकर सरकार को बेनकाब करते हैं. प्रधानमंत्री मोदी पर भी इस नेता का खौंफ रहता है.

तब पूरी संसद सन्न रह गई थी

उन्होंने भरी संसद में कहाकि भाषण से जनता का पेट नहीं भरता. हम सबको याद है. मोदी जी बोलने के अलावा कुछ करो भी. जब संसद में मोदी की आंख में आंख डालकर खरगे ने ये कहा तो पूरी संसद सन्न रह गई थी. पार्टी के नेताओं ने कहाकि प्रधानमंत्री मोदी मनरेगा पर बकवास कर रहे थे, मल्लिकार्जुन खरगे से रहा नहीं गया. उन्होंने खड़े होकर सदन में कहा कि प्रधानमंत्री जी मनरेगा का मजाक तो बना दिया, मगर खुद 15 साल मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात के गरीबों के लिए कुछ नहीं किया आपने. इससे पहले दक्षिण भारत के इस नेता को हिंदी हार्टलैंड भी हल्के में लेता था. मगर 2014 से 2019 के बीच सदन में खरगे की बेबाकी ने कई मुद्दों पर सरकार की हवा टाइट कर दी.

बचपन में देखा तबाही का मंजर

वक्ताओं ने कहाकि कभी कभी हम सब सोचते हैं कि मल्लिकार्जुन खरगे इतना शांत और सुलझे क्यों है… तो इन्हीं के अतीत से इसका उत्तर मिल जाता है. खरगे का बचपन बेहद दर्द और पीड़ा में गुजरा है, उनकी जवानी अभाव और संघर्षों में बीती. मगर खरगे ने कभी हार नहीं मानी, परिस्थितियां चाहे जैसी हो, उन्होंने साहसपूर्वक लड़ा. साल 1947 में एक तरफ देश आजादी का जश्न मना रहा था, दूसरी तरफ 5 साल के खरगे का बचपन तबाह हो रहा था. निजाम के सैनिकों ने खरगे की मां और बहन को उनकी आंखो के सामने जला दिया था. निजाम के क्रूर सैनिकों से बचने के लिए 5 साल के खरगे को लेकर उनके पिता जंगल की तरफ भाग गए. फिर खरगे को एक रिश्तेदार के पास छोड़कर उनके पिता गुलबर्गा मजदूरी करने चले गए.

वकील बने तो पहली आवाज मजदूरों के लिए उठाई

पढ-लिखकर खरगे जब वकील बने तो सबसे पहले मिल के उन्हीं मजदूरों की आवाज उठाई, जिनके साथ उनके पिता मजदूरी करते थे. खरगे अपने जिले गुलबर्गा के पहले दलित वकील थे. साल 1972 में जब 27 साल की उम्र में पहली बार विधायक बनें, तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक-दो बार नहीं बल्कि नौ बार लगातार विधायक बनें. कई बार कर्नाटक सरकार में मंत्री बनें. फिर सांसद और केंद्र में मंत्री बनें और फिर देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष. हम सब खड़गेजी के लंबी उम्र और उत्तम स्वास्थ्य की कामना बाबा विश्वनाथ से करते हैं. इस मौके पर अशोक सिंह, श्रीप्रकाश सिंह, जितेन्द्र सेठ, डॉ. राजेश गुप्ता,विनोद सिंह, राजीव राम, राजीव गौतम, संतोष मौर्य, सुरेन्द्र सिंह, रोहित दुबे, विनोद पटेल, गोपाल पटेल,वसीम अख्तर, कल्पनाथ शर्मा, चक्रवर्ती पटेल, अखिलेश पटेल, तुराब हासमी, रविशंकर, उदय प्रताप, विकास वर्मा, मुस्तफा सिद्दीकी आदि रहे.

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