काशी के आश्रमों, मठ और मंदिरों में रही गुरू पूर्णिमा की धूम
भजन-कीर्तन के अलावा वृहद भंडारे का हुआ आयोजन
काशी में धर्मगुरूओं के आश्रमों, मठों और मंदिरों में गुरूपूर्णिमा महोत्सव की धूम रही. सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहा. इस मौके पर गुरू स्थानों पर भजन-कीर्तन और भंडारे का आयोजन किया गया था. भक्तों ने गुरू चरणों में शीश नवाये और आशीर्वाद लिया.
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वाराणसी के खोजवा स्थित द्वारकाधीश मंदिर में महंत स्वामी रामदासाचार्य के नेतृत्व में बड़े ही धूमधाम के साथ गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया गया. यहां गुरु पूजा करने दूर-दूर से लोग पहुंचे थे. लोगों ने विधि विधान के साथ गुरु के पांव पखारे और माल्यार्पण कर आरती उतारी. इसके बाद प्रसाद वितरण भी किया गया. देर शाम भंडारे का भी आयोजन किया गया. मंदिर परिसर को फूलों से सजाया गया था. सुबह से दर्शन पूजन का क्रम जो शुरू हुआ जो जो देर शाम तक जारी रहा. रामद्रासाचार्य ने कहा कि यहां द्वारकाधीश भगवान का बहुत पुराना मंदिर है. इसी क्रम में लोगों ने अपने गुरुदेव का चरण पादुका पूजन किया और आरती उतारी. उन्होंने कहा कि गुरु का अर्थ है वह है जो हमारे जीवन से अंधकार (गु) को दूर करता है. गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसी दिन वेद व्यास जी ने मानवता के लिए पवित्र ग्रंथों का वाचन करना शुरू किया था. वेद व्यासजी ने ही वेदों का वर्गीकरण किया, श्रीमद्भागवत और महाभारत सहित 18 पुराण लिखे. उन्होंने गुरुओं के गुरु अवधूत दत्तात्रेय को भी शिक्षा दी थी. हम सभी वेद व्यासजी के ऋणी हैं. गुरु-शिष्य सम्बंध का महत्व आध्यात्मिक साधक की प्रगति के लिए मौलिक है.
भगवान कृष्ण ने भी लिया गुरू का सहारा
यहां तक कि भगवान कृष्ण – जिन्हें हम जगतगुरु कहते हैं, उन्होंने वृंदावन में अपने गुरु संदीपनी को आवश्यक समझा. श्री राम के दो गुरु थे – वशिष्ठ मुनि और कुल गुरु विश्वामित्र को. अक्सर यह स्वीकार किया जाता है कि गुरु बृहस्पति सभी देवी और देवताओं के मुख्य गुरु हैं. यदि हमारे देवताओं को गुरु होना आवश्यक लगता है तो निश्चित रूप से यह मनुष्यों के लिए भी आवश्यक होना चाहिए. गुरु आध्यात्मिक पथ पर प्रकाश डालते हैं और शिष्य को मोक्ष (मुक्ति) के लिए मार्गदर्शन करते हैं.
बौराहवा बाबा आश्रम में पहुंचे अनुयायी
वहीं असि स्थित संत शिरोमणि श्री श्री 1008 बौराहवा बाबा आश्रम में गुरु पूर्णिमा की धूम रही. इस दौरान भजन संध्या का आयोजन किया गया. दूर-दूर से पहुंचे भक्तों ने गुरु का आशीर्वाद लिया. भजन संध्या का कार्यक्रम सुबह से देर शाम तक चला. बौरहवा बाबा ने कहा कि यह सदियों पुरानी परंपरा है और बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता. भगवान को भी धरती पर अवतार लेने के बाद गुरु की शरण लेनी पड़ी. इसके बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. गुरु सत्य के मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाता है.
धर्मसंघ में उमड़ी भीड़
इसके अलावा दुर्गाकुंड के पास स्थित धर्मसंघ में गुरु पूर्णिमा पर भक्तो की भारी भीड़ उमड़ी. प्रातःकाल से ही गुरु पूजन करने के लिये नेमी धर्मसंघ पहुंचने लगे. धर्मसंघ पीठाधीश्वर स्वामी शंकरदेव चौतन्य ब्रह्मचारी ने भक्तो को आशीष दिया. उन्होंने व्यास पूजन के बाद धर्म सम्राट स्वामी करपात्रीजी की प्रतिमा का पूजन- अर्चन किया. इसके बाद ब्रह्मलीन लक्ष्मण देव चौतन्य ब्रह्मचारी की प्रतिमा का पूजन किया. इस मौके पर स्वामी शंकरदेव से आशीर्वाद लेकर भक्तों ने दीक्षा भी ग्रहण की. भजन-कीर्तन चलता रहा और वृहद भण्डारे का आयोजन किया गया.