बयानवीर नेताओं को यूपी की जनता ने दिखाया आईना

एक साल पहले मिली रिपोर्ट पर कार्रवाई न होना और प्रत्याशी न बदलना भी बना कारण

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चुनावी मंचों, पत्रकार वार्ता और चट्टी चौराहो पर उत्तर प्रदेश की 80 में से 80 सीट जीतने का दावा करनेवाले नेताओं को यूपी की जनता ने आईना दिखा दिया. मंचों से दहाड़नेवाले नेताओं के दावे और ठीक उसके विपरीत स्थितियों ने सबकुछ साफ कर दिया है. वैसे तो इस हालात तक पहुंचे की स्थिति का आंकलन तो पार्टी के रणनीतिकार करेंगे. लेकिन नतीजों पर सियासी गलियारों में जो चर्चाएं हैं कि प्रत्याशियों के न बदलने अति आत्मविश्वास के कारण ऐसे हालात बने. सियासी जानकारों का कहना है कि करीब एक साल पहले भाजपा के एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम के सर्वे में इस बात की जानकारी सामने आई थी की बहुत से नेता, सांसद और मंत्री जनता से कटे हुए हैं. इसके अलावा टिकट वितरण पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं. इसके साथ ही और भी कई सवाल उठाये जा रहे हैं. साथ ही इसका ठीकरा भी एक-दूसरे पर फोड़ने का सिलसिला चल निकला है.

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महाजनसम्पर्क अभियान में दिख गई थी जनता से जुड़ाव की हकीकत

यूपी में भाजपा के दिग्गज नेता और मोदी सरकार के कई कैबिनेट मंत्रियों को मुंह की खानी पड़ गई. इस नतीजे के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसी क्या वजह थी कि पार्टी को इस तरह का नुकसान हुआ. दरअसल भाजपा के रणनीतिकारों ने उत्तर प्रदेश में जमीनी हकीकत समझने के लिए केंद्र से अलग-अलग जिलों और लोकसभा क्षेत्रों में नेताओं को भेजा था. इस दौरान नेताओं की जनता से जुड़ाव की जमीनी हकीकत का आंकलन किया गया. इस दौरान यह बात सामने आई कि पार्टी के कई सांसद और बड़े नेता न तो भीड़ इकट्ठा कर पाए थे और न ही तय लक्ष्य पूरे कर पाए थे. स्थिति यह हो गई कि आंकलन अभियान की तारीख बढ़ानी पड़ी थी. इसे महाजनसम्पर्क अभियान का नाम दिया गया था. बताया जाता है कि नेताओं के जमीनी हकीकत की रिपोर्ट पार्टी मुख्यालय को भेजी गई. पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी इस पर नाराजगी जताई थी. इस मामले में यूपी अध्यक्ष और संगठन महासचिव से रिपोर्ट भी मांगी थी.

टिकट बचाने में कामयाब हो गये थे कई नेता

बताया जाता है कि रिपोर्ट में कई ऐसे सांसदों के नाम थे जिनके टिकट तक काटे जाने की चर्चाएं थीं. टिकट कटने के डर और कुर्सी बचाने की चिंता में परेशान ऐसे नेता दिल्ली तक की दौड़ लगाने लगे. नतीजा हुआ की जिनके टिकट काटने की चर्चा थी वह अपना टिकट बचाने में कामयाब हो गये. सूत्रों के अनुसार जिन सांसदों के टिकट काटे जाने की चर्चाएं थीं उनको दोबारा टिकट मिल गया. इन सांसदों और मंत्रियों में कई लोग हैं जो अब चुनाव हार चुके हैं. सियासी जानकारों का मानना है कि जो संकेत पिछले साल जुलाई माह में मिल गए थे उसके आधार पर कोई भी फैसला ने लेना वर्तमान नतीजे का कारण बना. परिणाम यह हुआ कि 4 जून को आए लोकसभा चुनाव के नतीजे में भारतीय जनता पार्टी का उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन बदहाल दिखा. कहा जा रहा है कि जब कई सांसदो के रिपोर्ट कार्ड ठीक नहीं थे तो उनका बदला जाना जरूरी था. लेकिन ऐसा नही हुआ. इस चुनाव में कई सांसद ऐसे थे जिन्हें स्थानीय स्तर पर विधायकों का विरोध झेलना पड़ा. इसके अलावा कई विधायकों को जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा. इसकी जानकारी पार्टी के नेताओं के पास थी लेकिन अति आत्मविश्वास में पार्टी के नेता जनता में चल रहे अंडरकरंट को समझ नही पाये या यह कह लीजिए कि उन्होंने समझने का प्रयास नही किया. बयानवीर नेता और मंत्री विपक्ष पर तीखे हमले कर मीडिया की सुखियां बटोरते रहे. उन्हें अपने बयान प्रभावी लग रहे थे. लेकिन उन्हें इसका पता ही नही चल सका कि उनकी जमीन खिसकती जा रही है.

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