लगातार जीतनेवाली मेनका गांधी को देखना पड़ गया हार का मुंह, सुल्तानपुर की जनता ने नकारा
निषाद ने 43,896 वोटों से हराकर भाजपा के थिंक टैंक को नए सिरे से सोचने को किया मजबूर
किसी ने सोचा भी नहीं था कि वर्ष 1991 से लगातार जीत हासिल कर रहीं केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को हार का मुंह देखना पड़़ेगा लेकिन हकीकत यही है कि वह सुल्ता्नपुर सीट से वह हार गईं. उनके बेटे व पूर्व सांसद वरुण गांधी ने मां की जीत के लिए खूब मेहनत की थी, लेकिन जनता ने नकार दिया. निषाद समाज से रामभुआल ने उन्हें 43,896 मतों से पराजित कर दिया. इस हार ने भाजपा के थिंक टैंक को नए सिरे से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है.
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लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी अपने दम पर बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई है. वह सिर्फ 240 सीटों के करीब ही जीतती दिख रही है. सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के चुनाव के नतीजों ने हैरान किया है. 80 सीट वाले इस सूबे से उसे करीब 35 लोक सभासीट ही मिलती दिख रही है, जबकि उसे यहां से 65 से ज्यादा सीटों पर जीत की उम्मीद थी. इस कड़ी में पूर्व केंद्रीय मंत्री और उसकी सीनियर नेता मेनका गांधी भी चुनाव हार गई हैं. मेनका सुलतानपुर से चुनाव मैदान मे थीं. मेनका को यहां समाजवादी पार्टी के रामभुआल निषाद ने 43,896 वोटों से हराया. वह लगातार दूसरी बार इस संसदीय सीट से मैदान में थी. यहां उन्होंने 2019 के चुनाव में जीत दर्ज की थी. बता दें 5 विधानसभा सीटों को मिलाकर सुल्तानपुर लोकसभा सीट बनती है, जिसमें इसौली, सुलतानपुर, सदर, लंभुआ और कादीपुर क्षेत्र आते हैं.
सुल्तानपुर में हर चुनाव में बदल जाता है राजनीतिक दल
आजादी के बाद से सुल्तानपुर ने अलग-अलग समय पर अलग राजनीतिक दलों को मौका दिया है और यहां कभी भी किसी एक राजनीतिक दल का वर्चस्व नहीं दिखा. कांग्रेस ने यहां से 8 बार जीत दर्ज की है. बहुजन समाज पार्टी ने यहां दो बार, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने चार बार जीत अपने नाम की है.
1984 में पहली बार अमेठी से चुनाव मैदान में उतरीं थी मेनका गांधी
मेनका गांधी के राजनीतिक जीवन की अगर बात करें तो अपने पति संजय गांधी की विमान हादसे में मौत के बाद अपनी सास और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनके मतभेद हो गए. उन्होंने तब उनका घर छोड़ दिया था. बाद में उन्होंने 1983 में राष्ट्रीय संजय मंच बनाया. 1984 में उन्होंने अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जहां उनकी हार हुई. बाद में 1988 में उन्होंने जनता दल ज्वॉइन किया और उसकी महासचिव बनीं. उन्होंने अपना पहला चुनाव पीलीभीत से जीता और इसके बाद वह वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में मंत्री बनीं. 1991 में वह पीलीभीत से ही चुनाव हार गईं. लेकिन इसके बाद उन्होंने 1996, 1998 और 1999 में जीत दर्ज की.
वर्ष 2004 में मेनिया गांधी ने थामा भाजपा का दामन
वर्ष 2004 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी ज्वॉइन किया और पीलीभीत से जीत अपने नाम की. 2009 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने अपने बेटे के लिए पीलीभीत सीट छोड़कर ओनला से चुनाव जीता और 2014 में एक बार फिर वह एक बार फिर पीलीभीत सीट पर लौंटी और यहां जीत दर्ज की. इसके बाद 2019 में एक बार फिर सुलतान पुर सीट पर उनकी वापसी हुई और वह यहां से जीतीं.