Varanasi: काशी न्याय समागम में भारतीय पारंपरिक विधि एवं विधिक व्यवस्था पर होगा मंथन
Varanasi: वाराणसी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का विधि संकाय अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष बड़े ही हर्ष एवं उल्लास के साथ मना रहा है. इस गौरव वर्ष को स्मृतिरूप देने के लिए संकाय द्वारा विभिन्न विषयों पर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय आयोजन किए किए जा रहे हैं. इसी क्रम में संकाय द्वारा 16-17मार्च, 2024 को भारतीय न्यायशास्त्रों पर आधारित भारतीय पारंपरिक विधि एवं विधिक व्यवस्था की समझ हेतु “काशी न्याय समागम” का आयोजन किया जा रहा है. यह द्विदिवसीय काशी न्याय समागम देश के प्रख्यात एवं सिद्ध विधिवेत्ताओं एवं न्यायविदों की गरिमामयी उपस्थिति का साक्षी बनेगा. काशी न्याय समागम विधि व न्याय के विभिन्न पहलुओं पर छः प्रकार केकार्यक्रम के माध्यम से आयोजित हो रहा है जो इस प्रकार हैं.
– राष्ट्रीय कार्यशालाः विभिन्न विचार-मंथन सत्रपर आधारित
– राष्ट्रीय सम्मेलनः भारतीयन्यायशास्त्र पर आधारित.- राष्ट्रीय परिसंवादः आपराधिक न्याय व्यवस्थामें सुधारों के संदर्भ में.
-राष्ट्रीय महासभाः भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक एवं विधिक परंपरा पर आधारित.-युवा संसद एवं युवा न्यायालय.
विधि संकाय के तत्वावधान में यह काशी न्याय समागम भारत सरकार के शिक्षा एवं संस्कृति मंत्रालय, राष्ट्रीय विधिक अधिकार परिषद चेन्नई, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद्, उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन इलाहाबाद एवं अन्य के साथ ही साथ देश के विभिन्न प्रतिष्ठित विधि विश्वविद्यालयों के सहयोग से आयोजित हो रहा है.
पूर्व न्यायमूति, न्यायविद और कुलपति ले रहें भाग
काशी न्याय समागम में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति, उच्च न्यायालयों के न्यायमूर्ति, विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, विभिन्न विश्वविद्यालयों में विधिविद्यालयों के प्रमुख, विभिन्न विधि प्राध्यापक, प्रशासनिक सेवाओं के विभिन्न अधिकारी एवं भारतीय विधिक परंपरा व न्याय प्रणाली से जुड़े विभिन्न अन्य क्षेत्रों तथा विषयों के विद्वान शामिल हो रहे हैं. विधि संकाय के प्रमुख प्रो. चंद्रपाल उपाध्याय ने कहा कि विधि संकाय पिछले 100 वर्षों से देश के विधिक शिक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है.
इस शताब्दी वर्ष के अवसर पर विधि विद्यालय हिंदू विधि शास्त्रों के विभिन्न पहलुओं की व्याख्या एवं समन्वेषण हेतु यह समागम आयोजित करने जा रहा है जिसे 1965 से ही समसामयिक संदर्भों में आयोजित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि विधि संकाय का आदर्श वाक्य “धर्मों विश्वश्य जगतः प्रतिष्ठा” है, जिसका अर्थ है “धर्म ही संपूर्णविश्व को प्रतिष्ठित एवं स्थिर करने वाला है.” हम विश्वास करते हैं कि समाजके मूल्यों को रक्षित रखने एवं उन्हें आगे बढ़ाने में विधि स्नातक छात्र-छात्राओं तथा विधिवेत्ताओं को अहम भूमिका सुरक्षित निभानी चाहिए.
छह प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन
काशीन्याय समागम की रूपरेखा एवं अपेक्षित परिणाम की चर्चा करते उन्होंने कहा की यह न्याय समागम छः प्रकार के कार्यक्रम पर आधारित है. राष्ट्रीय कार्यशाला, राष्ट्रीय सम्मेलन, राष्ट्रीय परिसंवाद एवं राष्ट्रीय महासभा जहां एक ओर भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक एवं विधिक परंपरा और आपराधिक न्याय व्यवस्था में सुधारों पर भारतीय न्यायशास्त्र परआधारित विभिन्न विचार-मंथन का अवसर प्रदान करता है तो वहीं दूसरी ओर युवा संसद एवंयुवा न्यायालय जैसे कार्यक्रम भावी विधिक एवं न्यायिक कर्णधारों को विधि एवं न्यायकी प्रक्रियात्मक झलक प्रस्तुत करते हैं.
उन्होंने आगे कहा, हमआशा करते हैं कि यह काशी न्याय समागम युवाओं में न्याय के विभिन्न पहलुओं के प्रति एक परिपक्व दृष्टिकोण का बीज अंकुरित करेगा ताकि वो किसी भी विधिक समस्या के प्रतिएक विस्तृत एवं समन्वित विचार रख सकें तथा वर्तमान की चुनौतियों के निराकरण हेतु समृद्ध पारंपरिक न्यायशास्त्रों का अनुसरण कर सकें. यह समागम देश के युवा विद्यार्थियों एवं विधिवेत्ताओं में देश के परिपक्व एवं सुदृढ़ पारंपरिक न्यायशास्त्र एवं न्याय सिद्धांत के प्रति रुचि पैदा करेगा एवं उन्हें सजग बनाएगा. साथ ही, वर्तमान में हो रहे आपराधिक कानूनोंमें परिवर्तन के प्रति एक अवलोकनात्मक दृष्टि भी देगा.
इन प्रश्नों पर होगा विचार
1. क्या भारत का आम जनमानस प्रचलितकानूनों एवं न्याय व्यवस्था से संतुष्ट एवं संयोजित है?
2. क्या वर्तमान विधि एवं न्याय व्यवस्थाकी प्रक्रिया एवं प्रचलित भाषा और शब्दावली भारतीय मूल्यों, परंपराओं एवं दर्शन से संबद्ध है?
3. विधि एवं न्याय व्यवस्था में न्यायिकप्रक्रिया एवं सिद्धांतों में भारतीय परिप्रेक्ष्य क्या है?
4. निर्णय में निष्पक्षता सुनिश्चित करनेहेतु निर्णय और न्याय के बीच बढ़ती असमानता को कैसे कम किया जा सकता है?
5. किस प्रकार भारत “भारतीय न्यायिकसिद्धांत” को अपनाकर विलंबित निर्णयों की औपनिवेशिक परंपरा को त्याग सकता है?
6.भारतीय न्याय दर्शन की आधारशिला”सर्वजन हिताय, सर्वजनसुखाय” के मूल सिद्धांत को स्पष्ट करने के लिए किन संदर्भों एवं उदाहरणों काउपयोग किया जाना चाहिए?
7.मौजूदा न्याय वितरण प्रणाली को धर्म, कर्तव्य और परंपरा के सिद्धांतों केअनुरूप बनाने के लिए कौन से प्रयास वांछनीय हैं?
8.भारतीय आम जनमानस का राजनीतिक, प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था मेंविश्वास बहाल करने हेतु किन रणनीतियों का उपयोग किया जा सकता है?
9.भारतीय समाज के भीतर “कर्तव्य कीमौलिक अवधारणा” के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैएवं आम लोगों के बीच अधिकारों से अधिक कर्तव्य पर जोर देने के लिए कौन से उपायबेहतर हैं?
10.भारतीय समाज में कर्तव्य की मूलअवधारणा पर बल देते हुए व्यक्तिगत अधिकारों के ऊपर कर्तव्य की नवीन भावना कोबढ़ावा देने के बारे में कैसे शिक्षित किया जा सकता है?
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11.मानव हृदय में सार्वभौमिक रूप से मौजूदएवं विद्वानों के बीच स्वीकार्य धर्म के सिद्धांत को व्यक्तिगत एवं कानूनी ढांचेमें किस प्रकार एकीकृत किया जाए जिससे विविध संदर्भों में सेवा, आसक्ति और घृणा से मुक्ति को बढ़ावामिल सके?
12.हमारी वर्तमान स्थिति और वांछित गंतव्यके बीच की खाई को पाटने के लिए किन कदमों को उठाए जाने की आवश्यकता है?