Ganesh Chaturthi Special : जानिए आखिर क्यों मनाई जाती है गणेश चर्तुथी…

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देश भऱ में आज गणेश चर्तुथी का पर्व मनाया जा रहा है, यह पर्व प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। विशेष तौर पर गणेश चर्तुथी का पर्व महाराष्ट्र व साउथ में मनाया जाता है, हालांकि, सोशल मीडिया के दौर ने इस पर्व को देश के हर हिस्सें तक पहुंचा दिया है। जिसके वजह से देशभर में इस पर्व की रौनक देखने को मिलती है। इस मौके पर लोग भगवान गणेश के पंडाल तैयार किया जाता है।

इसके बाद 10वें दिन पूरे विधि-विधान के साथ उनका विसर्जन किया जाता है और कामना की जाती है कि वह अगले साल फिर से नई खुशियों के साथ पधारें. इस साल गणेश चतुर्थी का पर्व 19 सितंबर को शुरू होगा और 28 सितंबर को इसका समापन होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर गणेश चर्तुथी का पर्व देशभर में इतनी धूमधाम के साथ क्यों मनाया जाता है? आखिर क्यों गणेश जी की स्थापन की जाती है और फिर उनका विसर्जन करते हैं?

क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी ?

आज देश भर में गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाया जा रहा है और ये त्यौहार मनाने के पीछे एक खास वजह बताई जाती है। बीते समय की पौराणिक कथाओं के अनुसार, आज के दिन यानी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि गणेश जी का जन्म हुआ था। जिसकी वजह से यह दिन गणेश चर्तुथी के रूप में मनाया जाता है, इस अवसर पर लोग अपने घरों में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना कर विधि-विधान से उनका पूजन कर यह त्यौहार मनाते है।

गणेश की पौराणिक कथा

गणेश चतुर्थी पर कही जाने वाली पौराणिक कथा में बताया गया है कि, एक बार माता पार्वती ने स्न्नान के लिए जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे गणेश नाम दिया। पार्वतीजी ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे, ऐसा कहकर पार्वती जी अंदर नहाने चली गई। जब भगवान शिव वहां आए ,तो बालक ने उन्हें अंदर आने से रोका और बोले अन्दर मेरी माँ नहा रही है, आप अन्दर नहीं जा सकते।

शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया, कि पार्वती मेरी पत्नी है। पर गणेशजी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेशजी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गये, जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गये। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण क्र लिया और कहा कि जब आप मेरे पुत्र को वापिस जीवित करेंगे तब ही मैं यहाँ से चलूंगी अन्यथा नहीं।

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शिवजी ने पार्वती जी को मनाने की बहुत कोशिश की पर पार्वती जी नहीं मानी। सारे देवता एकत्रित हो गए सभी ने पार्वतीजी को मनाया पर वे नहीं मानी। तब शिवजी ने विष्णु भगवान से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आये जिसकी माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। विष्णुजी ने तुरंत गरूड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाये। गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी।

गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह सिर गणेश जी के लगाया और गणेश जी को जीवन दान दिया,साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कही भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी। इसलिए हम कोई भी कार्य करते है तो उसमें हमें सबसे पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए, अन्यथा पूजा सफल नहीं होती।

क्य़ों किया जाता है विसर्जन ?

गणेश चतुर्थी के त्यौहार पर लोग अपने घरों में गणेश जी की मूर्ति को स्थापित करते है और 10वें दिन उनका विसर्जन किया जाता है। ऐसे में कई लोगो के मन में उठने वाला यह सवाल गलत है, लेकिन आखिर बुद्धि के देवता कहे जाने वाले भगवान गणेश का विसर्जन क्यों किया जाता है?

विसर्जन को लेकर कही जाने वाली पौराणिक कथा में बताया गया है कि, महर्षि वेदव्यास जी ने भगवान गणेश जी से महाभारत की रचना को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की थी। जिसके बाद गणेश चतुर्थी के दिन ही व्यास जी ने श्लोक बोलना और गणेश जी ने उसे लिपिबद्ध करना शुरू किया था। बिना रूके 10 दिन तक लगातार लेखन किया और 10 दिनों में गणेश जी पर धूल-मिट्टी की परत चढ़ गई। गणेश जी इस परत को साफ करने के लिए 10वें दिन सरस्वती नदी में स्नान किया और इस चतुर्थी थी। तभी से गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है और गणेश जी का विधि-विधान से विसर्जन किया जाता है

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