‘गंदा है पर धंधा है…’ इस तर्ज को समझाती हैं वैश्यावृत्ति पर बनी यें 9 फिल्में… किसी ने मानी हार तो किसी ने बदला समाज
आज भी हमारे समाज में वैश्यावृत्ति यानी प्रॉस्टीट्यूट शब्द लेना भी समाज को कलंकित करने के समान ही माना जाता है। मगर वेश्यावृत्ति दुनिया का सबसे पुराना व्यवसाय है। वैश्यावृत्ति का पेशा आज या किसी एक दौर का नही है बल्कि सदी के हर दौर में यह किसी न किसी रूप में संचालित हो रहा है। समाज भले ही इन वैश्याओं को निकृष्ट नजरों से देखता है, लेकिन वैश्यावृत्ति के बाजार में इन वैश्याओं की भी एक अलग पहचान होती है। जानकर हैरानी होगी कि तिरस्कार-बेशर्मी जैसे अनुभूतियों से दूर इन वैश्याओं के लिए भी एक खास दिन होता है। जिसे यौन कर्मी दिवस के रूप में जाना जाता है। यह आज 2 जून के दिन मनाया जाता है। इस दिन दुनिया भर के वैश्यालयों में यौन कर्मी अपने पेशे की उन्नति के लिए जश्न मनाते हैं।
फिल्मों में वैश्याओं का पॉजिटिव चित्रण
लगभग समाज के हर कोने में इसे गंदगी का डेरा कहा जाता है, लेकिन वैश्यावृत्ति को कानूनी तौर पर वैध करार कर दिया गया है। समय-समय पर कई वैश्याओं ने आगे बढ़कर वैश्याओं के अधिकारों के लिए आवाज भी उठाई है। इन्हीं सच्ची घटनाओं पर आधारित कई फिल्में भी बनी है। जिनमें फिल्ममेकर्स ने वैश्याओं का पॉजिटिव चरित्र चित्रण किया है। आज हम इन्हीं फिल्मों के बारे में बात करेंगे। इन फिल्मों ने समाज में वैश्यावृत्ति को एक पेशा और वैश्याओं को भी समाज का हिस्सा बताने का प्रयास किया है। फिर चाहे वह प्यासा की वहीदा रहमान हो, उमरावजान की रेखा, चरित्रहीन की सुष्मिता सेन हो और जूली की नेहा से लेकर गंगू बाई काठियाबाड़ी की आलिया भट्ट हो, बॉलीवुड की इन फिल्मों ने सेक्स वकर्स के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया है…
6 दशकों से सेक्स वर्कर्स पर बन रहीं फिल्में
सालों से दुनिया भर के कई फिल्म निर्माताओं के पास यौनकर्मियों के समाज के बहिष्करण के बारे में कहने के लिए बहुत कुछ है। निश्चित रूप से, सिनेमा में उनके प्रतिनिधित्व से दशकों से यौनकर्मियों के प्रति समाज के दृष्टिकोण के बारे में बहुत कुछ सीखा जा सकता है। पिछले छह दशकों से दुनिया भर में सेक्स वर्कर्स के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती कई फिल्में बनी है। जिनके नाम हैं…
- प्यासा (1957)
- कैबिरिया की रातें (1957)
- मंडी (1983)
- लक्ष्मी (2014)
- उमराव जान (1981)
- चमेली (2004)
- देव डी (2009)
- चांदनी बार (2001)
- लागा चुनरी में दाग (2007)
1. कैबिरिया की रातें
1957 की ऑस्कर विजेता फिल्म नाइट्स ऑफ कैबिरिया में , इतालवी फिल्म निर्माता फेडेरिको फेलिनी कैबिरिया की कहानी कहते हैं – रोम में रहने वाली एक वेश्या जो सच्चे प्यार की अंतहीन खोज करती है। उसके आस-पास के लोग उसके साथ अवमानना करते हैं लेकिन कैबिरिया अस्थिर है, उसके पास सोने का दिल है।
2. प्यासा
साल 1957 में आई फिल्म ‘प्यासा’ एक अकेले और बेरोजगार युवा कवि की कहानी पर आधारित है। गुरुदत्त की इस फिल्म के आखिर में यह कवि गुलाबो नाम की वेश्या के साथ अपनी जीवन गुजारने का फैसला करता है। समाज के ऊंचे लोगों के बीच उसे जो जगह नहीं मिली, वह भद्रता और सभ्यता उसे गुलाबो में मिलती है
3. मंडी (Mandi)
श्याम बेनेगल के निर्देशन मेें बनी फिल्म मंडी साल 1983 में रिलीज हुई थी। यह फिल्म पाकिस्तानी लेखक गुलाम अब्बास की कहानी पर आधारित है। फिल्म में भ्रष्ट और दोहरे मर्दवादी समाज को दिखाया गया है, जो नैतिकता के नाम पर वेश्याओं और उनके पेशे से घृणा करते हैं।
4. उमराव जान
1981 की मुजफ्फर अली निर्देशित भारतीय फिल्म उमराव जान को कई लोगों ने लखनऊ की तवायफ संस्कृति के सम्मान के रूप में देखा होगा, लेकिन यह केवल एक खोई हुई परंपरा के अवशेष की पूजा करने से कहीं अधिक हासिल करती है। फिल्म अमीरन नाम की एक लड़की के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे वेश्यावृत्ति के लिए बेच दिया जाता है। अमीरन को पुरुषों को लुभाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और वह उमराव जान के रूप में बड़ा होता है ।उमराव जान में, मुजफ्फर अली, सेक्स वर्कर्स के बारे में कई भारतीय फिल्मों के विपरीत, साहसपूर्वक एक यथार्थवादी चरमोत्कर्ष चुनता है जो अमीरन के पुनर्वास में समाप्त नहीं होता है।
5. मंडी
भारतीय फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल की 1983 की फिल्म मंडी, पाकिस्तानी लेखक गुलाम अब्बास की एक छोटी कहानी पर आधारित है, जो एक भ्रष्ट पितृसत्तात्मक समाज के पाखंड को उजागर करती है जो नैतिकता के नाम पर वेश्याओं को नीची नजर से देखता है।
वही पुरुष जो रात के अंधेरे में अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए वेश्यालय जाते हैं, वे दिन के उजाले में इसे स्थानांतरित करने की बात करते हैं।
6. चमेली
2004 की हिंदी फिल्म चमेली एक विधुर और एक सड़क-स्मार्ट वेश्या के बीच प्लेटोनिक दोस्ती की संभावना की पड़ताल करती है।
फिल्म पहले तो समाज में एक वेश्या की भूमिका से जुड़ी रूढ़ियों को निभाती है लेकिन अंततः उन्हें पार करने में सफल होती है।
सुधीर मिश्रा द्वारा निर्देशित फिल्म चमेली साल 2004 में रिलीज की गई थी। फिल्म की कहानी एक ऐसे आदमी के ईर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी पत्नी के मरने के बाद एक वेश्या के साथ काल्पनिक प्यार करने लगता है। शुरुआत में तो फिल्म वेश्यावृत्ति से जुड़ी पारम्परिक धारणाओं को दिखाती है, लेकिन बाद में यह फिल्म उन चीजों से आगे निकल जाती है।
7. टिकली और लक्ष्मी बम
भारतीय लेखक-निर्देशक आदित्य कृपलानी की टिकली और लक्ष्मी बम , जिसने हाल ही में 2018 बर्लिन इंडिपेंडेंट फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार जीता, मुंबई में रहने वाली दो वेश्याओं, लक्ष्मी और पुतुल के जीवन का अनुसरण करती है। लक्ष्मी यौनकर्मियों के एक समूह की नेता है लेकिन जब एक युवा वेश्या पुतुल गिरोह में शामिल होती है, तो वह लक्ष्मी से उन दलालों के एकाधिकार के बारे में सवाल करना शुरू कर देती है जो उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा ले लेते हैं।
लक्ष्मी ने पुतुल को अधिक गंभीरता से लेना शुरू कर दिया और उन लोगों से व्यवसाय की बागडोर संभालने का फैसला किया जो अब तक इसे नियंत्रित करते थे। बेशक, स्वतंत्र होना गुच्छा के लिए आसान काम नहीं है। इसका अर्थ है कि उन्हें अब पुलिस सुरक्षा प्राप्त नहीं है और वे सभी प्रकार के खतरों के प्रति संवेदनशील हैं। लेकिन, लक्ष्मी और पुतुल अपने आस-पास के बेईमान पुरुषों से प्रभावित नहीं हैं। वे दो स्मार्ट उद्यमियों के रूप में काम करना शुरू करते हैं जो जानते हैं कि अपने व्यवसाय को चालू रखने के लिए क्या करना पड़ता है। टिकली और लक्ष्मी बम दुर्लभ संवेदनशीलता की फिल्म है।
8. जूली
जब गोवा की एक पड़ोस की लड़की जूली ( नेहा धूपिया ) को उसका प्रेमी नील ( यश टोंक ) छोड़ देता है , तो वह मुंबई चली जाती है । वहां, वह अपने बॉस रोहन ( संजय कपूर ) के साथ अंतरंग हो जाती है। दिल टूटने वाली और भावनाहीन, वह प्यार में विश्वास खो देती है और कॉल गर्ल बनने का फैसला करती है । मिहिर शांडिल्य ( प्रियांशु चटर्जी ), एक बहु-करोड़पति और सबसे योग्य कुंवारे लोगों में से एक के साथ एक मौका मुलाकातशहर में, एक दूसरे के लिए उनकी तुरंत पसंद की ओर जाता है। मिहिर उसकी सुंदरता पर पूरी तरह से मुग्ध है और एक पारिवारिक व्यक्ति होने के नाते, उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखता है। सब ठीक है सिवाय इसके कि मिहिर और उसका परिवार इस तथ्य से अनजान हैं कि जूली एक हाई-प्रोफाइल वेश्या है । एक टीवी साक्षात्कार के दौरान, मिहिर ने जूली का उल्लेख करके सभी को चौंका दिया कि वह अपने जीवन में ‘कोई विशेष’ है। जूली अब दुविधा में है। कैसे वह अपने होने वाले पति को अपने सामाजिक रूप से अस्वीकार्य पेशे के बारे में बताती है और अगर मिहिर उसके रूपों को स्वीकार करता है तो बाकी कहानी।
9. लागा चुनरी में दाग
लागा चुनरी में दाग एक बॉलीवुड ड्रामा फिल्म है जिसका निर्देशन प्रदीप सरकार ने किया है। फिल्म में अभिषेक बच्चन, जया बच्चन, रानी मुखर्जी, कोंकर्णा सेन शर्मा आदि मुख्य भूमिकाओं में हैं। 2007 में आई इस फिल्म की कहानी रानी मुखर्जी और उनके परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है। पैसों की तंगी के चलते परिवार की मदद करने के लिए बड़की का किरदार निभाने वाली रानी बनारस से मुंबई जाने का फैसला करती है। लेकिन कम पढ़ी-लिखी होने की वजह से उसे कोई नौकरी नहीं मिलती। जिसके बाद हारकर वह जिस्म का सौदा कर अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करती है।
समाज में वैश्याओं को दें आगे बढ़ने का मौका
वैश्यावृत्ति पर आधारित इन फिल्मों की कहानी पर गौर करेंगे तो आप देखेंगे कि लगभग हर कहानी में वैश्याओं का जीवन एक चुनौती से कम नही रहा है। ये वैश्याएं कभी हालातों से मजबूर होकर तो कभी अपनी मर्जी से इस पेशे में आती है और फिर यहीं की होकर रह जाती हैं। जबकि कुछ वैश्याओं को जबरन इस धंधे में ढकेल दिया जाता है। मगर इसके इतर भी, इन वैश्याओं की जिंदगी होती है, कई बार इनमें से कुछ इस धंधे से बाहर निकलर सामान्य जीवन जीना चाहती हैं, लेकिन समाज इन्हें इसकी इजाजत नहीं देता है। वहीं कुछ वैश्या अपने कानूनी अधिकारों और सामाजिक समावेश को हासिल करने के लिए समाज से लड़ाई भी लड़ती हैं। ऐसे में जरूरी है कि वैश्याओं को भी समाज में उचित सम्मान मिलें। जिससे वो खुद को केवल कलंक न समझें। क्योंकि खुद कानून ने भी वैश्यावृत्ति को वैध कर दिया है।
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