असमान बारिश का असर पूर्वोत्तर भारत पर पड़ेगा
असमान बारिश का असर इस साल भी भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। खासकर पूर्वोत्तर भारत मानसून की असमान बारिश का सामना कर रहा है। असम और दूसरे पूर्वोत्तर के राज्य बाढ़ की मार झेल रहे हैं। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) की एक रिपोर्ट के अनुसार बीते साल सिक्किम के अलावा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में मानसून (जून-सितंबर) के दौरान कम बारिश हुई। यही हाल गुजरात, महाराष्ट्र व राजस्थान के कुछ इलाकों का भी है।
आईएमडी की रिपोर्ट में कहा गया, “असम व मेघालय उप प्रभाग और अरुणाचल उप-प्रभाग में चार महीने के मानसून अवधि के पहले दो महीने (जून व जुलाई) में करीब 20-21 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई।”
इसमें कहा गया, “नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम व त्रिपुरा उप-प्रभाग में जून व जुलाई में 12 फीसदी अतिरिक्त बारिश दर्ज की गई।” पूर्वोत्तर के सात राज्यों को तीन उप-प्रभागों में बांटा गया है। इसमें असम व मेघालय, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा शामिल हैं।
आईएमडी रिपोर्ट के अनुसार, असम व मेघालय उप-प्रभाग में जून व जुलाई में औसत 1,068.3 मिमी के मुकाबले 849.8 मिमी बारिश दर्ज की गई। अरुणाचल प्रदेश उप-प्रभाग में इस अवधि में औसत 1,047.1 मिमी के मुकाबले 824.8 मिमी बारिश दर्ज की गई।
नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम व त्रिपुरा उप-प्रभाग में औसत 840.3 मिमी के मुकाबले 938.2 मिमी बारिश दर्ज की गई।इसका वहां की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ने की संभावना है।
‘मानसून ‘ शब्द अरबी शब्द ‘मौसम’ से बना है और इसका अर्थ होता है हवा की दिशा में मौसमी बदलाव. भारत में दक्षिणझ्र पश्चिम मानसून जून की शुरूआत में पहुंचता है और सितंबर तक रहता है। इसी समय भारत को सबसे अधिक वर्षा जल प्राप्त होता है।
खास वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि और मुद्रास्फीति की संभावनाओं का पता लगाने में मानसून का आगमन और उसकी असमानता बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
दीर्ध कालिक औसत के लिए जब वर्षा 96% से 104% के बीच हो तो उसे सामान्य कहा जाता है।
अब तक वर्षा अपने वितरण में असमान रही है, जिसका अर्थ है जहां कुछ इलाकों में बहुत अधिक और यहां तक कि जानलेवा बाढ़ तक आई वहीं दूसरी तरफ कई इलाकों में सूखा पड़ा।
कृषि पर प्रभाव- बतौर कृषि प्रधान देश भारत की जहां करीब 60% आबादी आज भी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर करती है। हमारे देश के फसल क्षेत्र का कुल 40% पूरी तरह से मानसून पर निर्भर करता है। बुआई के लिए जुलाई का महीना बहुत महत्वपूर्ण होता है और खाद्यान्न उत्पादन से इसका बहुत गहरा संबंध है। मुख्य खरीफ फसल-धान की बुआई-उत्तरपश्चिम इलाकों, जहां से कुल चावल उत्पादन का 29% आता है, में अच्छी वर्षा हुई है और वहां धान की फसल भी अच्छी है।
असामान्य मानसून खाद्य पदार्थों की कीमतों को बढ़ा सकता है, जिसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
खराब मानसून का एफएमसीजी सेक्टर पर कई हानिकारक प्रभाव पड़ेंगे। ऐसा मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में होगा और इनपुट लागत में काफी बढ़ोतरी हो जाएगी।
वर्तमान स्थिति में मानसून की कमी से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति बनाने की जरूरत है और जलवायु अनुकूल फसलों की किस्मों की खोज, सिंचाई पारिस्थितिकी को विकसित कर वर्षा पर निर्भरता को कम करना, गैर-कृषक गरीबों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाना, खेती के कौशल में सुधार, फार्म-टू-फोर्क ट्रांजैक्शन चेन में बड़ा परिवर्तन करने आदि शामिल किया जाना चाहिए।
सितंबर तक कितनी बरसात होगी, इसके बाद ही स्थिति का सही आकलन संभव होगा।