BSP MP रितेश पांडे ने शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार से पूछे सवाल
यूपी के अंबेडकर नगर से बसपा सांसद रितेश पांडे ने शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार से सवाल किये है. दरअसल, बुधवार को राज्यसभा में शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने बताया कि हमारे देश में 2021-22 में लगभग 20 हज़ार विद्यालय बंद हुए तथा लगभग 1.9 लाख शिक्षकों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. इस मुद्दे पर रितेश पांडे ने एक पत्र लिखकर बंद हुए स्कूलों और हटाए गए शिक्षकों के बारे में सरकार को गंभीरता से चर्चा करने के लिए कहा है.
रितेश पांडे ने पत्र में लिखा मैं अत्यावश्यक महत्व के एक निश्चित मामले पर चर्चा करने के उद्देश्य से सदन के कार्य को अस्थगित करने के लिए प्रस्ताव पेश करने की अनुमति मांगने के अपने इरादे की सूचना देता हूं, अर्थात् देश के भविष्य को निर्माण करने में शिक्षा व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है. विद्यालय और शिक्षक इस व्यवस्था के दो आधार स्तंभ है. 2020-21 में देश में निजी और सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों को मिलाकर 15,09,136 स्कूल थे. 2021-22 में संख्या घटकर 14,89,115 रह गई.
इस अवधि के दौरान शिक्षकों की संख्या 96,96,425 से घटकर 95,07,123 हो गई. इस तरह 2021-22 में लगभग 20,000 स्कूल बंद कर दिए गए और लगभग 1.9 लाख शिक्षकों ने अपनी नौकरी खो दी. सदन की कार्यवाही को अस्थगित करके इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सदन को संज्ञान लेना चाहिए और सरकार को देश में शिक्षा व्यवस्था के तमाम खामी पर गंभीरता से चर्चा करनी चाहिए.
बसपा सांसद रितेश पांडे के मुताबिक, सरकार ने स्कूल बंद करने के दो कारण बताये हैं. पहला- कम छात्रों वाले सरकारी स्कूलों का विलयन तथा महामारी में निजी स्कूलों का बंद होना. दूसरा- वर्ष 2018-19 और 2020-21 के बीच लगभग 50 हज़ार सरकारी स्कूलों का विलय किया गया है.
उन्होंने कहा कि अब यहां कुछ प्रश्न उठते हैं. क्या सरकार ने कम छात्रों वाले स्कूलों को बड़े विद्यालयों के साथ मिलाने के कार्य की समीक्षा की है? इससे शिक्षकों की बहाली पर क्या असर पड़ा है? निजी स्कूलों के छात्रों का कोई आकलन हुआ या नहीं? समुचित संख्या में स्कूल और शिक्षक नहीं होंगे, तो फिर शिक्षा का क्या होगा, जब प्रारंभ में ही रास्ता बंद हो जाये?
संसाधनों और सुविधाओं की भारी कमी भी है. उत्तर, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के गांवों में स्थिति चिंताजनक है. ‘पढ़ेगा इंडिया, तभी बढ़ेगा इंडिया’ और ‘स्कूल चलें हम’ जैसे नारे केवल नारे नहीं रह जाने चाहिए. देश की स्कूली शिक्षा पर संसद में विशेष चर्चा होनी चाहिए तथा एक संपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित की जानी चाहिए.