नर्मदा की मिट्टी में मिल गया गांधी का ‘राजघाट’
मध्यप्रदेश में नर्मदा तट पर स्थित महात्मा गांधी का दूसरा राजघाट गुरुवार को मिट्टी में मिल गया। यहां लोग सत्य, अहिंसा और शांति की प्रेरणा लेने आते थे। ऐसे गांधीवादियों को कुछ दिन बाद वहां सिर्फ पानी ही पानी नजर आएगा। प्रशासन ने दूसरे स्थान पर गांधी स्मारक बनाने के मकसद से इस राजघाट के अवशेषों को सुरक्षित निकाल लिया है।
सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने से मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित ‘राजघाट’ भी डूब में आने वाला था। प्रशासन ने इस स्थल को दूसरी जगह शिफ्ट कराने की योजना बनाई। इस काम के लिए सरकार ने हालांकि सिर्फ सवा लाख रुपये ही मंजूर किए हैं।
जब गांधीवादी चिंतक और कवि बालकवि बैरागी से ‘राजघाट’ को तोड़े जाने की चर्चा की, तो यह बात सुनते ही वह विचलित हो गए। उन्होंने कहा, “राजघाट को तोड़ने से बेहतर था कि उसे जलमग्न हो जाने दिया जाता। अब खंडहर जलमग्न होगा जो ठीक बात नहीं है। जिन्होंने ऐसा किया है, उनके लिए यही कह सकता हूं कि ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे। मगर यह अच्छा नहीं हुआ। इस राजघाट को जलमग्न हो जाने देते और दूसरे स्थान पर नया गांधी स्मारक बना देते तो कोई ऐतराज नहीं था।”
बैरागी ने चंबल नदी पर गांधी सागर बांध बनने के समय को याद करते हुए कहा, “उस दौर में भी ढाई सौ गांव और कई धार्मिक स्थल जलमग्न हुए थे, मगर किसी को तोड़ा नहीं गया था। राजघाट को क्यों तोड़ा गया, यह मेरी समझ से परे है।”
वहीं बड़वानी के जिलाधिकारी तेजस्वी नायक ने बताया कि जिस चबूतरे पर महात्मा गांधी की देह-राख रखी हुई थी, वह पूरी तरह कंक्रीट का बना हुआ था। उस समूचे चबूतरे को जेसीबी मशीन की मदद से जस का तस निकाल लिया गया है, किसी तरह की क्षति नहीं हुई है। अब दूसरी जगह अस्थायी स्मारक बनाया जाएगा। आपसी सहमति से भव्य स्मारक बनाने की योजना है।
गांधीवादी और अहिंसा के प्रेमियों के लिए बड़वानी का ‘राजघाट’ दिल्ली के ‘राजघाट’ से कम महत्व का नहीं था, क्योंकि यहां बनाई गई समाधि में केवल महात्मा गांधी की ही नहीं, कस्तूरबा गांधी और उनके सचिव रहे महादेव देसाई की देह-राख (एश) रखी हुई थी। गुरुवार की सुबह इस स्थान पर जेसीबी मशीन चलते देखकर कुछ लोग भड़क उठे, मगर पुलिस ने उन्हें काबू में कर लिया।
‘राजघाट’ पर जेसीबी चलाने का विरोध करने वालों में नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर भी थीं। वह ‘हे राम’ लिखे शिलालेख को ढहते देखकर भाव-विह्वल हो उठीं। यही वह स्थान था, जहां से मेधा बीते साढ़े तीन दशक से नर्मदा घाटी के लोगों के लिए लड़ाई लड़ती आ रही थीं।
तीनों महान विभूतियों की देह-राख यहां गांधीवादी काशीनाथ त्रिवेदी जनवरी, 1965 में लाए थे और समाधि 12 फरवरी, 1965 को बनकर तैयार हुई थी। इस स्थल को ‘राजघाट’ नाम दिया गया था। त्रिवेदी ने इस स्थान को गांधीवादियों का तीर्थस्थल बनाने का सपना संजोया था, ताकि यहां आने वाले लोग नर्मदा के तट पर गांधी की समाधि के करीब बैठकर अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ सकें।
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समाधि स्थल पर संगमरमर के दो शिलालेख लगे थे। एक पर ‘हे राम’ लिखा था और दूसरे पर ‘यंग इंडिया’ में 6 अक्टूबर, 1921 को महात्मा गांधी के छपे लेख का अंश दर्ज है। इसमें लिखा है, ‘हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति और हमारा स्वराज अपनी जरूरतें दिनों दिन बढ़ाते रहने पर, भोगमय जीवन पर, निर्भर नहीं करते, बल्कि अपनी जरूरतों को नियंत्रित रखने पर, त्यागमय जीवन पर निर्भर करते हैं।’
गांधीवादियों को लगता है कि शिवराज सरकार की मंशा इस राजघाट को दूसरे स्थान पर ले जाकर भव्य स्वरूप देने की नहीं है, तभी तो राज्य सरकार के नर्मदा घाटी विकास मंत्री लाल सिंह आर्य ने विधानसभा में कहा कि नया गांधी स्मारक कुकरा गांव के पास बनाया जाएगा। इसके लिए बड़वानी के जिलाधिकारी के खाते में एक लाख 25022 रुपये जमा कराए गए हैं। सवाल उठ रहा है कि इतनी कम रकम में क्या निर्धारित जमीन का समतलीकरण भी हो पाएगा?
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दरअसल, सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाकर 138 मीटर की जा रही है। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यप्रदेश और गुजरात सरकार को निर्देश दिए हैं कि 31 जुलाई के पहले पुनर्वास का काम पूरा हो जाए और उसके बाद ही उस ऊंचाई तक पानी भरा जाए। बांध की ऊंचाई बढ़ने से मध्यप्रदेश के 192 गांव और एक शहर के लगभग 40 हजार परिवार प्रभावित होने वाले हैं। साथ ही दूसरे राजघाट का नर्मदा नदी में समा जाना तय था।
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