पहले भी पत्रकारों पर चली है गोली, बेखौफ हो गए बदमाश या वजह है कुछ और…

पत्रकार एनडी तिवारी की गोली मारकर हत्या की घटना से हर कोई हतप्रभ है. लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि एक सम्मानित पेशे से जुड़ा व्यक्ति बदमाशों की गोलियों का शिकार क्यों हुआ.

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पत्रकार एनडी तिवारी की गोली मारकर हत्या की घटना से हर कोई हतप्रभ है. लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि एक सम्मानित पेशे से जुड़ा व्यक्ति बदमाशों की गोलियों का शिकार क्यों हुआ. लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब किसी पत्रकार पर गोली चली हो. बीते एक सालों की बात करें तो बनारस में ही कई पत्रकारों को बदमाश गोलियों का निशाना बना चुके हैं. वहीं यूपी की बात करें तो कई पत्रकारों की गोली मारकर हत्या कर दी गयी है. सवाल यह उठता है कि पत्रकारों पर इस तरह के हमलों की वजह क्‍या है. क्‍या बदमाशों बेखौफ हो गये हैं या पुलिस अपराध को रोक पाने में नाकाम साबित हो रही है.

घर पर मारी थी पत्रकार को गोली

रोहनिया के रहने वाले पत्रकार नाराणय दत्त तिवारी (एनडी) को बदमाशों ने पांच गोलियां मारी. हत्या की वारदात को अंजाम देने वाले यह तय करके आए थे कि उनकी जान लेकर ही जाएंगे. एनडी खुद काफी सतर्क रहते थे. आत्मरक्षा के लिए लाइसेंसी असलहा भी लेकर चलते थे लेकिन बदमाशों ने उन्हें संभलने का मौका ही नहीं दिया. ताबड़तोड़ पांच गोलियां उनके बदन में उतार दीं. इसके पहले भी पत्रकारों पर हमले हुए हैं. इनमें एक चर्चित मामला था एक दैनिक समाचार पत्र से जुड़े पत्रकार दिनेश पांडेय का. चौबेपुर थाना क्षेत्र के चिरईगांव एरिया के रहने वाले दिनेश को बदमाशों ने उनके घर पर चढ़कर गोली मारी. गोली सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि उनके बेटे को मारी गयी. बदमाशों की चलायी गयी गोली एक गाय को भी लगी जिसकी जान चली गयी. गोली का शिकार हुए पिता-पुत्र को हास्पिटल में एडमिट कराया गया. काफी इलाज के बाद दोनों की जान बच सकी.

बदमाश की खबर छापना पड़ा महंगा

एक दैनिक समाचर पत्र से जुड़े चोलापुर के रहने वाले पत्रकार सोनू की गलती बस इतनी थी कि उसने इलाके के शातिर बदमाश की खबर को अपने न्यूज पेपर में दिया था. बदमाश को यह बात इतनी नागवार गुजरी की उसने सोनू पर हमला कर दिया. डेढ़ साल पहले मार्केट से घर लौट रहे सोनू पर लक्ष्य करके बदमाशों ने गोली चलायी गनीमत रही कि गोली सोनू को लगी नहीं और उन्होंने भागकर अपनी जान बचायी. वहीं पिण्डरा के रहने वाले पत्रकार प्रशांत त्रिपाठी को बदमाशों ने खबर छापने पर धमकी दी. हमले की नियत से एक-दो बार पीछा भी किया लेकिन मामला पुलिस के संज्ञान में आने पर प्रशांत खतरे से बच गए.

बनारस शहर के अपराध को पत्रकार के नजरिए से देखते हुए सीनियर क्राइम रिपोर्टर दिनेश सिंह कहते हैं कि बदमाशों को अब इस बात का खौफ नहीं रहा कि उनका अंजाम क्या होगा ? वो बेखौफ होकर किसी भी घटना को अंजाम दे रहे हैं. उन्हें पुलिस या कानून का डर नहीं है. उन्हें एहसास है कि अगर पकड़े गए तो किसी सफेदपोश का हाथ उन पर आ जाएगा और उन्हें बचा लेगा.

यह भी पढ़ें- बनारस में बदमाशों ने दी पुलिस को चुनौती, पत्रकार की गोली मारकर हत्या

यूपी की बात करें तो पत्रकारों पर कई हमले हुए हैं. बीते साल में दो एसी घटनाएं हुईं जिसने सबका दिल दहला दिया. 22 जुलाई 2020 को बदमाशों ने पत्रकार विक्रम को सरेराह गोलियों से भून डाला. जिस वक्त यह घटना हुई उस वक्त उनकी बेटियां भी उनके साथ थीं. अपने आंखों के सामने पिता को मरते देखना उनके लिए बेहद खौफनाक था. विक्रम की गलती बस इतनी थी कि उन्होंने अपनी भांजी को छेड़ने वालों के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी. इस घटना के लगभग एक महीने बाद बलिया के फेफना में बदमाशों ने पत्रकार रतन सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी. रतन की गिनती उन चुनिंदा पत्रकारों में होती थी जो बेखौफ रिपोर्टिंग करते थे. यही बात बदमाशों को खल गयी थी.

सीनियर क्राइम रिपोर्टर कमलेश चतुर्वेदी पत्रकारों पर बढ़ते हमले के लिए कुछ हद तक इस पेशे से जुड़े लोगों को मानते हैं. उनका कहना कि सम्मान और सेवा से जुड़े इस पेशे की आड़ में तमाम लोग अपराध और अपराधियों की मदद भी कर रहे हैं. कुछ लोगों ने इस पेशे की आड़ में कमाई के दूसरे रास्‍ते भी बनाये हैं. पत्रकार और अपराधियों के गठजोड़ से भी अपराधियों का हौसला बढ़ा रहा है वो पत्रकारों को भी अपना निशाना बनाने से हिचक नहीं रहे हैं.

नयी व्‍यवस्‍था के लिए चुनौती

बनारस को पुलिस कमिश्नरेट बनाने का उद्देश्य अपराध पर लगाम लगाना है. महज 24 घंटे के अंदर दो हत्याएं हो गयीं. बदमाशों ने पत्रकार एनडी तिवारी की गोली मारकर हत्या कर दी. वहीं लंका जैसे भीड़-भाड़ वाले इलाके युवकों ने फल विक्रेता दो सगे भाइयो को चाकू मार दिया. इस घटना में एक की मौत हो गयी जबकि दूसरा जिंदगी और मौत से जूझ रहा है. वारदात तो अंजाम देने वाले बीएचयू के स्टूडेंट्स बताए जा रहे हैं. कमिश्नरेट व्यवस्था में पुलिस को तमाम अधिकार देने के साथ ही जिले तो दो हिस्सों में बांट दिया गया है. शहर के 18 थानों की कमान कमिश्नर आफ पुलिस को दी गयी और ग्रामीण एरिया के थानों की व्यवस्था आईजी संभाल रहे हैं. इन दिनों हर शाम को हर थाने की पुलिस इलाके में गश्त कर रही है लेकिन बदमाशों पर इसका कोई फर्क नहीं है.

रिपोर्ट- देवेन्द्र सिंह, वाराणसी

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