क्या क्लाइमेट चेंज बन पाएगा बंगाल चुनाव का बड़ा मुद्दा ?
बंगाल में चुनाव है और चुनावी मुद्दें धीरे-धीरे सामने आएंगे। मेरे पास इसके चुनाव का एक बड़ा मुद्दा है जिसे सब कोई दरकिनार कर देता है। क्लाइमेट चेंज पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा मुद्दा है लेकिन हमारे देश में इस मुद्दें पर बस बात किया जाता है। कार्बन एमिशन में पश्चिम बंगाल देश में पहले नंबर है। यानि इसका मतलब ये है कि देश में सबसे ज़्यादा कार्बन पश्चिम बंगाल से उत्सर्जित होता है।
पॉवर जेनेरशन के लिए कोल की ज़रूरत होती है। बंगाल जिस कोल को खरीदता है उसकी क्वालिटी बहुत ही ख़राब ही है जिसकी वजह से वहां की एयर क्वालिटी भी ख़राब हो चुकी है। सीएसई की रिपोर्ट में जो एनालिसिस की गई है उसमे पावर स्टेशनों में क्लाइमेट चेंज और एनवायर्नमेंटल मानदंडों का अनुपालन नहीं किया गया है।
सरकारी मापदंडों को पालन में चूक-
ध्यान रहे कि पहले से ही सल्फर डाई आक्साइड के मानदंडों को कमजोर करने के लिए दबाव बना हुआ है। दिसंबर, 2015 में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कण पदार्थ, नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए एक निश्चत मानदंड निर्धारित किया हुआ है, लेकिन केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय इस मानदंड में और छूट देने की मांग कर रहा है।
CSI ने अपने रिपोर्ट में ये भी कहा की कौन से प्रदेश है जिनके पावर स्टेशन अभी तक कोल पावर से ही चलते है। इन राज्यों के पास विभिन्न कोयला-फायरिंग पावर जनरेटर के साथ टाई-अप है जो विभिन्न राज्यों में भी स्थित हैं। सीएसई ने बिजली मंत्रालय की वेबसाइट से आंकड़ों को लेकर आकलन किया है कि किसी विशेष राज्य द्वारा कितनी क्लीन बिजली खरीदी जा रही है।
सीएसई ने अपने अध्ययन में पाया कि देश के नौ राज्य प्रमुख रूप से सरकारी मापदंडों को पालन में चूक कर रहे हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि राज्य अपनी कोयले पर आधारित बिजली का लगभग 60 प्रतिशत अन-प्योर सोर्सेज से खरीद रहे है।
पेपर तक ही सीमित क्लाइमेट चेंज की बातें-
इस मामले में पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और गुजरात शीर्ष पर हैं। पश्चिम बंगाल में राज्य को बिजली की आपूर्ति करने वाले 84 प्रतिशत बिजली स्टेशन अशुद्ध हैं और सल्फर डाइऑक्साइड के मानदंडों को पूरा करने से बहुत दूर हैं। पश्चिम बंगाल अपने बिजली स्टेशनों के माध्यम से अपनी जरूरत की सभी बिजली उत्पन्न करता है। इसलिए राज्य में नियामक अधिकारियों के पास प्रदूषण को कम करने के लिए आवश्यक शक्तियां हैं।
तेलंगाना में यह आंकड़ा 74 प्रतिशत है और गुजरात में यह 71 फीसदी है। इन राज्यों में स्थित और आपूर्ति करने वाले अधिकांश पावर स्टेशनों ने मानदंडों को बहुत कम पूरा किया है।
इससे बस यही समझ में आ सकता है कि हमारे देश में क्लाइमेट चेंज की बातें सिर्फ पेपर तक ही सीमित है। दुनिया भर में धरती को को बचाने के लिए क्रांति चल रही है लेकिन उसके बावजूद उस क्रांति की चिंगारियां यहां पर किसी को परेशान नहीं करती दिख रही है। अमेरिका के इलेक्शन में क्लाइमेट चेंज उस समान एक मुद्दा बन के सबके सामने आया जैसे हमारे देश के चुनाव में भ्रष्ट्राचार एक मुद्दा बन के आता है।
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