अहमद पटेल का निधन : कांग्रेस के दिग्गज-निष्ठावान नेता, हमेशा रहे शीर्ष नेतृत्‍व के करीब

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कांग्रेस के दिग्गज और निष्ठावान नेता अहमद पटेल का बुधवार को निधन हो गया। उन्होंने कई मौकों पर पार्टी के लिए संकटमोचक का काम किया था।

कोरोना से संक्रमित होने के बाद वह स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं से जूझ रहे थे और उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया जिस कारण बुधवार तड़के उनका निधन हो गया।

कांग्रेस पार्टी के निष्ठावान और संकटमोचक की छवि के रूप में पहचाने जाने वाले पटेल ने कई बार पार्टी को मुश्किलों से निकाला।

2008 में जब वाम दलों के समर्थन वापस लेने के बाद यूपीए सरकार विश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही थी, तो वह सरकार को बचाने के लिए पर्याप्त संख्या बल जुटाने में कामयाब रहे थे।

ऐसा था पटेल का प्रभाव-

अहमद पटेल के निधन से पार्टी में जो खालीपन आया है वह कभी नहीं भर सकेगा क्योंकि वह एक पुरानी शैली के राजनेता थे, जिनकी पार्टी लाइन के परे भी अच्छी पहुंच थी और हर जगह उनके दोस्त थे।

2007 में, जब सोनिया गांधी ने उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी को लॉन्च करने की जिम्मेदारी पटेल को सौंपी तो वह पटेल ही थे जिन्होंने हर चीज का प्रबंधन किया। एक मुस्लिम बहुल सीट अमरोहा में राहुल गांधी की जनसभा में बड़ी भीड़ उमड़ी।

जब इस पत्रकार ने उस समय के एक निर्दलीय सांसद से स्थानीय सांसद के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि “अहमद भाई कहते हैं तो करना पड़ता है।” तो कुछ ऐसा पटेल का प्रभाव था।

पत्रकारों के लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे अहमद-

वह अपने सभी कौशल के साथ पीछे पहकर सबकुछ संभालते थे, एक ऐसे नेता थे जो आपको बता सकते थे कि राजनीतिक गलियारे में हवा का रुख किस ओर है।

2019 में, आम चुनावों से पहले उन्हें पता था कि उनकी पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं है और उन्होंने मीडिया के सामने यह व्यक्त किया। 23 मदर टेरेसा क्रिसेंट में उनका निवास स्थल 10 जनपथ के बाद सबसे अधिक मांग और सुखिर्यों वाला था।

21 अगस्त, 1949 को गुजरात के भरूच में जन्मे, वह देश के सबसे प्रभावशाली राजनेताओं में से एक थे। यूपीए शासन के दौरान यहां तक कि मंत्री और मुख्यमंत्री उनके कार्यालय से अपॉइंटमेंट के लिए इंतजार करते थे। यद्यपि वह शक्तिशाली थे, वह दूसरों से विनम्रता से मिलते थे। वह पत्रकारों के लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे।

सोनिया गांधी के सबसे करीबी विश्वासपात्र-

पटेल अपने समय के सबसे युवा नेताओं में से एक थे जब उन्हें गुजरात कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए राजीव गांधी द्वारा चुना गया था।

बाद में वह संसदीय सचिव के रूप में राजीव की टीम में शामिल हो गए, और कांग्रेस पार्टी के सत्ता संभालने के बाद वे सोनिया गांधी के सबसे करीबी विश्वासपात्र और उनके पास पहुंचने वाले एकमात्र चैनल बन गए।

उन्हें राहुल गांधी द्वारा अपने कार्यकाल में पार्टी के कोषाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। पटेल पार्टी लाइन के पार संबंधों को बनाए रखने में यकीन रखते थे।

अहमद पटेल ने 1976 में अपने गृह राज्य गुजरात में भरूच में स्थानीय निकाय चुनाव लड़कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की।

वह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संसदीय सचिव थे, पटेल सरदार सरोवर परियोजना की निगरानी के लिए नर्मदा प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना में सक्रिय थे।

विनम्र और तेज-तर्रार नेता-

जवाहरलाल नेहरू के शताब्दी समारोह के पूर्व, पटेल को 1988 में जवाहर भवन ट्रस्ट का सचिव नियुक्त किया गया। राजीव गांधी ने उन्हें नई दिल्ली के रायसीना रोड में जवाहर भवन के निर्माण की निगरानी करने के लिए कहा, ऐसी परियोजना जो एक दशक से अधिक समय से रुका हुआ था।

नेहरू के जन्म शताब्दी समारोह के लिए रिकॉर्ड एक साल की अवधि में, उन्होंने सफलतापूर्वक जवाहर भवन का काम पूरा किया।

वह विनम्र होने के साथ-साथ तेज-तर्रार नेता भी थे और 2017 के राज्यसभा चुनावों के दौरान वह कसौटी पर खरे उतरे, जब उन्होंने अमित शाह के सभी प्रयासों के बावजूद भाजपा उम्मीदवार को हराया था।

चट्टान की तरह खड़े रहे अहमद-

हाल ही में कांग्रेस के उथल-पुथल के दौरान, वह सीडब्ल्यूसी में सोनिया गांधी के पीछे चट्टान की तरह खड़े रहे और यहां तक कि उन्होंने सोनिया गांधी को पत्र लिखने के लिए अपने दोस्तों की आलोचना भी की।

पटेल को पत्रकारों का मित्र माना जाता था। वह देर रात पत्रकारों को बुलाते थे। लेकिन कभी भी सीधे तौर पर कोई बयान नहीं देते थे। उनके द्वारा दिए गए जवाब के अनुसार, उन्हें जज करना होता था।

आदर्श सोसाइटी घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का नाम सामने आने के बाद जब महाराष्ट्र में बदलाव हुआ था, तब वह पत्रकारों को बयान देने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। और उनका तगड़ा जवाब था, “पृथ्वी, लेकिन मुझे मत उद्धृत करो।”

पत्रकार भी उन्हें उतना ही याद करेंगे। लेकिन कांग्रेस और पार्टी आलाकमान के लिए नुकसान बहुत बड़ा और कठिन है, खासकर ऐसे समय में जब पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं करने के कारण दबाव में है।

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