आज से शुरू हो रहा शारदीय नवरात्रि, जानें कलश स्थापना का मुहूर्त और विधि

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शारदीय नवरात्र पर विशेष नवरात्र में करें मां दुर्गा की आराधना (17 अक्टूबर से 25 अक्टूबर)

महिषासुरमर्दिनी मां दुर्गा का आगमन घोड़े पर एवं प्रस्थान होगा भैंसा पर

महाअष्टमी : शनिवार, 24 अक्टूबर,

महानवमी : रविवार, 25 अक्टूबर एवं

दशमी : सोमवार, 26 अक्टूबर

मातृशक्ति भगवती मां दुर्गा की आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र का शुभारंभ 17 अक्टूबर, शनिवार को हो रहा है, जो कि 26 अक्टूबर, सोमवार तक रहेगा। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि-24 अक्टूबर, शनिवार, नवमी तिथि-25 अक्टूबर, रविवार तथा 26 अक्टूबर, सोमवार को विजया दशमी का पर्व मनाया जाएगा।

नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना श्रद्धा व धार्मिक आस्था एवं भक्तिभाव के साथ की जाती है, जिससे सुख व सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है। जीवन धनधान्य से परिपूर्ण रहता है। शरद ऋतु में दुर्गाजी की महापूजा से सभी प्रकार की बाधाओं की निवृत्ति होती है। शारदीय नवरात्र में विशेषकर शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा, काली, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की विशेष आराधना फलदायी मानी गई है।

मां दुर्गा के नौ स्वरूप-

navratri-2020

मां दुर्गा के नौ-स्वरूपों में प्रथम-शैलपुत्री, द्वितीय-ब्रह्मचारिणी, तृतीय-चन्द्रघण्टा, चतुर्थ-कुष्माण्डा देवी, पंचम-स्कन्दमाता, षष्ठ-कात्यायनी, सप्तम-कालरात्रि, अष्टम-महागौरी एवं नवम्-सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना विधि-विधानपूर्वक की जाती है। जिसमें भगवती की अनुकंपा प्राप्त करने के लिए शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करके सम्पूर्ण नवरात्र में व्रत या उपवास रखकर श्रीदुर्गासप्तशती के पाठ व मंत्र का जप करना कल्याणकारी रहता है।

दुर्गासप्तशती के एक पाठ से फलसिद्धि, तीन पाठ से उपद्रव शांति, पांच पाठ से सर्वशान्ति, सात पाठ से भय से मुक्ति, नौ पाठ से यज्ञ के समान फल की प्राप्ति, ग्यारह पाठ से राज्य की प्राप्ति, बारह पाठ से कार्यसिद्धि, चौदह पाठ से वशीकरण, पंद्रह पाठ से सुख-सम्पत्ति, सोलह पाठ से धन व पुत्र की प्राप्ति, सत्रह पाठ से राजभय व शत्रु तथा रोग से मुक्ति, अठारह पाठ से प्रिय की प्राप्ति, बीस पाठ से ग्रहदोष शांति और पच्चीस पाठ से समस्त बंधन से मुक्ति होती है।

कब होगी कलश स्थापना-

navratri pooja

ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर भगवती मां दुर्गा की पूजा एवं व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

मां जगदम्बा के नियमित पूजा में कलश की स्थापना की जाती है। कलश स्थापना के पूर्व श्रीगणेशजी का विधिविधान पूर्वक पूजन करना चाहिए। लेकिन इस बार कलश स्थापना 17 अक्टूबर, शनिवार को की जाएगी। कलश स्थापना का सर्वश्रेष्ठ शुभमुहूर्त 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक (अभिजीत मुहूर्त) है।

कलश स्थापना प्रात:काल भी की जा सकती है, परन्तु सायंकाल या रात्रि में कलश स्थापना नहीं की जाती। कलश स्थापना के लिए कलश लोहे या स्टील का नहीं होना चाहिए। कलश स्वर्ण, रजत या मिट्टी का होना चाहिए। कलश जलपूरित होना चाहिए, कलश पर स्वस्तिक बना होना चाहिए, कलश के ऊपर कलावा या मौली बंधा होना चाहिए।

कलश में पुष्प, नकद द्रव्य, चावल, रोली आदि छोड़ देना चाहिए। कलश को मां जगदम्बा का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है। शुद्ध मिट्टी में जौ के दाने भी बोए जाते हैं। मां जगदंबा को लाल चुनरी, अढ़उल के फूल की माला, नारियल, ऋतुफल, मेवा व मिष्ठान आदि अर्पित किए जाते हैं।

नवदुर्गा को नौ दिन क्या-क्या करें अर्पित?-

2020 navratri

नवरात्र में नौदुर्गा को अलग-अलग तिथि के अनुसार उनकी प्रिय वस्तुएं अर्पित करने का महत्व है। जिनमें प्रथम दिन-उड़द, हल्दी, माला-फूल। द्वितीय दिन-तिल, शक्कर, चूड़ी, गुलाल, शहद। तृतीय दिन-लाल वस्त्र, शहद, खीर, काजल। चतुर्थ दिन-दही, फल, सिंदूर, मसूर। पंचम दिन–दूध, मेवा, कमलपुष्प, बिन्दी। षष्ठ दिन-चुनरी, पताका, दूर्वा। सप्तम दिन-बताशा, इत्र, फलपुष्प। अष्टम दिन-पूड़ी, पीली मिठाई, कमलगट्टा, चन्दन, वस्त्र। नवम् दिन-खीर, सुहाग सामग्री, साबूदाना, अक्षत फल, बताशा आदि।

दिनों के अनुसार व्रत के फल-

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सम्पूर्ण एक दिन, तीन दिन, पांच दिन, सात दिन अथवा नौ दिन तक नियमपूर्वक व्रत रखकर आराधना करने की धार्मिक मान्यता है। नवरात्र में व्रत रखने के पश्चात् व्रत की समाप्ति पर हवन आदि करके निमन्त्रित की हुई कुमारी कन्याओं एवं बटुकों का पूर्ण आस्था व श्रद्धाभक्ति के साथ शुद्ध जल से चरण धोकर पूजन करने के पश्चात् उनको पौष्टिक व रुचिकर भोजन करवाना चाहिए तथा उन्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार नये वस्त्र, ऋतुफल, मिष्ठान्न तथा नगद द्रव्य आदि देकर उनके चरणस्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली सदैव बनी रहे। नवरात्र में राशि के अधिपति ग्रह की पूजा-अर्चना करना विशेष लाभदायी रहता है।

राशि के अनुसार नीचे राशि (अधिपति ग्रह) मन्त्र एवं जपसंख्या दिए जा रहे हैं-

मेष (मंगल) ॐ अं अंगारकाय नमः (जप संख्या-10,000), वृषभ (शुक्र) ॐ शुं शुक्राय नमः (जप संख्या-16,000), मिथुन (बुध) ॐ बुं बुधाय नमः (जप संख्या-10,000), कर्क (चन्द्रमा) ॐ सों सोमाय नमः ( सूर्याय नमः (जप संख्या-7,000), कन्या (बुध) ॐ बुं बुधाय नमः (जप संख्या-10,000), तुला (शुक्र) ॐ शुं शुक्राय नमः (जप संख्या16,000), वृश्चिक (मंगल) ॐ अं अंगारकाय नमः (जप संख्या-10,000), धनु (वृहस्पति) ॐ बृं बृहस्पतये नमः (जप संख्या-19,000), मकर (शनि) ॐ शं शनैश्चराय नमः (जप संख्या-23,000), कुंभ (शनि) ॐ शं शनैश्चराय नमः (जप संख्या-23,000), मीन (वृहस्पति) ॐ बृं बृहस्पतये नमः (जप संख्या-19,000)।

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