क्या है EIA 2020 और क्यूँ इसे किया जाना चाहिए BAN

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आपने हाल में ही सुना होगा कि EIA 2020 को लेकर कई तरह के विरोध चल रहे थे  और आज सवाल इस बात का है कि आखिर क्यों EIA 2020 हमारे देश के लिए ठीक नहीं है। क्या सही में इस मसौदे को विकास के बाधक के रूप में देखा जा रहा है।

विकास का मतलब न सिर्फ केवल जीडीपी ग्रोथ, सड़क, पानी, बिजली ही नहीं, बल्कि उस चीज़ का एहसास भी है जिसकी वजह से पृथ्वी पर हर एक आदमी ख़ुशी से रह सकता है। इस लिहाज़ से विकास का सीधे तौर पर स्वाभविक जुड़ाव प्रकृति के साथ ही होता है, लेकिन हालिया के सालों में पर्यावरण के नियमों को विकास की बाधा के रूप में दिखते हुए इस बार के EIA 2020 में कई तरह के बदलाव किये गए हैं। इन्हीं कुछ कारणों की वजह से इस ड्राफ्ट का जमकर विरोध भी किया गया है।

जैसा कि नाम से ही साफ है एनवायरमेंटल इंपैक्ट असेसमेंट यानी ऐसा मूल्यांकन, जो पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को बताता है। आजादी के बाद बहुत लंबे समय तक पर्यावरण पर ज्यादा गौर नहीं किया गया। इंदिरा गांधी की सरकार कई मामलों में बदनाम रही, लेकिन साल 1986 में इंदिरा गांधी की सरकार ने एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एक्ट 1986 पास किया। इसी कानून के जरिए एनवायरमेंटल इंपैक्ट असेसमेंट से जुड़े प्रावधान आते है।

साल 1994 में एनवायरमेंटल इंपैक्ट असेसमेंट से जुड़े नियम पहली बार सामने आए। उसके बाद इन नियमों में साल 2020 में फेरबदल होने जा रहा है। इसलिए आगे बढ़ने से पहले यह ध्यान में रखना चाहिए कि एनवायरनमेंट से जुड़े कानून में बदलाव होने नहीं जा रहा हैं, बल्कि एनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट से जुड़े रूल्स यानी नियम में बदलाव होने जा रहा है। इसे बदलने के लिए किसी संसद की मत की जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि सरकार गजट में एक नोटिफिकेशन के साथ ही इसे बदल देगी।

आसान तौर पर समझा जाए तो, किसी भी प्रोजेक्ट को लगाने से वहाँ के पर्यावरण पर भी नुकसान पहुंच सकता है, और EIA 2020 में इन्हीं के नियमों पर विचार किया जा रहा है और इसे बदलने पर काफी बड़े पैमाने पर विरोध किया जा रहा है। यकीनन इस विरोध के कई पहलु हैं।

* पोस्ट फैक्टो क्लीयरेंस पर है सबसे ज़्यादा विरोध

इसका मतलब है कि प्रोजेक्ट लगाने के बाद भी एनवायरमेंट इंपैक्ट से जुड़े सरकारी इजाजत की अर्जी लगाई जा सकती है। यानी बिना यह जाने और बताएं कि आसपास के जल, जमीन, हवा, पेड़-पौधों जैसे पर्यावरणीय पहलुओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा… कोई इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट लगाया जा सकता है। इस नियम से लोगों को पर्यावरण को नुक्सान पहचाने की मंज़ूरी मिल गई है।

पहले नियम यह था कि प्रोजेक्ट शुरू होने के 6 महीने के अंदर एनवायरमेंट क्लीयरेंस ले लेना जरूरी था। इसका फायदा यह था कि अगर प्रोजेक्ट की वजह से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है तो प्रोजेक्ट में इस तरह का फेरबदल किया जाए कि नुकसान ना हो। अब 6 महीने की अवधि को हटा दिया गया है और यह लिख दिया गया है कि प्रोजेक्ट के शुरुआत के बाद में आने वाले पर्यावरण क्लीयरेंस को भी क्लीयरेंस दे दी जाएगी।

* हटा दिया गया सिटीजन ग्रीविएंस सेल

इस नए नियम के अंतर्गत अब सिर्फ कारखानों में काम करने वाले कर्मचारी प्रदूषण से जुड़ी शिकायतें दर्ज करा सकते है। पहले नियम के अनुसार कोई भी कल-कारखानों से उत्सर्जित हो रहे प्रदूषण की शिकायतें दर्ज करा सकते थे और उस पर कार्यवाई होती थी।

Environment impact assessment तय करने के लिए जनता की भागीदारी भी होती है।

नए वाले ड्राफ्ट में इस नियम को पूरी तरह से कमजोर कर दिया गया है। कई सारे मामलों में तो जनता की भागीदारी की अब जरूरत ही नहीं है। जैसे अगर पहले से मौजूद प्रोजेक्ट का एक्सपेंशन 50% से कम का किया जा रहा है तो उस प्रोजेक्ट के लिए ना ही एनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट की जरूरत है और ना ही पब्लिक पार्टिसिपेशन की। अगर प्रोजेक्ट सरकार द्वारा घोषित किया गया और स्ट्रैटेजिक महत्व का प्रोजेक्ट है तब भी पब्लिक पार्टिसिपेशन की जरूरत नहीं है।

* एनवायरनमेंट क्लीरेंस की बढ़ाई गई अवधि

एक बार एनवायरमेंट क्लीयरेंस मिल जाने के बाद यह क्लीयरेंस एक तयशुदा अवधि तक काम करता है। अब इस अवधि को भी नए नियम के तहत बढ़ा दिया गया है। जैसे रिवर वैली प्रोजेक्ट के लिए मिला एनवायरनमेंट क्लीयरेंस 10 साल के लिए वैलिड होता था। अब इसे 15 साल कर दिया गया है। कोयला खनन से जुड़ा एनवायरमेंट क्लीयरेंस 30 साल का होता था अब इसे 50 साल के लिए कर दिया गया है। सोचिए इतनी बड़ी अवधि में एक प्रोजेक्ट और उसके भूगोल में कितना बड़ा परिवर्तन हो जाता है तो क्या इतनी बड़ी अवधि के लिए मिला एनवायरमेंट क्लीयरेंस जायज है?

इन सबके अलावा विरोध का सबसे बड़ा कारण स्ट्रैटेजिक महत्त्व का काम है। सरकार का साफ कहना है कि जो उद्यम या काम स्ट्रैटेजिक महत्व के होंगे, उनके लिए एनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट की कोई जरूरत नहीं है। अब यह स्ट्रैटेजिक महत्व के उद्यम क्या होंगे, इसका निर्धारण सरकार करेगी। सिद्धांत के तौर पर तो देश के अति महत्वपूर्ण क्षेत्र स्ट्रैटेजिक महत्व के क्षेत्र माने जाते हैं। लेकिन अगर सरकार के पास यह तय करने की शक्ति है कि क्या स्ट्रैटेजिक होगा और क्या नहीं होगा तो बात साफ है कि सरकार जिसे चाहे उसे स्ट्रैटेजिक बता सकती है और उसे एनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट के नियमों से छुटकारा मिल सकता है।

हने का मतलब यह है कि प्रस्तावित किए गए नए एनवायरमेंटल इंपैक्ट असेसमेंट के ड्राफ्ट में छेद ही छेद हैं। इतने छेद कि वकीलों के लिए आसानी से इसमें छलनी ढूंढी जा सकती है और किसी भी उद्योग को एनवायरनमेंट इंपैक्ट असेसमेंट जैसे नियमों से छुटकारा दिलाया जा सकता है। अगर प्रकृति को लेकर सरकार का ऐसा रूप है तो विरोध प्रदर्शन भी जायज है।

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