अमेरिकी चुनाव में इस बार गेहुंए रंग की चमक और धमक

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कमलादेवी हैरिस अमेरिका में उप-राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बन गई हैं, जो एक ऐतिहासिक घटना है। अभी हम यह मानकर नहीं चल सकते कि नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में जो बाइडन और कमला जीत ही जाएंगे लेकिन अगर डेमोक्रेटिक पार्टी के ये दोनों उम्मीदवार जीत गए तो अमेरिका की आंतरिक राजनीति और उसकी विदेश नीति में गंभीर परिवर्तन होने की संभावनाएं प्रबल हो जाएंगी। डेमोक्रेटिक पार्टी यदि यह चुनाव जीतती है तो कमला हैरिस अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति बनेंगी। अमेरिका में महिलाएं मंत्री तो बनी हैं पर उप- राष्ट्रपति के पद का चुनाव लड़नेवाली महिलाएं पहले कभी सफल नहीं हुई हैं। यदि कमला सफल हो जाती हैं तो कोई आश्चर्य नहीं कि चार साल बाद वे राष्ट्रपति का चुनाव लड़ें और अमेरिका की राष्ट्रपति बन जाएं। बाइडन अभी अपने 78 वें साल में हैंवे दोबारा राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते हैंयानी कमला हैरिस का राष्ट्रपति पद पर दावा सबसे अधिक मजबूत होगा।

मां की गहरी छाप-

कमला हैरिस अपने आप को प्रायः अश्वेत बताती रही हैं, क्योंकि उनके पिता डॉनल्ड हैरिस जमैका के अश्वेत थे। लेकिन उनके व्यक्तित्व पर किसी की गहरी छाप है तो उनकी मां की, जिनका नाम श्यामला गोपालन था। श्यामला और हैरिस का तलाक काफी पहले हो गया था। श्यामला ने ही अपनी दोनों बेटियों कमला और माया का लालन- पालन किया। कमला अपनी तमिलभाषी मां के शहर मद्रास में कई बार आती रहीं। अपने खाने अमेरिका में उप-राष्ट्रपति में उन्हें आज भी इडली, वड़ा, डोसा और सांभर पद की उम्मीदवार बन बहुत पसंद हैं। पिता की वजह से वे चर्च जाती रहीं, गई हैं, जो एक ऐतिहासिक लेकिन मंदिर जाकर नारियल बधारना और पूजा घटना है। अभी हम यह करना भी उन्हें प्रिय है। उन्हें अमेरिका में अश्वेत ही मानकर नहीं चल सकते माना जाता है। उनकी मां श्यामला ने ओकलैंड के कि नवंबर में होनेवाले अश्वेतों के आंदोलन में काफी सक्रिय भूमिका अदा वेदप्रताप वैदिक राष्ट्रपति के चुनाव में जो की थी। लेकिन वास्तव में कमला न तो अश्वेत हैं बाइडन और कमला जीत ही और न ही श्वेत। वह दोनों का मिश्रण हैं। उनका जाएंगे लेकिन अगर डेमोक्रेटिक पार्टी के ये दोनों रंग गेहुंआ है। यह गेहुंआ रंग अब अमेरिका में नई उम्मीदवार जीत गए तो अमेरिका की आंतरिक चमक और धमक भी पैदा करेगा। कोई आश्चर्य राजनीति और उसकी विदेश नीति में गंभीर परिवर्तन नहीं कि उप-राष्ट्रपति का कम महत्व वाला पद इस होने की संभावनाएं प्रबल हो जाएंगी। डेमोक्रेटिक बार राष्ट्रपति से भी अधिक प्रचार पाएगा।

वैसे कमला ने डेमोक्रेटिक पार्टी में राष्ट्रपति पद के लिए भी उम्मीदवारी की कोशिश की थी और बाइडन के खिलाफ भी ताल ठोका था लेकिन राष्ट्रपति के पद का चुनाव लड़नेवाली महिलाएं बाइडन ने उनको अपना जोड़ीदार बनाकर खुद को पहले कभी सफल नहीं हुई हैं। यदि कमला सफल काफी मजबूत बना लिया है। ऐसा नहीं है कि 55 वर्षीय कमला अचानका राजनीति में कूद पड़ी हैं। वे सीनेटर है। अमेरिका में सीनेट हमारी राज्यसभा की तरह उच्च सदन कहलाती है लेकिन इसमें चुने जाना हमारी लोकसभा में चुने जाने से भी कठिन होता है। वे लोकप्रिय नेता की तरह चुनकर सीनेट में आई हैं। उसके पहले वे कैलिफोर्निया की अटॉर्नी जनरल रह चुकी हैं। वकील के तौर पर भी उन्होंने काफी नाम कमाया था।

कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की उप-राष्टपति पद की उम्मीदवार हैं, इसका एक बड़ा असर तो यही हआ कि इस साल भारत का स्वतंत्रता-दिवस अमेरिका में जमकर मनाया गया। डेमोक्रेटिक अमारका म जमकर मनाया गया। डेमोक्रेटिक पार्टी में यों भी भारत-समर्थकों की संख्या ज्यादा है लेकिन इस 15 अगस्त को भारत के समर्थन में ऐसी-ऐसी बातें कही गईं, जो ‘भारतमित्र ट्रंप’ की छवि को भी पतला कर देती हैं। कमला हैरिस की उम्मीदवारी की खबर ज्यों ही फूटी, ट्रंप-प्रशासन हड़बड़ा गया। उसने प्रवासी भारतीयों पर लगाए गए वीजा-प्रतिबंधों को वापस ले लिया। ट्रंप ने पिछले साढ़े तीन साल में इतनी नौटंकियां रचाई कि भारत मानने लगा कि यह ट्रंप-काल भारत- अमेरिका संबंधों का स्वर्ण-युग है। लेकिन सबको पता है कि ट्रंप अपने संकीर्ण राष्ट्रीय स्वार्थों को सिद्ध करने में कभी नहीं चकते। उन्होंने भारत- अमेरिका परमाणु समझौते को अधर में लटकाकर रखा, भारत के व्यापारिक हितों को चोट पहुंचाई और गोरे अमेरिकियों के वोट पटाने के लिए और गोरे भारतीयों पर वीजा-प्रतिबंध लगाए।

ऐसा नहीं कि बाइडन और कमला हैरिस व्हाइट हाउस में बैठ गए तो वे भारत की पालकी में झूलने लगेंगे। उन्हें सबसे पहले अपने राष्ट्रहित का ध्यान रखना होगा। लेकिन 15 अगस्त के दिन डेमोक्रेटिक पार्टी ने भारत को आश्वस्त कर दिया है कि उसके साथ अमेरिका की सामरिक भागीदारी सत्ता परिवर्तन के बाद भी सुदृढ़ रहेगी। जहां तक भारत-प्रशांत क्षेत्र का सवाल है, भारत उस क्षेत्र में नायक की भूमिका निभाता रहेगा। चीन के सवाल पर वह अपने पिछले नेता ओबामा की नीति नहीं चलाएगा बल्कि उसके विस्तारवाद का विरोध करेगा। दक्षिण एशिया के राष्टों को वह विस्तारवाद और आतंकवाद से लड़ने में सक्रिय मदद करेगा। डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा भारत का यह स्पष्ट और दृढ़ समर्थन इसीलिए सामने आ रहा है कि कमला हैरिस उसकी उप-नेता हैं।

कमला हैरिस की उम्मीदवारी का असर भारतीय, अश्वेत और लातिन अमेरिकी मतदाताओं पर जरूर पड़ेगा। कमला ने अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के मामले को काफी जोरों से उठाया था। उनके रंगभेद-विरोधी रवैये ने उन्हें अमेरिका के प्रगतिशील तबके में काफी लोकप्रियता दिलाई। इस बात ने ट्रंप-खेमे में इतनी जलन पैदा कर दी कि डॉनल्ड ट्रंप के बेटे एरिक ट्रंप ने कमला के बारे में काफी अश्लील टिप्पणी कर दी। कमला की उम्मीदवारी को यदि 65 प्रतिशत हिस्पानी लोगों और 78 प्रतिशत अश्वेत लोगों ने पसंद किया तो 46 प्रतिशत गोरों ने भी इसे पसंद किया है।

असहमतियां भी कम नहीं-

यह ठीक है कि कमला कई मामलों में मोदी सरकार की नीतियों से सहमत नहीं दिखीं, जैसे कश्मीर और नागरिकता संशोधन कानून आदि के सवाल पर। लेकिन अब भी वे अपने पुराने दृष्टिकोण पर डटी रहेंगी, इसमें संदेह है। यदि वे कुछ मुद्दों पर हमसे असहमत हैं तो होती रहें। आखिरकार अब वे अमेरिकी नेता हैं। लेकिन उनकी उम्मीदवारी से 40 लाख अमेरिकी भारतीयों में अपूर्व आनंद और उत्साह का संचार हुआ है। कमला की उम्मीदवारी ट्रंप के लिए एक नया सिरदर्द बन गई है। ट्रंप चाहेंगे कि वे रंगभेद की लहर पर सवार होकर चुनाव की वैतरणी पार कर ले जाएं लेकिन कमला हैरिस का मध्यम मार्ग उनका विजय-पथ बन सकता है।

[bs-quote quote=”लेखक भारत के एक पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक और स्वतंत्र स्तंभकार हैं। वह हिंदी समाचार एजेंसी “भाषा” के संस्थापक-संपादक के रूप में रहे थे। इससे पहले वह टाइम्स ग्रुप के नवभारत टाइम्स में संपादक थे। वर्तमान में, वह भारतीय भाषा सम्मेलन के अध्यक्ष हैं।” style=”style-13″ align=”center” author_name=”वेद प्रताप वैदिक ” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/08/ved-pratap-vedic.jpg”][/bs-quote]

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