माटी कला बोर्ड के जरिए लोगों को रोजगार देगी योगी सरकार, जानें पूरी योजना

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माटी में जान डालने वाले हुनरमंदों के लिए खुशखबरी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर सरकार हर मंडल में माटी को जीवंत करने वालों के लिए माइक्रो माटी कला कॉमन फैसिलिटी (सीएफसी) बनाएगी।

एक सीएफसी की लागत 12़5 लाख रुपये होगी। इसमें सरकार का अंशदान 10 लाख रुपये का होगा। बाकी संबंधित संस्था या सोसायटी को लगाना होगा। जमीन संस्था या सोसायटी को उपलब्ध होगी। अगर उसके पास जमीन नहीं उपलब्ध है तो सरकार ग्राम सभा की जमीन उपलब्ध कराएगी।

पहले चरण में इन मंडलों में बनेंगे केंद्र :

पहले चरण में नौ मंडलों में ये सीएफसी बनने हैं। इसमें गोरखपुर में टेरोकोटा, वाराणसी में बनारसी सिल्क की साड़ियों, मिर्जापुर में कालीन, आगरा में चमड़े के उत्पादों, मुरादाबाद में पीतल के सामान, बरेली में जरी के उत्पाद, मेरठ में खेल के सामान, आजमगढ़ में ब्लैक पटरी, इलाहाबाद में मूज के उत्पादों के लिए ये केंद्र बनने हैं। इनमें से रामपुर मुरादाबाद मंडल और पीलीभीत बरेली मंडल के प्रस्ताव आ भी चुके हैं। शीघ्र ही अन्य मंडलों के प्रस्ताव भी आ जाएंगे। दूसरे चरण में बाकी मंडलों में भी इसी तरह के केंद्र बनने हैं।

एक ही छत के नीचे मिलेंगी सारी सुविधाएं :

हर केंद्र में गैस चालित भट्ठी, पगमिल, बिजली से चलने वाले कुम्हरी चक और मिट्टी को तैयार करने से लेकर उसकी प्रोसेसिंग के अन्य उपकरण होंगे। इस तरह उत्पादकों को एक ही छत के नीचे अपने उत्पाद तैयार करने की सारी सुविधाएं मिलेंगी। स्वभाविक है कि सारी सुविधाएं जब एक साथ मिलेंगी तो हुनरमंद हाथों के जरिए मिट्टी बोल उठेगी।

माटी कला बोर्ड के जरिए रोजगार

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का निर्देश है कि माटी कला बोर्ड के जरिए अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराया जाए। खादी ग्रामोद्योग विभाग ने ने इसी के अनुसार माटी कला बोर्ड के जरिए इस बाबत अपनी कार्ययोजना तैयार की है। इसमें प्रशिक्षण से लेकर रोजगार तक शामिल हैं। इस क्रम में इस विधा से जुड़े लोगों के उत्पाद की गुणवत्ता सुधारने के लिए उनको तीन तरह के अल्पकालिक प्रशिक्षण दिये जाएंगे। इसमें तीन दिवसीय प्रशिक्षण के 75, सात दिवसीय प्रशिक्षण के 10 और 15 दिवस प्रशिक्षण के 15 सत्र होंगे। इसके अलावा 2,700 लाभार्थियों को बिजली को चक दिए जाने हैं।

पॉलीथन का विकल्प

प्रमुख सचिव खादी एवं ग्रामोद्योग नवनीत सहगल ने बताया, “उत्पाद जब गुणवत्ता के होंगे और इनका दाम वाजिब होगा तो बाजार में इनकी अच्छी मांग होगी। इससे इस विधा से जुड़े लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार के मौके बढ़ेंगे। तालाबों से मिट्टी लेने से उनकी हर साल प्राकृतिक सफाई होगी। गहरा होने से उनके जल संग्रहण की क्षमता बढ़ेगी। सूखे के समय ये किसानों के खेत सींचने के काम आएगी। इन उत्पादों के पॉलीथन का विकल्प बनने से पॉलीथिन से होने वाला प्रदूषण भी रुकेगा।”

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