तपती जमीन पर ‘गरीबी’ चली नंगे पांव
तपती जमीन पर ‘गरीबी’ नगें पांव
जिंदगी मुश्किल नहीं तो इतनी आसां भी नहीं,
वक्त बेवक्त वो बड़ा तल्ख इम्तेहान लेती है।
लॉकडाउन के इस दौर में जिंदगी प्रवासी मजदूरों का कुछ इसी अंदाज में इम्तेहान लेती दिख रही है। खास ये कि इस इम्तेहान में बेरहम जिंदगी ने उम्र के लिहाज को भी खारिज किया है। अपने पिता के साथ मद्रास से चलकर आगरा के आईएसबीटी बस अड्डे पर पहुंचा, एक मासूम जिंदगी का ऐसा ही तल्ख इम्तेहान देता दिखा। जमीन जल रही है पर गरीबी का आलम ये कि बेबस पिता में इतना सामर्थ्य नहीं कि वो अपने बेटे के लिए एक जोड़ी जूते का इंतजाम कर सके। गरीबी नंगे पांव चलने को मजबूर है। बच्चे के पैर जल रहे हैं। तो क्या हुआ यही तो गरीबी है।
तपती जमीन पर चलने को मजबूर-
ये कोई कहानी नहीं जिंदगी की तल्ख हकीकत है। आगरा के आईएसबीटी बस अड्डे पर मजदूरों की भीड़ अपने घर जाने के लिए पहुंची थी। अपने पिता के साथ मद्रास से आगरा के लिए पैदल सफर को निकला एक मासूम भी इसी भीड़ का हिस्सा है। हजारों मील के इस सफल के बीच में कहीं सवारी भी नसीब हुई। पर उसका साथ बहुत कम समय के लिए मिला। अधिकतर सफर पैदल ही तय हुआ। पिता के पैरों में जूते के नाम पर कुछ है पर बच्चे के पैर नंगे हैं। तप रही सड़क पर बच्चे के पैर जल रहे थे। यहां पर उन्हें कुछ पुराने जूते फेके हुए मिले। पिता ने सामान नीचे रखा और बच्चे के नाप का जूता छांटा … जूता बच्चे को अच्छा लगा बच्चे ने पिता से वही जूता पहनाने की जिद की।
पिता को बेटे के दर्द का एहसास था वह बच्चे को जूता पहनाने लगा। तेज धूप में पसीना पसीना हो रहे पिता ने बेटे को जूता पहनाने कोशिश शुरू ही की थी कि बस के जाने की अनाउंसमेंट हुई। बस में चढ़ने की जल्दी में पिता ने सामान उठाया जूता हाथ मे लिया और बस की तरफ दौड़ लिया। पिता के पीछे पीछे नंगे पांव बेटा भी बस की तरफ भागा। तपती ज़मीन पर चलना नंन्हे कदमो के लिए अंगार पर चलने जैसा था। बस तक पहुचने की में कोशिश में बच्चा कभी दौड़ता कभी एड़ी के बल चलता तो कभी पंजो पर खड़ा हो जाता। जमीन तो जैसे बच्चे के लिए अंगार बन चुकी थी लेकिन मजूबरी थी कि चलना था।
पिता के चेहरे विश्वास भरी उम्मीद-
जूते मिल गये हैं। अभी नहीं पहना पाया हूं तो क्या आगे तो पहना ही लूंगा। बाप के चेहरे पर जहां इस बात खुशी की है तो बच्चे को भी इस बात की उम्मीद है कि आगे का सफर उसका जूते के साथ कटेगा। जमीन भले ही कितना भी तपे पर ये तपन उसके पैर के तलुओं तक नहीं पहुंच पायेगी। जिंदगी चाहे जितना भी इम्तेहान ले सफर तो कट ही जायेगा।
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