750 किमी कठिन पदयात्रा कर अपने गांव पहुंचा प्रवासी!

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चंद्रपुर (महाराष्ट्र): एक प्रवासी कंप्यूटर ऑपरेटर रायगढ़ के पनवेल से लगभग 750 किलोमीटर की दूरी तय कर चंद्रपुर के अपने पैतृक गांव घुगुस पहुंचा। स्थानीय लोगों और पुलिस से उसे खासी प्रशंसा मिल रही है। यह पूरा रास्ता 900 किलोमीटर का था।

32 वर्षीय अजय बंदुजी सतोरकर ने यह पैदल यात्रा दो अप्रैल को सुबह पांच बजे लॉकडाउन 1.0 में शुरू की और 16 अप्रैल को लॉकडाउन 2.0 में वह अपने गांव पहुंच गए। इन 15 दिनों में बिना ब्रेक के सड़कों पर चलने के बाद वह अब सीधे 14 दिनों के लिए क्वारंटीन में चले गए हैं।

देश के कई अन्य प्रवासियों की तरह सतोरकर, एक निजी विश्वविद्यालय में कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में कार्यरत थे। वहां वह एक कमरे में अकेले रह गए थे क्योंकि उनके साथी 24 मार्च के बाद चले गए थे।

एक रिश्तेदार ने बताया, “उनके पास केवल नकद 300 रुपये थे, लेकिन घर तक पहुंचने की एक इच्छा, अपनों से मिलने का मन और ढेर सारा आत्मविश्वास था। उन्होंने बिना ज्यादा विचार किए अपना कुछ सामान पैक किया और दो अप्रैल को सुबह पांच बजे पनवेल छोड़ दिया।”

यह पूरा रास्ता थका देने वाला और साहसिक था, लेकिन उनके पैर रोजाना तेज दौड़ते थे। पश्चिमी महाराष्ट्र के सह्याद्री रेंज की ठंडी पहाड़ियों से लेकर मराठवाड़ा के चिलचिलाते मैदानों तक, कुछ स्थानीय लोगों की मदद से नदियों को पार करते हुए, कुछ प्रमुख नदियों में स्नान करते हुए वह अंत में चंद्रपुर में अपने गृह इलाके में पहुंच गए।

प्रवासी
Chandrapur:A migrant computer operator working in Panvel, Raigad, walked 750-kms, to his village Ghugus in Chandrapur, 900-kms away, got rides for 150-kms in local transport, slept hungry or survived on biscuits, watermelons and Shiv Bhojan Thaali, from April 02-16. After walking 15 days, he was shunted to 14 days quarantine. (Photo: IANS)

सतोरकर ने गुरुवार सुबह अपने गांव के बाहर उत्साहित स्थानीय लोगों से कहा, “यह एक कठिन चुनौती थी। अधिकांश रास्ता मैंने पैदल पार किया। लगभग 150 किलोमीटर की दूरी तक मुझे स्थानीय वाहनों द्वारा लिफ्ट मिला, जो राहत भरा था।”

900 किलोमीटर की यात्रा में वह कम से कम नौ जिलों से गुजरे। जिसमें लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा मोटरसाइकिल, ट्रक, एम्बुलेंस और पुलिस वैन से की।

इस दौरान उन्होंने अपनी रातें कहीं दुकान, मंदिर के बाहर बिताईं। वहीं एनजीओ, स्थानीय लोगों द्वारा उन्हें भोजन उपलब्ध कराया गया।

सतोरकर को एक पुलिस वैन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए गांव लाया गया।

परिवार के एक सदस्य ने कहा, “कुछ स्थानीय पुलिसकर्मियों ने उन्हें इतनी लंबी यात्रा करने के लिए सलाम किया। उनमें से एक ने मजाक में कहा कि आप दो सप्ताह चलकर आए हैं। इसलिए अब आपको दो सप्ताह का आराम (संगरोध) मिलेगा और उन्हें अब चंद्रपुर के एक आइसोलेशन केन्द्र में भेजा गया है।”

सतोरकर रिश्तेदारों और दोस्तों से 12 दिन बाद खुलकर मिल सकेंगे।

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