भारत के 5 तिलस्मी किले जहां रात में सुनाई देती है अलग-अलग चीखें, वजह जान कर हो जाएंगे दंग

भारत हमेशा से ही अदभुत कला और संस्कृति का देश रहा है। प्राचीनकाल से ही भारत में कई महाराजाओं का जन्म हुआ जिन्होंने भारत की संस्कृति और कला को संवारने का कार्य किया।

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भारत हमेशा से ही अदभुत कला और संस्कृति का देश रहा है। प्राचीनकाल से ही भारत में कई महाराजाओं का जन्म हुआ जिन्होंने भारत की संस्कृति और कला को संवारने का कार्य किया। इन महान राजाओं ने भारत में बहुत बड़े बड़े किलों का निर्माण कराया जो सिर्फ संस्कृती और कला तक सीमित नहीं था बल्कि राजा सेनापति जैसे महत्वपूर्ण लोगों को संरक्षण देते थे। इन किलों में हथियार सहित और भी जरुर वस्तुएं रखी जाती थी। भारत में कई किले ऐसे भी बनाएं गए जिनके निर्माण के पीछे कोई न कोई रहस्य जरूर छुपा है। आज हम आपको बताएंगे भारत के कुछ ऐसे किले के बारे में जो अपने आप में ही एक रहस्य है।

चुनारगढ़ का किला:

चुनारगढ़ के धरती पर कई सारे तपसयों ने तपस्या की है। यहां स्थित किला भारत की प्रमुख ऐतिहासिक विरासत और एक अनमोल धरोहर है। चुनारगढ़़ किले का इतिहास के एक पन्नों में एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह किला लगभग 5000 साल पुराने इतिहास का साक्षी है। इस किले का निर्माण जिस पहाड़ी पर हुआ है वो पहाड़ी मानव चरण के आकार जैसी प्रतीत होती है। इसी वजह से इस किले का दूसरा नाम चरणनाद्रिगढ़ भी है।

इस प्राचीन और ऐतिहासिक किले पर महाभारतकाल के कई शासकों से लेकर उज्जैन के महान सम्राट विक्रमादित्य और अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने राज किया। इन शासकों के बाद अकबर और शेरशाहसूरी जैसे मुगल बादशाहों ने शासन किया। इस किले के निर्माण का रहस्य आज भी उजागर नहीं हो पाया है। स्थानीय लोगों द्वारा कहा जाता है योगीराज भतृहरी इसी किले में समाधिस्थ हुए, आज भी इस किले में  उनकी समाधि है। ऐसा माना जाता है कि उनकी आत्मा आज भी इस पर्वत पर विराजमान है।

चुनारगढ़ किले ने अनेक उतार चढ़ाव देखे हैं। समय के साथ साथ तत्कालीन शासकों ने इस पहाड़ी पर अलग अलग शैलियों में समय कि आवश्यकतानुसार निर्माण कराया। वर्तमान समय में इस किले को अत्यधिक प्रसिद्धि बाबू देवकीनन्दन खत्री द्वारा रचित प्रसिद्ध तिलिस्मी उपन्यास चन्द्रकान्ता संतति के कारण मिली। चन्द्रकान्ता उपन्यास का केन्द्र बिन्दु  चुनारगढ़ है। चन्द्रकान्ता एक अद्भुत रचना है, इसमें कोई शक नहीं है। चन्द्रकान्ता के उपन्यास का आधार तिलिस्म है तिलिस्म ही इस उपन्यास कि आत्मा है चन्द्रकान्ता उपन्यास में चुनारगढ़ किले के बारे में सबसे अधिक वर्णन किया गया है।

शनिवारवाड़ा किला:

मराठा साम्राज्य को बुलंदियों पर ले जाने वाले बाजीराव ने 1746 ई. में एक महल का निर्माण करवाया जो शनिवार वाड़ा के नाम से जाना जाता है। यह महल पुणे में आज भी मौजूद है। 1818 तक यह पेशावाओं के अधिकार में रहा। 1828 ई. में इस महल में आग लगी और महल का बड़ा हिस्सा आग की चपेट में आ गया।

यह आग कैसे लगी यह अपने आप में अब तक एक सवाल बना हुआ है। लेक‌िन बात यहीं तक नहीं रुकती है। स्‍थानीय लोग कहते हैं क‌ि इस महल से अब भी अमावस की रात एक दर्द भरी आवाज आती है, जो बचाओ-बचाओ पुकारती है। यह आवाज उस शख्स क‌ि है ज‌िसकी हत्या इस महल में का दी गई थी। कहते हैं हत्या के बाद उसके शव को नदी में बहा द‌िया गया था।

ऐसी मान्यता है क‌ि बाजीराव के बाद इस महल में राजनीत‌िक उथल-पुथल का दौर शुरु हो गया था। इसी राजनीत‌िक दांव-पेंच और सत्ता के लालच में 18 साल की उम्र में नारायण राव की हत्या इस महल में कर दी गई थी। कहते हैं आज भी नारायण राव अपने चाचा राघोबा को पुकारते हैं ‘काका माला बचावा’। नारायण राव की हत्या क्यों और क‌िस कारण से हुई उसकी एक बड़ी दर्दनाक कहानी है।

नारायण राव नानासाहेब पेशवा के सबसे छोटे बेटे थे। अपने दोनों भाईयों की मृत्यु के बाद नारायण राव को पेशवा बनाया गया। नारायण राव को पेशवा तो बना द‌िया गया लेक‌िन उम्र कम होने की वजह से रघुनाथराव यानी राघोबा को उनका संरक्षक बनाया गया और शासन संचालन का अध‌िकार भी राघोबा के हाथों में ही रहा। लेक‌िन इस व्यवस्‍था से राघोबा और उनकी पत्नी आनंदीबाई खुश नहीं थी वह सत्ता पर पूर्ण अध‌िकार चाहते थे।

राघोबा की इस हसरत की भनक नारायण राव को लग गई और दोनों पक्ष के बीच दूरियां बढ़ने लगी। इसी बीच नारायण राव ने सुमेर स‌िंह गर्दी जो भीलों का सरदार था उसे पत्र ल‌िखकर रघुनाथ राव को ग‌िरफ्तार करने का आदेश द‌िया। लेक‌िन इस पत्र को आनंदीबाई ने बदलकर नारायण राव को मारने के हुक्म में बदल द‌िया। समर स‌िंह और नारायण राव के संबंध अच्छे नहीं थे इसल‌िए सुमेर स‌िंह गर्दी ने नारायण राव पर हमला कर द‌िया और इससे घबराकर नारायण राव ‘काका माला वाचावा’ पुकारता हुआ महल में भागा लेक‌िन सुमेर स‌िंह ने अपनी तलवार से नारायण राव का अंत कर द‌िया।

ग्वालियर का किला:

ग्वालियर पर बने इस किले पर बहुत से शासकों ने राज किया। इतने शासकों ने शायद ही किसी और क़िले पर शासन किया होगा। हिंदू, अफ़गानों, अंग्रेजों, दुर्ग, मुगलों और मराठों ऐसे कई अलग-अलग धर्मों के शासकों ने इस क़िले पर शासन किया। इस किले में 1300 साल पुराना रहस्य पाया जाता है। माना जाता है 7 से 15 शताब्दी तक के बीच जैन धर्म के गुफा मंदिर में मूर्तियां बनाई गई थी जिसमें 58 फीट ऊंची आदित्यनाथ की मूर्ति इसका मौजूदा नमूना है। 2.5 कि.मी. मीटर लंबा व 1 किलो मीटर चौड़ा है ये किला। यहां की मीनारे 104 मीटर लंबी है, जो कि ज्यादातर खड़ी व सीधी हैं। यह किला सबसे खूबसूरत ऐतिहासिक इमारतों में गिना जाता है।

भारत के पहले मुगल बादशाह बाबर ने इस किले को ‘भारत के किलो के हार में जड़ा मोती’ कहा था। महल की कारीगरी अपने टाइल के काम के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहां की शिल्पकारी की गिनती प्रसिद्ध इमारतों में की जाती जाती है। हर पत्थर पर एक रहस्मयी तरास्कारी है। मान मंदिर 1686 में तोमर वंश के राजा ने बनवाया था। दुर्ग, पठान अफगान, मुगलों के राज के बाद यह किला रहस्य से जुड़ गया। इस किले में है एक अंधेरा तहखाना जहां का रास्ता जेल तक जाता है।

कहा जाता है कि यहां कैदियों की चीख सुनाई देती हैं और यह रास्ता कालकोठरी का है, जहां बदबूदार अंधेरी लगी रहती है। यहां पर जिसे भी ले जाया जाता है उसके लिए जीवन तो नहीं ज्यादातर मौत ही संभव होती है और उन्हें मुगल अफीम खिलाते थे। जिससे उनकी जिंदगी बद्तर हो जाती थी। उस कालकोठरी में जाने के बाद जो बादशाहों के करीबी थे, जो पसंदीदा थे वह महलों में रहते थे और जिनपर बादशाह भड़क जाते थे उनकी ज़िन्दगी मौत में बदल जाती थी। बादशाह कभी रिश्तों को नहीं देखते थे। उन्हें जिस पर भी गुस्सा आता, वह उन्हें ले जाकर उसी अंधेरी कालकोठरी में डाल देते थे।

मान मंदिर के नीचे बने हॉल में कैदियों को यातना दी जाती थी। यहां पर कैदियों को लोहे के बने छल्लो से लटकाया जाता था। मुगलों का रिश्तेदार होना ज्यादातर अपने ऊपर मुसीबत मोल लेना ही था। इनकी न लाश किले से बाहर आती थी या कहां जाती थी इसका किसी को पता नहीं है। यह अभी भी रहस्य ही है। इस किले में मुगलों के राज के बाद बहुत सारे रहस्य दफन है जो कि आज तक किसी को नहीं पता।

रोहतास गढ़ का किला:

कैमूर की पहाड़ियों में स्थित रोहतासगढ़ क़िला, बिहार के कई अतुल्य विरासतों में से एक है , इसके परिसर में अनेक इमारतें है जिनकी भव्यता देखने योग्य है। रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है| इस किले का घेरा 28 वर्गमील तक फैला हुआ है और इसमें कुल 83 दरवाजे है जिनमें मुख्य चार- घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट हैं। प्रवेश द्वार पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग अद्भुत है। रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी मौजूद हैं। परिसर में अनेक इमारतें हैं जिनकी भव्यता देखी जा सकती है।ऐसा कहा जाता है कि इस किले का निर्माण सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहितशय ने कराया था |

रोहतास का इतिहास इसकी समृद्धि ,सभ्यता और संस्कृति अति समृद्धशाली रही है|इसी कारण अंग्रेज़ों के समय से यह क्षेत्र पुरातात्विक महत्व का रहा है|1807 में सर्वेक्षण का दायित्व फ्रांसिस बुकानन को सौंपा गया वह 1812 में रोहतास आया और कितनी ही पुरातात्विक जानकारियां उसने हासिल की थी| 1881 – 1882 के दौरान बी डब्ल्यू गैरिक ने इस क्षेत्र का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया और रोहतास गढ़ से राजा शशांक की मुहर का साँचा प्राप्त किया|

यह किला जितना ही भव्य है उतना ही रहस्य्मयी भी है| इस किले का अतीत बहुत ही समृद्ध और बलशाली रहा है|इस किले की समृद्ध विरासत ने बहुत सारे राजाओं को अपनी और आकर्षित किया है| इस किले के शीर्ष पर पहुंचने के बाद यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती और सोन नदी का विहंगम दृश्य काफी आकर्षित होता है|अतीत के गौरवशाली और वैभव पूर्ण इतिहास को समझने के लिए पर्यटकों को यहाँ एक बार जरूर आना चाहिए

तालबेहट किला:

तालबेहट का किला उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के तालबेहट में स्थित है। इस किले का निर्माण भरतशाह द्वारा सन 1618 में कराया गया था। ये किला बड़ी झील के किनारे स्थित है। तालबेहट शहर इस  झील जितना बड़ा है, जब रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष कर रही थी तब महाराजा मर्दन सिंह के क्षेत्र में थी। इस किले की एक दिवार को नष्ट करने के बाद अंग्रेज झाँसी चले गए।

यह किला एक बहुत ही शांत जगह पर निर्मित हुई इसके आसपास जंगल है। इस किले के अन्दर एक प्रसिद्ध नरसिंह मदिर हैं और इस किले के दो मुख्य द्वार भी हैं। इस किले से जुड़े ये कहानी आज भी तालबेहट के लोगों को डरा देती है,स्थानीय लोगों के इस किले में जाने से लोग आज भी डरते हैं और इसके पीछे का कारण है इस किले के द्वार पर बनी सात लड़कियों,जिनकी पूजा इस गाँव की औरतें द्वारा की जाती है।

सन 1850 के आसपास मर्दन सिंह ललितपुर के मानपुर के राजा थे वो तालबेहट भी आते-जाते रहते थे इसलिए ललितपुर के तालबेहट में उन्होंने एक महल बनवाया था। उनके पिता प्रह्लाद भी रहा करते थे एक और जहाँ मर्दन सिंह का नाम सम्मान से लिया जाता है,वही उनके पिता प्रह्लाद सिंह ने बुंदेलखंड को अपनी हरकत से कलंकित किया था।

कहानी के मुताबिक अक्षय तृतीया के इस इलाके में महिलाएँ नेग मांगने के लिए राजा के दरवाजे पर जाया करती थी। इस त्योहार पर नेग मांगने की रस्म होती थी इस रस्म को पूरा करने के लिए तालबेहट राज्य की 7 लड़कियां राजा मर्दन सिंह के किले में नेग मांगने पहुंची मर्दन सिंह के पिता प्रह्लाद किले में अकेले थे। लड़कियों की खूबसूरती को देखकर उनकी नियत ख़राब हो गयी और उन्होंने इस सातों को बंदी बनाकार उनके साथ बलात्कार किया। प्रह्लाद के इसी घिनौने की वजह से इन सातों लड़कियों ने महल की छत से कूदकर अपनी जान दे दी और उसी दिन से इस महल में इन सातों लड़कियों के रोने और चिल्लाने की आवाज आती है और गाँव का कोई भी व्यक्ति यहाँ नहीं जाता है।

 

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