113 साल पूर्व आज के दिन प्रयागराज से शुरू हुई थी विश्व की पहली Airmail Service

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 Airmail Service: 18 फरवरी 2024 को देश में चिट्ठियों के हवाई सफरनामें को पूरे 114 साल पूरे हो गए है. लेकिन यह बात गिने चुने लोगों को ही पता होगी कि इस सफर की शुरूआत संगम नगरी प्रयागराज से साल 1911 में 18 फरवरी से शुरू हुई थी. 18 फरवरी 1911 में पहली बार हवाई डाकसेवा की शुरूआत की गयी थी और संयोग उस साल कुंभ का मेला भी लगाया गया था. इसके साथ ही इसी दिन फ्रेंच पायलट मोनसियर हेनरी पिक्वेट ने एक नया इतिहास रचा था. वे अपने विमान में प्रयागराज से नैनी के लिए 6500 चिट्ठियों को लेकर उडे़ थे. वह विमान था हैवीलैंड एयरक्राफ्ट और इसमें दुनिया की पहली सरकारी डाक ढोने का एक नए दौर की शुरूआत हुई थी.

इस डाक सेवा के एक लाख लोग बने थे साक्षी

डाक से जुड़े इस इतिहास की कहानी बताते हुए पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव के अनुसार, ”प्रयागराज में उस दिन डाक की उड़ान देखने के लिए लगभग एक लाख लोग इकट्ठे हुए थे जब एक विशेष विमान ने शाम को साढ़े पांच बजे यमुना नदी के किनारों से उड़ान भरी.विमान नदी को पार करता हुआ 15 किलोमीटर का सफर तय कर नैनी जंक्शन के नजदीक उतरा जो प्रयागराज के बाहरी इलाके में सेंट्रल जेल के नजदीक था.

आयोजन स्थल एक कृषि एवं व्यापार मेला नदी के किनारे लगा था और उसका नाम ‘यूपी एक्जीबिशन’ था. इस प्रदर्शनी में दो उड़ान मशीनों का प्रदर्शन किया गया था। विमान का आयात कुछ ब्रिटिश अधिकारियों ने किया था. इसके कलपुर्जे अलग अलग थे जिन्हें आम लोगों की मौजूदगी में प्रदर्शनी स्थल पर जोड़ा गया. प्रयागराज से नैनी जंक्शन तक का हवाई सफ़र आज से 113  साल पहले मात्र  13 मिनट में पूरा हुआ था.”

इसके आगे कृष्ण कुमार यादव बताते है कि, ”उड़ान महज छह मील की थी, लेकिन प्रयागराज में इस घटना को लेकर एक ऐतिहासिक उत्सव का वातावरण था. जनवरी 1911 में, ब्रिटिश एवं कालोनियल एयरोप्लेन कंपनी ने प्रदर्शन के लिए अपना एक विमान भारत भेजा, जो संयोग से प्रयागराज आया जब कुम्भ का मेला चल रहा था. उस समय, जहाज को देखना तो दूर लोगों ने भी उसके बारे में ठीक से सुना भी न था. इसलिए इस ऐतिहासिक अवसर पर भारी भीड़ होना स्वाभाविक था. इस यात्रा में हेनरी ने पहली बार आसमान से दुनिया के सबसे बड़े प्रयाग कुंभ का दर्शन भी किया.”

मैजेंटा स्याही की जगह पारंपरिक काली स्याही किया गया उपयोग

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि, ”कर्नल वाई विंधाम ने पहली बार हवाई मार्ग से कुछ मेल बैग भेजने के लिए डाक अधिकारियों से संपर्क किया, जिस पर डाक प्रमुख ने सहर्ष स्वीकृति दी. ‘पहली हवाई डाक’ और ‘उत्तर प्रदेश प्रदर्शनी, इलाहाबाद’ मेल बैग पर लिखा था. इस पर एक विमान भी दिखाया गया था, मैजेंटा स्याही की जगह पारंपरिक काली स्याही का उपयोग किया गया था. इसके वजन को लेकर आयोजक बहुत चिंतित थे कि यह आसानी से विमान में ले जाया जा सकता है या नहीं. सावधानीपूर्वक की गई गणना के बाद सिर्फ 6,500 पत्रों को ले जाने की अनुमति दी गई थी और प्रत्येक पत्र के वजन पर भी प्रतिबंध लगाया गया था.”

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भारत में डाक सेवाओं पर तमाम लेख और एक पुस्तक ‘इंडिया पोस्ट 

150 ग्लोरियस ईयर्ज़ का लेखक कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि पहली हवाई डाक सेवा का विशेष शुल्क छह आना था और आय को आक्सफोर्ड एंड कैंब्रिज हॉस्टल, इलाहाबाद को दान में दिया गया था. इस सेवा में पहले से ही पत्रों के लिए विशिष्ट प्रणाली बनाई गई थी.18 फरवरी को दोपहर तक पत्रों को बुक किया गया था. आक्सफोर्ड कैंब्रिज हॉस्टल में पत्रों की बुकिंग के लिए इतनी भीड़ थी कि उसकी हालत मिनी जीपीओ की तरह हो गई. यहाँ डाक विभाग ने भी तीन-चार कर्मचारी रखे थे. चंद दिनों में हॉस्टल में हवाई सेवा के लिए 300 पत्र आए, एक पत्र में 25 रूपये का डाक टिकट भी दिया गया था.पत्र भेजने वालों में प्रयागराज की कई नामी गिरामी हस्तियाँ तो थी हीं, राजा महाराजे और राजकुमार भी थे.

 

 

 

 

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