‘बूंद-बूंद को तरसे लोग’
ऐसी भयंकर गर्मी में अगर आपको पानी न मिले तो जरा सोचिए आपका क्या हाल होगा? ऐसी ही मार महाराष्ट्र के लातूर सहित देश के अन्य कई राज्यों में रहने वाले लोग हर दिन झेल रहे हैं।
मुंबई से करीब 500 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र का लातूर शहर पानी को तरस रहा है। इसी वर्ष मराठवाड़ा में पानी लेते समय भड़की हिंसा में कुछ लोगों की मौत तक हो चुकी है। सूखे का आलम यह है कि मंगलवार को जब ‘पानी एक्सप्रेस’ राजस्थान के कोटा वर्कशॉप से पुणे के मिराज पहुंची तो स्थानीय नेताओं ने फूल और मालाओं से स्वागत किया। जैसे पहली बार भारत में रेल चली हो। यह रेल गाड़ी राहत कार्य को लेकर सरकार की गंभीरता का प्रतीक तो है ही, लेकिन देश में पानी की समस्या की गंभीरता का भी प्रतीक है।
प्यासे हैं नौ राज्य
सूखे की मार सिर्फ लातूर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गंभीर समस्या पूरे देश में दिखाई दे रही है। देश के नौ राज्य प्यास से बेहाल हैं। मराठवाड़ा के लातूर के निवासी रातभर जागकर पानी के इंतजार करते हैं। तो वहीं मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में पुलिस को पानी बांटना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश के आधे से ज्यादा बांध सूख चुके हैं और पूरे राज्य में सिर्फ 46 फीसदी पानी ही पीने लायक बचा है। किसान सरकारी मदद का बांट जोह रहे हैं।
राज्य के ज्यादातर जल स्त्रोत सूख चुके हैं। आधे से ज्यादा बांधों में 10 फीसदी पानी बचा है। वहीं तालाबों में 8.9 फीसदी पानी बचा है। राज्य के 100 में से सिर्फ 45 कुओं में पानी है। राज्य के 32,283 गांव सूखे की चपेट में हैं जिससे 48 लाख किसान परेशान हो रहे हैं। अब तक मध्य प्रदेश में 40 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है।
कर्नाटक के कई जिले भी सूखे की चपेट में हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में काफी दिक्कत हो रही है। टुमकुर जिले से खबर आई है कि यहां के लोगों को पीने का पानी तक नहीं मिल रहा है।
एक मरता शहर ‘लातूर’
देश भर में पानी की किल्लत से जूझ रहे लोगों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए लंबे समय बाद आखिरकार इस समस्या का समाधान तब हुआ, जब मराठवाड़ा के लातूर में प्यासे लोगों को पानी पिलाने ‘पानी एक्सप्रेस’ सांगली के मिराज पहुंची। लातूर में पानी की किल्लत इतनी ज्यादा हो गई है कि अब अस्पतालों में सर्जरी रोकनी पड़ रही है। हालत ये है कि सिर्फ इमरजेंसी सर्जरी की जा रही है। बाकी लोगों की तरह अस्पतालों में भी टैंकरों से पानी दिया जा रहा है लेकिन ये नाकाफी है।
लातूर जिले के लोगों के लिए पीने का पानी लेकर चली ट्रेन मंगलवार सुबह लातूर पहुंच गई। इस रेलगाड़ी में 50 हजार लीटर की क्षमता वाले 10 टैंकर लगे हुए हैं। इस ट्रेन में पांच लाख 40 हजार लीटर पानी है। ‘पानी एक्सप्रेस’ को मिराज से लातूर की 342 किमी की दूरी को तय करने में 17 घंटे लगे।इस ट्रेन के लिए रेल मंत्रालय और महाराष्ट्र सरकार ने मिलकर काफी मेहनत की है। पुणे के मिराज से ढाई किमी दूर पानी का स्रोत है वहां से पानी लाकर इन टैंकरों में भरा गया। इसके लिए सरकार नई पाइपलाइन भी बिछा रखी है। रेल मंत्रालय ने इन तेल टैंकरों को साफ करने के लिए विशेष उपाय किए हैं ताकि पानी खराब न हो। एक वैगन में 54 हजार लीटल पानी आता है।
लगानी पड़ी धारा 144
लातूर के कई इलाकों में पानी की किल्लत इतनी बढ़ी गई है कि लातूर जिले में धारा-144 लगानी पड़ी। सूखा पीड़ित लातूर में पानी लेने के लिए हालत खूनी झड़प तक पहुंच गई है। पानी को लेकर खराब हालात पर काबू पाने के लिए जिले के कलेक्टर पांडुरंग पॉल को 31 मई, 2016 तक धारा 144 का सहारा लेना पड़ा।
पानी को तरस रहा बुंदेलखंड
मालदीव की राजधानी माले के एक जल संयंत्र में आग लगने के कारण पैदा हुई पानी की किल्लत के मद्देनजर भारत ने वायुसेना के परिवहन विमानों और नौसेना के पोतों के जरिए करीब 200 टन पानी भेजा। जबकि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में सूखे के कारण तालाब, कुआं, पोखर और नदियां तक सूखने लगी हैं। ऐसे में मई-जून में स्थिति और ज्यादा भयावह हो जाएगी।
हालत के मद्देनजर 3527 हैंडपंप लगाए जाएंगे। सरकार त्वरित आर्थिक विकास योजना से बुंदेलखंड के पठारी व मैदानी इलाकों में 3527 हैंडपंप लगाएगी। इस मद में 20 करोड़ 85 लाख रुपये खर्च होंगे। सबसे अधिक 813 हैंडपंप जनपद के पठारी व मैदानी इलाकों में लगाए जाएंगे। विशेष सचिव अबरार अहमद ने जिलाधिकारियों को भेजे गए पत्र में कहा है कि इसके लिए राज्यपाल ने प्रशासनिक व वित्तीय स्वीकृति प्रदान करते हुए पहली किस्त के रूप में चार करोड़ 17 लाख रुपये जारी किए।
नहीं हो पा रही शादियां
बुंदेलखंड में कुदरत के कोप के चलते ऐसे हालात हो गए हैं कि बेटियों की शादियां तक रुक गईं हैं। बेटियों की शादी तो तय हो गर्इ है, लेकिन उसके बाद भी उनके हाथ पीले नहीं हो पा रहे हैं। दरअसल यहां के ग्रामीण इलाकों में शादियां रबी की फसल की कटाई के बाद ही होती हैं, लेकिन इस बार यहां फसल तो हुई नहीं, इस कारण से किसानों के हाथ खाली हैं। ऐसी स्थिति में किसानों के पास पैसा नहीं है और इसी कारण से ग्रामीण बेटियों की शादियां भी नहीं कर पा रहे हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े
सूखा मौजूदा सरकार की देन नहीं है। सरकारों की दिक्कत ये है कि वे मुआवजे और राहत कार्य को सूखे का समाधान समझती रही हैं। जिस संकट को इंसानों ने मिलकर कई साल से बुलाया है वो एक दिन या एक साल में नहीं जाएगा। राहत कार्य के नाम पर जो राशि जारी होती है वो दिल्ली से चलते वक्त सैकड़ों करोड़ों में सुनाई देती है और किसान के हाथ में पहुंचते-पहुंचते सौ-दो सौ रुपये की हो जाती है। किसान जितना सरकार से लाचार है उतना समाज से भी और इन दोनों से ज्यादा अपने आप से भी। उसके लिए सबसे बड़ी तकलीफ है कि कोई उसे सुन नहीं रहा है।
केंद्रीय जल आयोग की वेबसाइट के अनुसार देश भर में सबसे अधिक डैम (1845 बांध) महाराष्ट्र में हैं। इनमें से 1693 बांध बन चुके हैं और बाकी बन रहे हैं। महाराष्ट्र ने सैकड़ों बांध बनाने पर हजारों करोड़ फूंक दिये हैं मगर इनसे कुछ लाभ नहीं हुआ। ठेकेदारों की किस्मत तो बदल गई मगर किसान की नहीं। हम अक्सर सोचते हैं कि पानी का संकट किसी दूर दराज के इलाके का है। हमारे अपार्टमेंट में तो कभी आएगा नहीं।
तमाशा बनीं योजनाएं
सरकार को बुंदेलखंड की याद तभी आती है जब चुनाव नजदीक आते हैं। यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में सपा सरकार को बुंदेलखंड की याद सताने लगी है। यहां जो सरकारी योजनाएं हैं वह केवल सपा की चुनावी तैयारी का तमाशा साबित हो रही हैं। सरकारी योजनाओं की हकीकत के लिए कहीं दूर-दराज के गांवों में जाने की जरूरत नहीं है, बल्कि झांसी जिला मुख्यालय से सटे गांवों में ही आपको यह नजारा देखने को मिल जाएगा।
विशेषज्ञों की सलाह
पानी का संकट स्थायी होता जा रहा है। समाधान के किस्से भी मौजूद हैं इस देश में मगर वो संकट के अनुपात में बहुत छोटे हैं। दरअसल हम इसे मौसम का संकट समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं। देशभर में पानी को लेकर हाहाकार है। विशेषज्ञों का कहना है कि सागर और बूंदें अलग हो जाएं तो न सागर बचा रहेगा और न बूंद बचेंगी और देश में भीषण सूखे की यह एक बड़ी वजह है। हमारे देश में लाखों की तादाद में तालाब थे, कुएं थे लेकिन हमने उन्हें रहने नहीं दिया, परिणाम हमारे सामने है।
बारिश के पानी का संचय जरुरी
लातूर हो या बुंदेलखंड या कोर्इ और, हर जगह पानी का संचय करना जरूरी है। बारिश के समय पानी का संचय करना होगा। वहीं सरकार को भी कारगर उपाय करके पानी की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।
जल की बर्बादी रोकें
अक्सर देखा जाता है कि सड़कों या पार्कों में कहीं कोर्इ पाइप या टोंटी खराब हो गर्इ है तो उसे जल्दी ठीक नहीं किया जाता है। इससे रोजाना कर्इ सौ लीटर या हजारों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। विभाग को तो इस पर ध्यान देना ही चाहिए। साथ ही लोगों को भी इस पर ध्यान देकर इसे सही करना चाहिए।
जल है तो कल है
अनावश्यक रुप से अगर कहीं पानी बह रहा है तो उसे बहने से रोकें। इसके लिए सजग रहें। क्योंकि जल है तो कल है। इस बात पर अमल करना हर इंसान का कर्तव्य है। अगर हम यह सोच लें कि कहीं सड़क पर कोर्इ पाइप लाइन टूट गर्इ है और उसको विभाग ही ठीक करेगा तो ऐसा मत सोचिए आप उसके लिए कुछ लोगों को एकत्र कर विभाग के पास जाएं और उसको विभाग से सही कराएं।