चैत्र नवरात्र: किस दिन किस देवी की करें अराधना
लखनऊ। चैत्र नवरात्र की शुरुआत शुक्रवार से होने जा रही है। बाजारों, घरों और मंदिरों में तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। सभी देवी मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया गया है। नौ दिनों तक श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटने की संभावना को देखते हुए मंदिरों में विशेष प्रबंध किए गए हैं।
इस बार यह पर्व नौ दिनों तक चलेगा, जिसमें आदि शक्ति दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाएगी। आठ अप्रैल को चैत्र नवरात्र की शुरुआत कलश-स्थापना से होगी। देवी आराधना के इस पर्व का समापन 16 अप्रैल को होगा। नवरात्र की नवमी तिथि को भगवान श्रीराम का जन्मदिवस ‘रामनवमी’ पर्व भी मनाया जाता है।
किस दिन किनकी पूजा :
प्रथम नवरात्र : 8 अप्रैल (शुक्रवार) मां शैलपुत्री
नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री का है। इस दिन इसी देवी की पूजा की जाती है। शैलपुत्री देवी का नाम क्यों पड़ा इस बारे में कितने लोग जानते हैं यह कहना मुश्किल है। पुराणों के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने के कारण पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं और योग साधना करते हैं।
द्वितीय नवरात्र : 9 अप्रैल (शनिवार)- मां ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। ब्रह्मचारिणी देवी ब्रह्म शक्ति यानि तप की शक्ति का प्रतीक हैं। जो भी भक्त इनकी आराधना करता है उसके तप करने की शक्ति बढ़ जाती है। इनकी आराधना से सभी मनोवांछित कार्य पूरे होते हैं। ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या किए अर्थात बिना कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त नहीं होती। बिना मेहनत के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है।
तृतीय नवरात्रि : 10 अप्रैल (रविवार)- मां चंद्रघंटा
नवरात्रि का तीसरा दिन माता चंद्रघंटा को समर्पित है। यह शक्ति माता का शिवदूती स्वरूप है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। असुरों के साथ युद्ध में देवी चंद्रघंटा ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश कर दिया था। नवरात्रि के तीसरे दिन इनका पूजन किया जाता है। इनकी आराधना से भक्त को सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
चतुर्थ नवरात्रि : 11 अप्रैल (सोमवार)- मां कुष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन की प्रमुख देवी मां कुष्मांडा हैं। यह देवी रोगों को तत्काल नष्ट करने वाली हैं। इनकी उपासना करने वाले भक्त को धन-धान्य और संपदा के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है। मां दुर्गा के इस चतुर्थ रूप कुष्मांडा ने अपने उदर से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कुष्मांडा पड़ा है। मां कुष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्र जागृत होता है। इनकी उपासना से समस्त रोग और शोक दूर हो जाते हैं।
पंचम नवरात्र : 12 अप्रैल (मंगलवार)- मां स्कंदमाता
धर्म शास्त्रों के अनुसार पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा की जाती है। यह भक्तों को सुख-शांति प्रदान करने वाली देवी हैं। देवासुर संग्राम सेनापति भगवान स्कन्द की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। स्कंदमाता हमें सिखाती हैं कि जीवन स्वयं ही अच्छे-बुरे के बीच एक देवासुर संग्राम है और हम स्वयं अपने सेनापति हैं। हमें सैन्य संचालन की शक्ति मिलती रहे। इसलिए स्कंदमाता की पूजा-आराधना करनी चाहिए।
षष्ठ नवरात्र : 13 अप्रैल (बुधवार)- मां कात्यायनी
नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा के छठे रूप यानी कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां साधक को स्वयं ही प्राप्त हो जाती हैं। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता हैं तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
सप्तम नवरात्रि : 14 अप्रैल (गुरुवार)- मां कालरात्रि
महाशक्ति मां दुर्गा का सातवां स्वरूप है कालरात्रि। मां कालरात्रि काल का नाश करने वाली हैं, इसी वजह से इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। नवरात्रि के सातवे दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि की आराधना के समय भक्त को अपने मन को भानु चक्र जो ललाट अर्थात सिर के मध्य स्थित करना चाहिए। इस आराधना के फलस्वरूप भानु चक्र की शक्तियां जागृत हो जाती हैं। मां कालरात्रि की भक्ति से हमारे मन का हर प्रकार का भय नष्ट हो जाता है। शत्रुओं का नाश करने वाली मां कालरात्रि अपने भक्तों को हर परिस्थिति में विजय दिलाती है।
महाष्टमी नवरात्र : 15 अप्रैल (शुक्रवार)- मां महागौरी
नवरात्रि के आठवे दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। आदिशक्ति श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। मां महागौरी का रंग अत्यंत गौरा है इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है। आठवां दिन हमारे शरीर का सोम चक्र जागृत करने का दिन है। सोम चक्र उध्र्व ललाट में स्थित होता है। इस दिन साधना करते हुए अपना ध्यान इसी चक्र पर लगाना चाहिए। श्री महागौरी की आराधना से सोम चक्र जागृत हो जाता है और इस चक्र से संबंधित सभी शक्तियां श्रद्धालु को प्राप्त हो जाती है। इस दिन मां महागौरी को प्रसन्न कर लेने पर भक्तों को सभी सुख स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं।
नवम नवरात्र : 16 अप्रैल (शनिवार)- मां सिद्धिदात्री
नवरात्रि के अंतिम दिन यानि नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री भक्तों को हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करती हैं। इस दिन भक्तों को पूजा के समय अपना सारा ध्यान निर्वाण चक्र जो कि हमारे कपाल के मध्य स्थित होता है, वहां पर लगाना चाहिए। ऐसा करने पर देवी की कृपा से इस चक्र से संबंधित शक्तियां स्वतः ही भक्त को प्राप्त हो जाती हैं। सिद्धिदात्री के आशीर्वाद के बाद श्रद्धालु के लिए कोई कार्य असंभव नहीं रह जाता और उसे सभी सुख-समृद्धि प्राप्त हो जाते हैं।