विश्व आत्महत्या निवारण दिवसः आत्महत्या करनेवालों में भारत का विश्व में 43वां स्थान
आत्महत्या को रोकने के लिए खुली बातचीत को प्रोत्साहित करें
इस साल 10 सितम्बर को 22 वां विश्व आत्महत्या निवारण दिवस मनाया जा रहा है. 2024-26 के लिए विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस का त्रिवार्षिक विषय आत्महत्या पर कहानी बदलना है. इसके लिए ‘बातचीत शुरू करें‘ का नारा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिया गया. इस नारे का उद्देश्य आत्महत्या को रोकने के लिए खुली बातचीत को प्रोत्साहित करना है, ताकि आत्महत्या के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाई जा सके. एआरटी सेंटर, एसएस हॉस्पिटल, आईएमएस, बीएचयू के वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ.मनोज कुमार तिवारी ने बताया कि आत्महत्या ऐसा व्यवहार है, जिसमें मनुष्य अपना जीवन खुद से समाप्त कर लेता है. सबसे पहले व्यक्ति में बार-बार आत्महत्या के विचार आते हैं और फिर वह आत्महत्या का प्रयास करता है, लेकिन आत्महत्या के सभी प्रयास सफल नहीं होते.
Also Read: BHU में मरम्मत, रखरखाव की शिकायतों के लिए डिजिटल व्यवस्था शुरू
पुरूषों की तुलना में महिलाओं में आत्महत्या के विचार अधिक
वहीं पुरुषों की तुलना में महिलाओं में आत्महत्या का विचार अधिक पाया जाता हैं लेकिन एक महिला के सापेक्ष तीन पुरुष आत्महत्या करते हैं. आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों की संख्या के आधार पर विश्व में भारत का 43वां स्थान है. ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज के अनुसार भारत में हर 4 मिनट में एक आत्महत्या होती है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार छात्रों में प्रतिवर्ष आत्महत्या की दर में वृद्धि हो रही है. इसमें 15 – 24 वर्ष के लोगों की मृत्यु का आत्महत्या दूसरा सबसे बड़ा कारण है. 81 प्रतिशत लोग आत्महत्या करने से पहले इसका संकेत जरूर देते हैं. किसी से इसके बारे में चर्चा करते हैं या लिखते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (ॅभ्व्) का अनुमान है कि वैश्विक आत्महत्याओं में से लगभग 77प्रतिशत आत्महत्याएं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं. प्रत्येक आत्महत्या से लगभग 135 लोग प्रभावित होते हैं. बीते सालों में लगभग 7 लाख लोगों की मृत्यु आत्महत्या के कारण हुई है.
सम्बंधों के बिगड़ने का नतीजा है सोशल मीडिया पर लाईव आत्महत्या
डॉ. मनोज कुमार तिवारी ने कहा कि वर्तमान समय में सोशल मीडिया पर लाइव आकर आत्महत्या करने की घटनाएं लगातार बढ़ रही है, जो यह दर्शाता है कि लोगों की व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक संबंध इस कदर बिगड़ गए हैं कि व्यक्ति को व्यक्ति से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का सीधा अवसर नहीं मिल रहा है, सोशल मीडिया पर लाइव आकर आत्महत्या को प्रसारित करने का समाज पर व्यापक व नकारात्मक प्रभाव होता है. इससे न केवल एक बड़ी जनसंख्या तनाव और दबाव का सामना करने को मजबूर होती है बल्कि इससे अन्य लोगों में आत्महत्या की सोच के बढ़ने का भी खतरा होता है. वहीं लाइव आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की मंशा होती है कि वह व्यक्ति विशेष को संदेश देने के साथ-साथ व्यापक रूप से सहानुभूति अर्जित करने की कोशिश करना चाहता है.
सुसाइड से पहले घोषणा का मकसद मदद की अपेक्षा
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर सुसाइड की घोषणा करने वाले व्यक्ति का एक महत्वपूर्ण मकसद यह होता है कि उसे अब भी कहीं से किसी तरह की मदद मिल जाय. वह सांवेगिक सपोर्ट की कामना रखता है, ऐसी पोस्ट के माध्यम से वह लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना का चाहता है. लाइव सुसाइड को एक तरह से सुसाइड नोट कह सकते हैं, जिस तरह से व्यक्ति सुसाइड नोट में माफी मांगता है, अपनी सफाई देता है, अपनी गलती स्वीकार करता है और अपराध बताता है. विशेष घटना के लिए अपने को कसूरवार ठहराता है ठीक उसी तरह से व्यक्ति सोशल मीडिया पर लाइव आकर के लिखने की बजाय अपनी बात खुद बोलकर अपने दुख व अपनी तड़प लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करता है.
ऑनलाइन सुसाइड करने वाले साइबर बुलिंग के शिकार
डॉ.मनोज कुमार ने आगे कहा कि सोशल मीडिया पर ऑनलाइन सुसाइड करने वाले में साइबर बुलिंग के शिकार लोग, कम उम्र के युवा, समाज से अलग-थलग लोग, सोशल मीडिया पर ज्यादा समय व्यतीत करने वाले, मानसिक बीमारी से पीड़ित लोग, लंबे समय तक डिप्रेशन में रहने वाले, अकेलापन महसूस करने वाले और मारधाड़ वाले खेल व फिल्में देखने वालों की संख्या अधिक है.
Also Read: पेरिस पैरालंपिक 2024: भारत ने रचा इतिहास, देखें कौन किसमें जीता मेडल…
बच्चों को दें जीवन के संघर्ष की महत्ता की जानकारी
आत्महत्या निवारण में समाज के प्रत्येक वर्ग की सहभागिता अत्यंत आवश्यक है. प्रारंभिक शिक्षा से ही बच्चों को जीवन में संघर्ष की महत्ता की जानकारी प्रदान की जानी चाहिए उन्हें बताया जाना चाहिए कि जीवन में यदि कोई समस्या है तो उसका समाधान किया जा सकता है.
मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल जरूरी
वहीं भारत सरकार को चाहिए कि शारीरिक स्वास्थ्य देखभाल तंत्र के समान ही लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए भी ग्रामीण स्तर पर मजबूत मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तंत्र तैयार करें. ताकि इसकी मदद से समय रहते बहुमूल्य जीवन को बचाया जा सके. आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से आत्महत्या के प्रयासों को रोकने का सफल प्रयास किये जा रहे हैं जो तकनीकी उपयोग का एक धनात्मक पक्ष है. इसे और अधिक प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है.