विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला: भगवान श्रीराम ने तोड़ा धनुष को गरजने लगे तोप, जयकारों से गूंजी जनकपुर की रंगभूमि
यूनेस्को की सूची में धरोहर के रूप में दर्ज रामनगर की रामलीला का पांचवें दिन धनुष यज्ञ की लीला का हुआ मंचन
वाराणसी की विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में आज शनिवार को सीता स्वयंवर और धनुष भंग की लीला थी. राजा जनक को क्या पता था कि उनकी नगरी में खुद प्रभु के चरण पड़ चुके हैं. तभी तो जब कोई भी राजा शिव का धनुष तोड़ना तो दूर हिला भी न सका. तब राजा जनक विचलित हो गये और कह उठे कि पता होता कि धरती वीरों से खाली है तो ऐसी प्रतिज्ञा ही नही करते. लेकिन वहां तो साक्षात प्रभु थे. छूते ही टूट गया धनुष. लक्ष्मण ने भी परशुराम से ऐसे संवाद किये कि उनका क्रोध चरम पर पहुंच गया. रामलीला के पांचवे दिन का प्रसंग कुछ ऐसा ही था.
धनुष तोड़ने पहुंचे थे एक से बढ़कर एक राजा, हिला भी नही पाए
रंगभूमि आने का आमंत्रण मिलने पर राम और लक्ष्मण मुनि के साथ रंगभूमि पहुंचे जहां उन्हें आमंत्रित राजाओं की श्रेणी में सबसे उच्च स्थान पर बैठाया गया. वहां उपस्थित सभी राजा यह देख आश्चर्यचकित हो जाते हैं. स्वयंवर में सखियों के साथ सीता आती हैं. राजा जनक भाट को बुलाकर अपना प्रण सभी को बताते हैं. उनके प्रण को सुनकर सभी एक से बढ़कर एक राजा धनुष उठाने का प्रयास करते हैं, लेकिन वह उठा नहीं पाते. यह देखकर राजा जनक व्याकुल हो जाते हैं और कहते हैं कि यदि मैं जानता कि पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है तो मैं यह प्रण कभी न करता. जनक के इस कटु वचन को सुनकर लक्ष्मण क्रोधित हो उठते हैं. कहते हैं कि चाहूं तो अभी पृथ्वी को घड़े की भांति उठा कर चुटकी में फोड़ दूं यह धनुष क्या चीज है.
‘तेहिं छन राम मध्य धनु तोड़ा‘
लक्ष्मण को क्रोधित देखकर मुनि विश्वामित्र राम को धनुष तोड़ने का संकेत देते हैं. गुरु की आज्ञा पाकर उन्हें मन ही मन प्रणाम करके राम धनुष को उठा लेते हैं और पल भर में उसकी डोरी खींच कर उसे तोड़ देते हैं. इसके बाद जनक की चिंता दूर हो जाती है. सीता सखियों के साथ जाकर राम के गले में जय माल डाल देती हैं. इधर, शिव धनुष टूटने का समाचार पाकर परशुराम क्रोध से व्याकुल होकर जनक के पास पहुंचते हैं और उन्हें भला-बुरा कहने लगते हैं. यह देखकर लक्ष्मण उनसे उलझ जाते हैं और कठोर वाणी बोलने लगते हैं. इस पर श्रीराम हस्तक्षेप करते हैं और उनके क्रोध को शांत कर देते हैं. परशुराम श्रीराम को अपना धनुष देकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने को कहते हैं. राम के ऐसा करते ही परशुराम को विश्वास हो जाता है कि राम के रूप में पृथ्वी पर भगवान का अवतार हो चुका है. वह राम की जय जयकार करते हुए उनसे क्षमा मांग कर लौट जाते हैं. विश्वामित्र की आज्ञा से जनक अपने दूत से राजा दशरथ को बारात ले कर आने का निमंत्रण भेजते हैं. जनकपुर में राम और सीता के विवाह की तैयारी शुरू हो जाती है. यहीं पर आरती के बाद लीला को विश्राम दिया जाता है.
एक पल को लगा जैसे ठहर गया हो वक्त……….
विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के दौरान शाम के साढ़े छह बज रहे थे. जनकपुर जाने वाले हर रास्ते पर चहलकदमी थी. हर किसी में जनकपुर पहुंच कर जगह लेने की होड़ मची थी. जनकपुर पहले ही लोगों से पटा पड़ा था. यह होड़ इसलिए मची थी कि धनुष यज्ञ की लीला थी और सीता और राम का वह मनोहारी समागम होने वाला था जिसका दृश्य आंखों मे कैद करने की लालसा सभी को थी. शाम सात बजते-बजते पूरा जनकपुर लोगों से भर गया. अब सबकी निगाहें उस मंच पर टिकी जहां श्रीराम मुनि विश्वामित्र के साथ बैठे हुए थे. इधर ठीक सात बजकर पांच मिनट पर रामायणियों ने चौपाई शुरू की ‘गुरूहिं प्रणाम मनहि मन कीन्हा‘….उधर श्रीराम उठ खड़े हुए रंगभूमि की ओर चलने के लिए. भीड़ में कोलाहल बढ़ना शुरू हुआ. धीरे धीरे चलते हुए श्रीराम सात बजकर 20 मिनट पर रंगभूमि पहुंच गए. हर किसी की निगाहें अब रंगभूमि में खड़े प्रभु श्रीराम पर थी. सभी देख ही रहे थे कि श्रीराम ने सात बजकर 25 मिनट पर धनुष उठा लिया.