विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला…लो कैकेयी ने दिखा दिया तिरिया चरित्र, अयोध्या सदमें में

मांग लिया श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास, छाती पीट-पीटकर जमीन पर तड़पने लगे राजा दशरथ

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यूनोस्को की सूची में दर्ज विश्व प्रसिद्ध वाराणसी के रामनगर की रामलीला सामाजिक, राजनीतिक और कूटनीतिक प्रसंगों के साथ जब लीलाप्रेमियों के सामने होती है तो उनके मन में भावनाओं का समुद्र हिलोरे लेने लगता है. अभी कल की ही बात थी. पूरी अयोध्या खुशियों के सागर में डूबी हुई थी, लेकिन आज उसकी खुशियों पर ऐसा वज्रपात हुआ कि राजमहल ही नही पूरी अयोध्या ही असह्य पीड़ा से कराह उठी. कैकेई ने तिरिया चरित्र दिखा दिया और श्रीराम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांग कर राजा दशरथ को तो निःशब्द कर दिया. साथ में अयोध्या को ऐसी दुविधा में डाल दिया जहां से हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था.

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रामलीला के आठवें दिन कैकेई कोपभवन की लीला उदास माहौल में हुई. इस लीला के साथ ही अयोध्या कांड की शुरुआत हुई. महाराज दशरथ एक दिन आईने के सामने अपना मुकुट ठीक कर रहे थे. तभी उन्होंने देखा कि उनके बाल सफेद हो रहे हैं.

श्रीराम के राजतिलक की तैयारी होते ही घबरा गए इंद्र

अपनी अवस्था को देखते हुए राजा दशरथ ने श्रीराम को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय किया. गुरु वशिष्ठ से सलाह के बाद उन्होंने राम के राजतिलक की तैयारी शुरू करा दी. यह देख देवताओं के राजा इन्द्र घबरा गए. आनन-फानन में वे माता सरस्वती के पास पहुंचे. उनसे निवेदन किया कि आप कुछ ऐसा उपाय करें, जिससे राम राजपद छोड़कर वन जांए ताकि जिस काम के लिए उन्होंने पृथ्वी पर अवतार लिया है वह पूरा हो सके.

दासी मंथरा बनी खलनायक, कोपभवन चली गईं कैकेयी

सरस्वती कैकेयी की दासी मंथरा की बुद्धि फेर कर चली जाती है. इसके बाद मन्थरा ने तरह- तरह से बातों में फंसा कर कैकेई को राजा दशरथ के दो वचनों को याद दिलाया. कहा कि वह कोपभवन जाकर राजा से राम के लिए वन और भरत के लिए राज मांग ले. कैकेयी ऐसा ही करती हैं और वह कोपभवन चली जाती है. कैकेयी को मनाने जब राजा दशरथ कोप भवन में गए तो उन्होंने राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया.

श्रीराम ने 14 वर्ष का वनवास सहर्ष स्वीकार किया, अवसाद में डूबी अयोध्या

श्रीराम के वनवास की बात सुनते ही राजा दशरथ जमीन पर गिर पड़े. राजा दशरथ कहते हैं कि सूर्यवंश के लिए कुल्हाड़ी न बनो. वे छाती पीट-पीटकर जमीन पर तड़पने लगे और अचेत हो गए. सेवक के कहने पर सुमंत कोपभवन पहुंचे तो वह राजा दशरथ की दशा देखकर परेशान हो गए. कैकेई ने उनसे राम को बुलाने को कहा. जब राम कोप भवन पहुंचे तो कैकेयी ने अपने वरदान के बारे में बताया. उनकी बात सुनकर श्रीराम सहर्ष वन जाने के लिए तैयार हो गए. दशरथ उन्हें गले लगाते हैं लेकिन कुछ बोल नहीं पाते हैं. अयोध्या अवसाद में डूब जाती है. राम के बिना अयोध्या में रहने की सोच सभी विधाता को कोसने लगे.

माता कौशल्या ने श्रीराम को चिरंजीवी, सीता को अचल सुहागन का दिया आशीर्वाद

इसके बाद कौशल्या ने श्रीराम को हृदय से लगाकर चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया. राम उनसे वन जाने की बात बताकर अनुमति मांगते हैं. उसी समय सीता आकर उनकी चरण पकड़ कर उनको प्रणाम करती हैं तो उन्होंने उनको अचल सुहागन होने का आशीर्वाद दिया. इसके बाद आरती के साथ कोप भवन की लीला को विश्राम दिया गया.

 

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