Women’s Day: 8 मार्च को ही क्यों मनाते हैं महिला दिवस ?
Women’s Day: नारियों को पहले पुरुषों के मुकाबले शारीरिक और बौद्धिक रूप से कमतर आंका जाता था ये आज भी होता है और बहुत पढ़े लिखे संभ्रांत परिवारों में भी होता है. लेकिन पहले ये कुछ ज्यादा हुआ करता था. कानून व धर्मशास्त्र दोनों में ही उनकी पराधीनता की व्यवस्था थी. महिलाएं अपने नाम से कोई संपत्ति नहीं खरीद सकती थीं. व्यवसाय नहीं कर सकती थीं और व्यवसाय करती भी थीं तो उनके काम के घंटे ज्यादा हुआ करते थे. इसके साथ ही पुरुषों के मुकाबले में उनका वेतन भी कम हुआ करता था और आज भी यह समानता नहीं देखने को मिलती है.
एक आवाज उठी इतिहास में और फ्रांसीसी क्रांति के दौरान महिला रिपब्लिकन क्लबों ने एक मांग की थी कि आज़ादी, समानता और भ्रात्तिव का व्यवहार बिना किसी लिंग भेद के लागू होना चाहिए. इसे आप फेमिनिज्म से जोड़कर भी देख सकते हैं. फेमिनिज्म जिसे हिंदी में स्त्री विमर्श और नारी वाद जैसे शब्द प्रचलित हैं.
महिला दिवस की कैसे हुई शुरूआत?
महिला दिवस का इतिहास 20वीं सदी की शुरुआत से है, जब महिलाएं अपने अधिकारों और सम्मान के लिए संघर्ष करती थीं. 1908 में एक आधिकारिक विरोध के दौरान, न्यूयॉर्क में कुछ कपड़ा कारखानों में काम करने वाली महिलाएं हड़ताल पर चली गईं.
उनका उद्देश्य खराब कामकाजी परिस्थितियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना था. अधिकारों और सम्मान के लिए रखा गया प्रस्तावबाद में, 1910 में अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में महिलाओं के अधिकारों और सम्मान के लिए हर साल एक दिन समर्पित करने का प्रस्ताव रखा गया. इसके बाद यह दिन अलग-अलग देशों में अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाने लगा.
इसलिए इस दिन मनाया जाने लगा यह दिवस
8 मार्च को महिला दिवस मनाने का विकल्प तब आया, जब 1917 में रूसी क्रांति के दौरान, हड़तालियों ने जार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इस दिन को बाद में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा, जो आज भी हर साल मनाया जाता है.इस दिन का उद्देश्य महिलाओं के सम्मान, अधिकार और समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है. महिला दिवस के माध्यम से लैंगिक समानता के विचार और समाज में महिलाओं के योगदान को बढ़ावा दिया जाता है.
क्यों खास है महिला दिवस ?
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष है क्योंकि यह महिलाओं के सम्मान, अधिकारों और योगदान का जश्न मनाने के लिए समर्पित दिन है. इस दिन का उद्देश्य लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करना है.
बहुत से देशों में इस दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है. इस दिन बहुत से देशों में विभिन्न कार्यक्रम होते हैं. कई देशों में ये भी प्रचलन है कि इस दिन महिला और पुरुष एक दूसरे को फूल देते हैं और कहते हैं कि हम दोनों समान हैं और कोई अंतर हमारे बीच में नहीं है.इस दिन लोग अपनी मां को, बहनों को, पत्नी को, बेटियों को, अपनी शिक्षिकाओं को याद करते हैं जिन्होंने उनके जीवन में कुछ न कुछ योगदान दिया है.
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क्या है फेमिनिज्म ?
फेमिनिज्म जिसे हिंदी में स्त्री विमर्श और नारीवाद जैसे शब्द प्रचलित हैं. नारीवाद महिलाओं के अधिकारों और समानता की वकालत करता है. यह आंदोलन उनकी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति में समानता की मांग करता है. महिलाएं समाज में समानता और न्याय प्राप्त करने के लिए अपने अधिकारों और अवसरों के लिए लड़ती हैं. नारीवाद की मुख्य मांग यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार मिलना चाहिए.