मनोकामनाएं होगी पूरी, साथ ही पितरों को मिलेगी मुक्ति..लहुराबीर बाबा का आर्शीवाद इतना खास
लहुराबीर में विराजमान काशी के प्राचीन श्री श्री 1008 बाबा लहुराबीर बाबा.
वाराणसी के लहुराबीर में विराजमान काशी के प्राचीन श्री श्री 1008 बाबा लहुराबीर बाबा का दर्शन करने से मनुष्य सभी बाधाओं से मुक्त हो जाता है. बाबा लहुराबीर सात भाई थे जिसमें ये सबसे लहुरा अथवा छोटे थे, इसलिए इनका नाम लहुराबीर पड़ा. इन्हें 52 जिले का मालिक बताया जाता है. ये उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश के भी मालिक कहे जाते हैं.
पिशाचमोचन अथवा गया बैठाने से पहले दर्शन जरूरी
कहा जाता है कि जो लोग पितरों को पिचाश्मोचन अथवा गया बैठाने जाते हैं तो इसके पूर्व लहुराबीर बाबा का दर्शन किया जाता है. इसके बगैर उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है. कोई भी शुभ कार्य करने के पहले लोग बाबा लहुराबीर का आशीर्वाद लेते हैं.
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बाबा के दरबार में शुभ कार्य
यहां पर दूरदराज से लोग मुंडन, शादी-विवाह और दर्शन-पूजन के लिए भी आते हैं. मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति बाबा का दर्शन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. बाबा को प्रसाद में लड्डू का भोग लगता है. इसके अलावा दारु, गांजा और भांग भी चढ़ाया जाता है.
बनारस में शारदीय नवरात्र की धूम, पंडाल में बन रहा महाकालेश्वर मंदिर
शारदीय नवरात दुर्गापूजा के दौरान काशी में उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की झलक देखने को मिलेगी. बाबा मच्छोदरानाथ दुर्गोत्सव समिति की ओर से मच्छोदरी में उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के स्वरूप का भव्य पूजा पंडाल बनवाया जा रहा है. पंडाल में स्थापित होने वाली मां दुर्गा की प्रतिमा में उनका निराला स्वरूप दिखेगा.
महाकालेश्वर मंदिर के आकार का पंडाल
इसके लिए समिति आयोजन की तैयारी में जुटी हुई है. वहीं इस बार दुर्गा पूजा के लिए उन्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के आकार का पंडाल बनवाया जा रहा है. बंगाल के कारीगर पंडाल का निर्माण कर रहे हैं.
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पंडाल में सुरक्षा के मद्देनजर सीसीटीवी कैमरे लगाये जायेंगे. इसके जरिये पूरी निगरानी की जायेगी. अग्निशमन यंत्र के साथ किसी तरह के हादसे से बचने के लिए सुविधा रहेगी.
लाखों रूपए की लागत से बनेगा पंडाल
लगभग 12 लाख रुपए की लागत से पंडाल बन रहे है. पंडाल में प्रवेश और निकास के लिए अलग-अलग द्वार बनवायें जा रहे हैं. आयोजन के दौरान जिला प्रशासन की गाइडलाइन का पूरा ध्यान रखा जायेगा.
पंडाल में स्थापित होने वाली मां की प्रतिमा मिट्टी की ही होगी, लेकिन इसमें मां का स्वरूप बिल्कुल निराला होगा. दुर्गापूजा के दौरान पांच दिनों तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा. इस दौरान भजन संध्या, लोक संगीत के साथ ही गरबा और डांडिया का भी आयोजन किया जायेगा.