क्या जीएसटी का हश्र नोटबंदी जैसा ही होगा?
कहीं ऐसा न हो कि जीएसटी का हश्र नोटबंदी जैसा हो जाये। सरकार अभी तक कितने नोट वापस आये यह बता पाने में नाकाम है।
नोटबंदी देखकर यह लग रहा था कि काफी कुछ हासिल होगा मगर अब पता चल रहा है कि इससे कुछ भी हासिल नहीं होगा। यह एक नाकाम कदम था जिसने अर्थव्यवस्था को पीछे ढकेल दिया है।
हजारों करोड़ रुपये नये नोट छापने में खर्च हो गये। अब भी गांवों के एटीएम खाली पड़े हैं। न देश कैशलेस बना, न लेस कैश बना। अब तो कैश वापस भी आ चुका है।
अभी यह जीएसटी के बारे में नहीं कहा जा सकता कि यह नाकाम है पर जो सूचनाएं या सर्वे आ रहे हैं उनसे पता चल रहा है कि किस तरह विपरीत परिणाम सामने आ सकते हैं।
दुनिया की एक बड़ी सर्वे कंपनी है आईएचएस मार्किट। आईएचएस मार्किट की अर्थशास्त्री और रिपोर्ट की लेखिका पॉलयाना डी लीमा ने कहा, “जुलाई का पीएमआई आंकड़ा समूचे भारत के भाग्य के उल्टा पड़ने को दर्शाता है, क्योंकि अर्थव्यवस्था मंदी में चली गई है, जबकि जून में इसमें थोड़ी तेजी थी।”
उन्होंने कहा, “सेवा क्षेत्र में मंदी से पहले विनिर्माण क्षेत्र में मंदी देखी गई है जो वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही की शुरूआत के लिए निराशाजनक है।”
डी लीमा ने कहा कि निजी क्षेत्र की गतिविधियों में नोटबंदी के झटके के बाद पहली बार गिरावट दर्ज की गई है।
यह कंपनी दुनिया भर की सरकारों व कंपनियों को डेटा व जानकारी देती है बिजनेस, एयरोस्पेस, डिफेंस, समुद्री व्यापार आदि के बारे में बताती रहती है। ताकि वे निवेश के मामले में सही निर्णय ले सकें।
इनके मुताबिक भारत में परचेजिंग मैनेजर इंडेक्स यानी हमारे यहां जो उत्पादन होता है उसकी माली सेहत क्या है, यह उसका इंडिकेटर होता है।
इसके मुताबिक जून के 50.9 केमुकाबले जुलाई में 47.9 था। यह फरवरी 2009 से सबसे कम आंकड़ा है। 2008 में दुनिया में जो मंदी छाई थी उस समय के मुकाबले भी सबसे निचला आंकड़ा है। यह बताता है कि भारत की आर्थिक सेहत किस तरह नीचे आयी है। जीएसटी के जो चार स्लैब 5, 12, 18, 28 प्रतिशत बनाया गया है, यह वन कंट्री वन टैक्स के नारे को पूरा नहीं करता है।
सिंगापुर में एक ही टैक्स लगता है 7 प्रतिशत, मलयेशिया में छह प्रतिशत, न्यूजीलैंड में 15 प्रतिशत, ब्राजील में सात व 12 प्रतिशत तथा जर्मनी में 19 प्रतिशत लगता है। जीएसटी की परिकल्पना मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में की गयी थी उस समय यह सोचा गया था कि एक ही टैक्स लगेगा 15 या फिर 18 प्रतिशत। उस समय यही विपक्ष में रहने वाली भाजपा ने जीएसटी को बड़ा बुरा बताकर इसे संसद में पास तक नहीं होने दिया गया था। आज हालत यह है कि इसमें कोई स्पष्टता नहीं है।
अब उत्पादनकर्ता अपना रेट नीचे लाकर माल तैयार करा रही हैं ताकि लोगों में खरीद की क्षमता बढ़े। लोग खरीद कम कर रहे हैं ताकि उनके पास जो पैसे कम हैं उससे ही किसी तरह खर्च चला सकें। पैसा सर्कुलेशन में नहीं आ रहा है। इसीलिए रिजर्व बैंक को रेपो रेट कम करना पड़ा। इंटरेस्ट कम करना पड़ा जो शुभ संकेत नहीं है।
हमारे यहां कूड़ा बीनने का काम अक्सर बच्चे करते हैं उन्हीं से उनका खर्च चलता है। जीएसटी से उनकी भी नौकरियां जा रही हैं। कारण जो रिसाइकिल प्लास्टिक है उसपर अब 18 प्रतिशत जीएसटी लगेगा। इसका परिणाम यह हो रहा है उनसे रिसाइकिल प्लांट वाले कम कूड़ा प्लास्टिक खरीद रहे हैं।
यह असंगठित क्षेत्र का रोजगार देने वाला बड़ा बिजनेस है, जो बैठ रहा है। सूरत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री पर तो बड़ा बुरा असर पड़ा है। लाखों की तादाद में उन्होंने जुलूस आदि निकाले पर नतीजा सिफर रहा। इस इंडस्ट्री में अलग अलग प्रोसेस से गुजरते कपड़ों पर बीस प्रतिशत टैक्स लगने की आशंका है। चारों तरफ अफरातफरी का माहौल है।
यही नहीं देश के सेवा क्षेत्र की गतिविधियां पिछले महीने साल 2013 के सितंबर से सबसे निचले स्तर पर आ गई है। निक्केई इंडिया सर्विसेज पीएमआई बिजनेस एक्टिविटी इंडेक्स के आंकड़ों के मुताबिक वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने तथा कमजोर मांग के कारण कारोबार प्रभावित हुआ है।
सीजनली समायोजित सेंसेक्स जुलाई के दौरान 45.9 पर रही, जोकि जून में 53.1 पर थी। इस सूचकांक में 50 से ऊपर का अंक आर्थिक गतिविधियों में विस्तार का तो 50 से नीचे का अंक मंदी का सूचक है। इसी प्रकार से सीजनली समायोजित निक्केई इंडिया कंपोजिट पीएमआई आउटपुट सूचकांक में भी जुलाई में तेज गिरावट दर्ज की गई और यह 46 पर रही, जबकि जून में यह 52.7 थी।
मौजूदा सरकार के कार्यकाल में यह अपने सबसे निचले स्तर पर आ गयी है। स्वयं स्वदेशी विचार मंच जो आरएसएस का ही एक अंग है उसका तो साफ कहना है कि जीएसटी लागू करते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि स्माल स्केल इंडस्ट्री जो कि बड़ी तादाद में नौकरी देते हैं उसका हित क्या है। बीड़ी, पटाखे, पेय पदार्थ, बिस्कुट अचार, टाफी, कैंची आदि पर ज्यादा जीएसटी लग रहा है।
जो ब्रांड रजिस्टर्ड हैं उन पर तो टैक्स है पर जो नहीं हैं उनपर कोई टैक्स नहीं है। लिहाजा जो उत्पादक हैं वे अन रजिस्टर्ड ब्रांड के जरिये अपना टैक्स बचाकर सामान बेचें। उम्मीद यह की जानी चाहिये कि जीएसटी का कन्फ्यूजन जल्द दूर होगा और नोटबंदी का जो बुरा हश्र हुआ है वैसा जीएसटी का नहीं होगा।