Paramendra Mohan: जानिए आईएएस नतीजों को लेकर बिहार के छात्रों को क्यों दी जानी चाहिए बधाइयां…

एक चर्चा छिड़ी हुई है फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुपों में कि आईएएस नतीजों को लेकर बिहार के छात्रों को बधाइयां क्यों दी जा रही हैं? इसमें गैरबिहारियों के साथ-साथ स्वयंभू प्रगतिशील, दूरद्रष्टा बुद्धिजीवी बिहारी भी शामिल हैं।

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[bs-quote quote=”यह आर्टिकल देश के जाने-माने पत्रकार परमेन्द्र मोहन (Parmendra Mohan) के फेसबुक वॉल से लिया गया है।” style=”default” align=”center” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2021/09/paramendra-mohan-1.jpg”][/bs-quote]

एक चर्चा छिड़ी हुई है फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुपों में कि आईएएस नतीजों को लेकर बिहार के छात्रों को बधाइयां क्यों दी जा रही हैं? इसमें गैरबिहारियों के साथ-साथ स्वयंभू प्रगतिशील, दूरद्रष्टा बुद्धिजीवी बिहारी भी शामिल हैं। अब हम तो न सर्वज्ञ हैं और न ही गहन विषयों के मर्मज्ञ लेकिन बिहारी हैं और शुद्ध 24 कैरेट वाले बिंदास बिहारी तो हमने डंके की चोट पर बधाई भी दी, एक बिहारी सौ पर भारी का जयकारा भी लगाया और अब इस बहस के ज़ोर पकड़ने के बाद फिर से हाज़िर हूं तो शुरुआत इससे कि जो उपलब्धि हासिल हुई है, उसके लिए सिविल सर्विसेज़ परीक्षा में उत्तीर्ण हर बारहवें बिहारी को बधाई, टॉप टेन के सभी तीन बिहारियों को विशेष बधाई और नंबर वन को विशेष-विशेष बधाई।

गर्व का अवसर है तो निराशावादियों और दोहरी ज़िंदगी जीने वालों की बातों से निराश नहीं होना है। मेरी टाइमलाइन पर पोस्ट्स, वीडियो देखें, देश के उन किसानों में से जिन्होंने कोरोना आपदा के दौरान अलग तरह के प्रयोग कर आय बढ़ाई, उन सभी के नाम लेकर प्रशंसा की है, उनमें कोई बिहारी नहीं हैं । ये वीडियो सिविल सर्विस नतीजों से पहले ही पोस्ट की थी। विशिष्ट उपलब्धियों की प्रशंसा होनी ही चाहिए। उनकी बात अलग है, जो बधाई देने में भी मीन-मेख निकालते हैं, हम इतने संकीर्ण मिजाज के नहीं हैं, हम तो जिनसे कभी मिले भी नहीं, उनके जन्मदिन या ज्वाइनिंग याउनकी खुशी की हर खबर पर भी पता चलते ही बधाई देते हैं। इस बार भी सबसे ज्यादा छात्र यूपी से उत्तीर्ण हुए हैं तो यूपी को भी भरपूर बधाई।

हां तो मित्रों की चर्चाओं में ये ज्ञान सामने आया कि आईएएस टॉपर्स बन कर कौन सा तीर मार लिया? पहले के जो बिहारी आईएएस हुए, उन्होंने क्या विकास कर दिया? मज़े की बात ये है कि यही वो लोग हैं जो कहते हैं कि मोदी ने गुजरात का विकास कर दिया, योगी ने यूपी का, शिवराज ने एमपी का, कैप्टन ने पंजाब का, ममता ने बंगाल का वगैरह-वगैरह लेकिन बिहार का अपेक्षित विकास नहीं हुआ तो यहां कोई पार्टी, नेता या सरकार नहीं बल्कि बिहारी आईएएस के कारण नहीं हुआ! ये दलील उन्हें जमती होगी, मुझे नहीं।

एक मित्र ने लिखा कि बिहारी इसलिए आईएएस बनना चाहते हैं क्योंकि सामंती मानसिकता है, लेकिन उन्होंने ये नहीं लिखा कि बिहार के अलावा देश भर से जो प्रतियोगी इस परीक्षा में शामिल होते हैं, वो किस मानसिकता के होते हैं? बिहारी सामंती और गैरबिहारियों समाजवादी? ये दलील भी हज़म नहीं होती।

एक मित्र ने टिप्पणी में लिखा कि मत भूलिए कि हर चौथा क्रिमिनल बिहारी है। मैंने उनसे पूछा कि उनकी खुद की पार्टी समेत देश का हर करीब दूसरा सांसद यानी 43 फीसदी आपराधिक मामलों का आरोपी है, ये क्यों भूल गए? नेताओं के मामले में जुबान पर क्यों ताला लग जाता है?

एक ने लिखा कि बिहारियों में कितना मिथ्या अभिमान है! आईएएस टॉपर पर इतना सीना फुला रहे! मैंने उनकी प्रोफाइल चेक की तो मुंबई से कनेक्शन निकला, ईसाई मिशनरी में पढ़े हैं, जाहिर है उनके यहां बिहारियों से मारपीट स्वाभिमान होगा, लेकिन उन्हीं गरीब गंद मचाने वाले ठेले-खोमचे वाले, ऑटो-टैक्सी वाले बिहारियों के राज्य से शिक्षा में पिटने पर मिथ्याअभिमान का बोध हो आया!

मित्रों दिल को साफ रखें। बिहार देश के पिछड़े राज्यों में है, इसलिए इस सफलता के गहरे मायने हैं, इसलिए सोच को विस्तृत करें। ये वो परीक्षा है, जिसमें शीर्ष स्थान पर वापसी में दो दशक लग गए वर्ना बाकी तमाम परीक्षाओं में बिहारियों ने अपनी सफलताओं से वो हाल कर दिया कि कई राज्यों को अपने ही राज्य के लिए कोटा निर्धारित करने की नौबत आ गई। अब तो ये हाल है कि वर्तमान की हर समस्या का समाधान इतिहास में दशकों पीछे जाकर तलाशने वाले बुद्धिजीवी सलाह दे रहे हैं कि बिहार के स्वर्णिम इतिहास पर इतराना बंद हो।

अच्छा लगे या बुरा, सच ये है कि न खेलब न खेले देब की सोच है। ये देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा हमेशा से रही है। सभी मंत्रालयों में, जहां से देश के लिए नीति, योजना, योजना क्रियान्वयन, विदेश नीति, कूटनीति सबकुछ सरकारें तय करती हैं, वो इसी परीक्षा से चुने गए मेधावियों से होता है। जो खुद नहीं कर सके, जो खुद कर सकते भी नहीं, स्वाभाविक रूप से इनकी आलोचना ही करेंगे, दूसरों की मेधा सराहने के लिए खुद के पास बड़ा दिल होना ज़रूरी होता है।

बिहारियों के मामले में ये सफलता इसलिए ख़ास है क्योंकि वहां बुनियादी शिक्षा भी बदहाल है। ये एक संपन्न राज्य नहीं है, पिछड़ा राज्य है, प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है, लेकिन हर बिहारी जानता है कि हर परिवार का अपना जो खर्च होता है, उसका बड़ा हिस्सा शिक्षा पर जाता है। बिहार में उद्योग नहीं हैं, आधा राज्य सालाना बाढ़ की चपेट में आता रहता है, खेती की पैदावार कम है, ऐसे में शिक्षा ही जीवन है। बचपन से हर बिहारी के दिमाग में उसके पिता भर देते हैं कि उनके हाथ में सिर्फ अच्छे से पढ़ा देना भर है, जिसे वो ज़मीन बेचकर, कर्ज लेकर, दिन-रात पसीना बहाकर कर देंगे, लेकिन अगर बच्चे ने फिर भी कुछ नहीं किया तो आगे भगवान ही जानें।

हर बिहारी छात्र जब बेहतर शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए अपने घर-परिवार से दूर भेजा जाता है तो उसके दिमाग को एक बार पढ़ कर देखिएगा, महसूस कीजिएगा उसपर कितना मनोवैज्ञानिक दबाव होता है। उसकी आंखों के सामने अपने घर के एक-एक सदस्य का चेहरा घूमता रहता है, हर पल ये अहसास होता रहता है कि उसकी नाकामी उसके परिवार पर भारी होगी। यही वो अहसास है, जिसने बिहारियों को सब पर भारी बनाया है। ये महज संयोग नहीं है कि न सिर्फ सरकारी बल्कि निजी नौकरियों में भी बिहारियों की संख्या ज्यादा है और ये भी संयोग नहीं कि मीडिया से लेकर शिक्षितों के हर मंच पर बिहारी निर्णायक पदों पर हैं। ये उनकी इसी शिक्षा से संभव हो पाता है। आपने चुनाव प्रचार के दौरान एक वायरल वीडियो देखा होगा, उसमें एक ठेठ देहाती बिहारी बोल रहा था कि बस बच्चा के लिए पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था हो जाए बाकी सब तो वो कमा कर परिवार को खिला ही लेगा। ये सोच है बिहार की, सिर्फ वो नहीं कि बिहार के पास ये नहीं है, वो नहीं है ब्ला-ब्ला-ब्ला।

कई मित्रों ने लिखा कि एलीट हो जाते हैं सिविल सर्विस उत्तीर्ण होने वाले। मेरे नानाजी स्वर्गीय वैद्यनाथ प्रसाद सिंह आईएएस थे, हर सुबह तुलसी के पत्तों पर 108 बार चंदन से श्रीराम लिखते थे, घर में सभी सोए रहते थे, तभी उठकर खुद हैंडपंप से पानी भरकर स्नान करते थे, धोती पसारते थे, फूल तोड़ते थे, भगवान को जगाते थे, उनकी बजाई घंटी की आवाज़ से परिवार जगता था और सभी बेटे-पोते गाड़ियों में घूमते थे, लेकिन वो हमेशा महिंदर के रिक्शा से ही कहीं आते-जाते थे। हमारे परिवार में अभयानंद भैया डीजीपी हुए, नित्यानंद आईजी से रिटायर हुए, हमने किसी को नहीं देखा समाज से कटते हुए, बिहार से भागते हुए। आपको भी पता होगा, सुपर थर्टी के जरिये बिहारियों को आईआईटी के लिए तैयार करने में लगे रहे हमेशा। आप जानना ही नहीं चाहते तो कोई समझा भी नहीं सकता, जानना चाहेंगे तभी समझ पाएंगे। इसी परीक्षा से उत्तीर्ण एक बिहारी ने ही पूरे बिहार के ज्यादातर मंदिरों की दशा सुधार दी, व्यवस्था बना दी, ये किसी को नहीं दिख रहा तो चश्मा बनवाने की ज़रूरत है। और इसमें बुरा क्या है अगर कोई बिहारी सिविल सर्विस अधिकारी अपने राज्य का नहीं, बल्कि दूसरे राज्य का या फिर देश के लिए अपनी सेवाएं देता है? आखिरकार बिहार कोई पाकिस्तान में तो है नहीं, सबसे पहले तो वो हिंदुस्तानी ही है ना।

हम अपने परिवार के सदस्य को अगर उसकी उपलब्धि पर बधाई दें, कहें कि जिओ मेरे लाल तुमने परिवार का नाम रौशन कर दिया तो ये परिवारवाद हो गया? हम अगर अपने राज्य के मेधावियों को बधाई दें तो क्या ये क्षेत्रवाद हो गया? अगर विदेशों में रहने वाला एनआरआई किसी भारतीय की उपलब्धि पर बधाई दे तो क्या ये देशवाद हो गया? ये सब दलीलें रहने दीजिए जनाब, सीधे-सीधे बधाई देना है तो दें, न देना है तो न दें, कोई संविधान ने अनिवार्यता तो निर्धारित की नहीं है, लेकिन जो बधाई दे रहे हैं, उनपर अपनी बुद्धिजीविता का रौब न झाड़ें। अंत में फिर एक बार..एक बिहारी सब पर भारी। अब लिखते रहिए, जिसे जो लिखना है और कहते रहिए, जिसे जो कहना है, मैं तो गर्व से कहता हूं कि हम बिहारी हैं और हमारा राज्य चाहे कितना भी गरीब हो, कितना भी फिसड्डी हो, कितना भी पिछड़ा हो, कितनी भी कमियां हो, हमें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। झोपड़ी ही सही, घर हमारा है, गंदगी ही सही, सफाई हम ही करते हैं, करते रहेंगे। हम इसे संवारने की कोशिश करेंगे, जितना हो सकेगा उतना करेंगे, अकेले पड़ेंगे तो भी करेंगे। इसलिए बिहारी छात्रों, अगर आप मेरी ये पोस्ट पढ़ रहे हों तो एक बात नोट कर लें, निराशावादी जमात के चक्कर में न आएं, ऐसे ही झंडा बुलंद रखें, सफलता की कहानी लिखते रहें। जय हिंद। जय बिहार।

 

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