140 साल से तमिलनाडु-कर्नाटक में पानी को लेकर क्यों है जंग, क्या है कावेरी जल विवाद का मुद्दा, जानें…..

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कावेरी जल विवाद को लेकर आमने – सामने आए कर्नाटक और तमिलनाडु में विवाद के चलते दो दिनों तक बंदी रखनें की योजना बनाई गई थी, जिसके चलते मंगलवार (26 सितंबर) और शुक्रवार (29 सितंबर) राज्यों में बंदी रखने का ऐलान किया गया था। इसके साथ ही दो दिनों से जारी बंदी का आज अंतिम दिन है, ऐसे में टैक्सी ड्राइवर्स और होटल मालिकों सहित कई एसोसिएशन्स ने बंद का समर्थन वापस ले लिया है, लेकिन राज्यों के स्कूल आज भी बंद है। इन सबके बाद उठने वाला बड़ा सवाल ये है कि, आखिर क्या कावेरी जल विवाद, क्यों है दो राज्यों में पानी को लेकर जंग ? आइए जानते है क्या है पूरा मामला….

एक समय पर ठंडी पड़ चुकी इस विवाद की आग एक बार फिर से गरमायी है और यह मुद्दा फिर तूल पकड़ता नजर आ रहा है। दक्षिण के दोनों राज्य पानी को लेकर एक दूसरे के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे है। आपको बता दें कि, दोनो राज्य के बीच यह जंग एक, दो साल नहीं बल्कि 140 सालों से चलती आ रही है। इस विवाद को लेकर पहले निचली अदालत में मामला चल रहा था, उसके बाद यह मामला देश की उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा लेकिन यह विवाद का कोई फैसला नहीं हो पाया। जिसकी वजह से कावेरी जल विवाद जस का तस पड़ा हुआ है। ऐेसे मे आइए जानते है कावेरी जल विवाद क्या है? इसकी शुरुआत कब हुई? उसके बाद से मामला कैसे चला? हालिया दिनों में किस बात को लेकर लड़ाई है? विरोध करने वालों का क्या कहना है?

क्या कावेरी जल विवाद ?

कावेरी नदी कर्नाटक के कोडागू जिले से निकलती है और तमिलनाडु व पुडुचेरी से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कावेरी नदी की लंबाई तकरीबन 750 किलोमीटर है। ये नदी कुशालनगर, मैसूर, श्रीरंगापटना, त्रिरुचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई जैसे शहरों से गुजरती हुई तमिलनाडु से बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कावेरी बेसिन का कुल जलसंभरण (वाटरशेड) 81,155 वर्ग किलोमीटर है जिनमें से कर्नाटक में नदी का जल संभरण क्षेत्र सबसे ज्यादा लगभग 34,273 वर्ग किलोमीटर है।

केरल में कुल जल संभरण क्षेत्र 2,866 वर्ग किलोमीटर है। तमिलनाडु और पांडिचेरी में शेष 44,016 वर्ग किलोमीटर जल संभरण क्षेत्र है। जब कावेरी तमिलनाडु की ओर आती है तो यहां नदी की मुख्यधारा में मेटुर बांध बनाया गया है। कावेरी के साथ कबिनी और मेटूर बांध के संगम के बीच केन्द्रीय जल आयोग ने मुख्य कावेरी नदी पर दो जीएंडडी स्थलों यानी कोलेगल और बिलीगुंडलू की स्थापना की है। बिलीगुंडुलू जीएंडडी स्थल मेटूर बांध के तहत लगभग 60 किलोमीटर है जहां कावेरी नदी कर्नाटक और तमिलनाडु के साथ सीमा बनाती है।

कावेरी विवाद का इतिहास

14 सालों से चल रहा कावेरी जल विवाद लंबे समय से कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच में छिडा हुआ है, हालांकि अब यह विवाद भावनात्मक मुद्दा बन गया है। इस विवाद की शुरूआत 1881 में शुरू हुआ था, जब तत्कालीन मैसूर राज्य (अब कर्नाटक) ने कावेरी नदी पर बांध बनाने का फैसला किया गया था। उस समय मद्रास यानी तमिलनाडु ने इस फैसले पर आपत्ति जतायी थी। इसके बाद सालों से विवाद चलता आ रहा है। इसके पश्चात साल1924 में ब्रिटिशर्स की मदद से एक समझौता हुआ, जिसमें समझौता हुआ कि, कर्नाटक को कावेरी नदी का 177 टीएमसी( हजार मिलियन क्यूबिक फीट) और तमिलनाडु को 556 टीएमसी पानी मिला । इसके फैसले के बाद यह विवाद तकरीबन सुलझ सा गया था, लेकिन दोनो ही राज्य इस फैसले से पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थे।

 

आजादी के बाद 1972 में केंद्र सरकार ने एक कमेटी बनाई। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कावेरी नदी के पानी के चारों दावेदारों (तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पुडुचेरी) के बीच 1976 में एक समझौता हुआ। लेकिन इस समझौते का पालन नहीं हुआ और विवाद चलता रहा। 90 के दशक में विवाद बढ़ता चला गया तो 2 जून 1990 को कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल (CWDT) का गठन किया गया।

ट्रिब्यूनल ने सुनाया ये फैसला

उस फैसले से भी असंतुष्ट होने के बाद कर्नाटक 465 टीएमसी, जबकि तमिलनाडु को 562 टीएमसी मांग कर रहे थे । इस पर साल 2007 में कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाते हुए कर्नाटक को सालाना 270 टीएमसी और तमिलनाडु को 419 टीएमसी पानी देने का फैसला सुनाया, वही केरल को 30 टीएमसी और पुडुचेरी को 7 टीएमसी पानी देने की बात कही । इसके साथ ही जल शक्ति मंत्रालय के जलसंसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के अनुसार, किसी विशेष महीने के संदर्भ में चार बराबर किस्तों में चार सप्ताहों में पानी छोड़ा जाना होता है। यदि किसी सप्ताह में पानी की अपेक्षित मात्रा को जारी करना संभव नहीं हो तो उस कमी को पूरा करने के लिए बाद के सप्ताह में छोड़ा जाएगा। वहीं विनियमित तरीके से तमिलनाडु द्वारा पुडुचेरी के काराइकेल क्षेत्र के लिए जल दिया जाएगा।

 

अब क्या है विवाद ?

कर्नाटक से तमिलनाडु ने 15 हजार क्यूसेक और पानी छोड़ने की मांग की थी। इस पर नाराज होकर कर्नाटक के विरोध के बाद कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने 10 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए कर्नाटक को कहा था। इस बात भी तमिलनाडु तैयार हो गया लेकिन तमिलनाडु का आरोप है कि कर्नाटक ने 10 हजार क्यूसेक पानी भी नहीं छोड़ा है। इसको लेकर अपना पक्ष ऱखते हुए कर्नाटक ने कहा है कि, इस बार दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के कमजोर रहने के कारण कावेरी नदी क्षेत्र के जलाशयों में पर्याप्त जल भंडार नहीं है। ऐसे में कर्नाटक ने पानी छोड़ने से इनकार कर दिया। जिससे यह मुद्दा गरमा गया और दोबारा उपजे विवाद के बाद 18 सितंबर 2023 को कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने कर्नाटक को आदेश दिया कि वह तमिलनाडु को 5,000 क्यूसेक पानी जारी करे। आदेश के तहत कर्नाटक को 28 सितंबर तक तमिलनाडु को पानी देना था।

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सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार दो दिया झटका

 

सूखे की मार झेल रहा कर्नाटक ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसमें कर्नाटक सरकार को झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण के आदेश में कोई भी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। वही सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को हर 15 दिन में बैठक करने का निर्देश दिया। अब कर्नाटक के कई किसान और संगठन तमिलनाडु को पानी दिए जाने के खिलाफ खड़े हो गए हैं। इसी कड़ी में मंगलवार को बेंगलुरु में बंद बुलाया गया। इसके साथ ही प्रदर्शनकारियों ने 29 सितंबर 2023 से पूरे राज्य में बंद का आह्वान किया है।

 

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