क्यो मनाई जाती है ऋषि पंचमी, क्या है इसका महत्व

घाट पर कुटिया बनाकर रहते थे ब्राह्मण दम्पती

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ऋषि पंचमी के बारे में मान्यता है कि प्राचीन समय में विदर्भ देश में उत्तंक नामक सर्वगुण संपन्न ब्राह्मण रहते थे. ब्राह्मण की पत्नी सुशीला बेहद ही पतिव्रता थी. इस ब्राह्मण दंपति को एक पुत्र और एक पुत्री थी. बेटी का विवाह तो हुआ लेकिन कुछ ही समय में वो विधवा हो गई. इस बात से दुखी ब्राह्मण दंपत्ति अपनी बेटी के साथ गंगा के तट पर चले गए और वहीं कुटिया बनाकर रहने लगे.

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उत्तंक ऋषि ने कराया था बेटी को व्रत

एक दिन की बात है, जब ब्राह्मण की पुत्री सो रही थी तभी उसका शरीर कीड़ों से भर गया. बेटी की ऐसी हालत देखकर ब्राह्मण की पत्नी हैरान-परेशान होकर अपने पति के पास पहुंची और उनसे पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है? अपनी पुत्री की इस समस्या का हल खोजने के लिए जैसे ही उत्तंक समाधि में बैठे उन्हें पता चला कि पूर्व जन्म में भी वह कन्या उनकी ही पुत्री थी और उसने रजस्वला होते ही बर्तन छू लिए थे. इसके अलावा उसने इस जन्म में भी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया और इन्ही सब वजहों से सके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं. ऐसे में सभी ने यह निर्णय किया कि पुत्री से ऋषि पंचमी का व्रत कराया जाए, जिससे उसे अगले जन्म में अटल सौभाग्यशाली होने का वरदान प्राप्त हो.

क्या करना चाहिए ऋषि पंचमी के दिन

ऋषि पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं. घर व मंदिर की अच्छे से साफ-सफाई करें और पूजा स्थान पर एक चौकी रखें. सभी पूजा सामग्री जैसे धूप, दीप, फल, फूल, घी, पंचामृत आदि एकत्रित कर लें. चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाने के बाद सप्तऋषि की तस्वीर स्थापित करें और कलश में गंगाजल भरकर रख लें. आप चाहें तो अपने गुरु की तस्वीर भी स्थापित कर सकते हैं. कलश में जल लेकर सप्तऋषियों को अर्ध्य दें और धूप-दीप दिखाएं. अब उन्हें फल-फूल और नैवेद्य आदि अर्पित करें. पूजा के दौरान सप्तऋषियों को फल और मिठाई अर्पित करें. सप्तऋषियों के मंत्रों का जाप करें और अंत में अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करें. सप्तऋषियों के मंत्रों का जाप करें और अंत में सप्तऋषियों से आशीर्वाद लें. पूजा के अंत में सभी लोगों में प्रसाद वितरित कर बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद अवश्य लें.

इस तिथि में मनाया जा रहा ऋषि पंचमी

पंचांग के अनुसार, इस साल भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 7 सितंबर को शाम 5 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगी और 8 सितंबर को शाम 7 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी. इसलिए उदयातिथि के अनुसार, ऋषि पंचमी का व्रत 8 सितंबर को ही रखना चाहिए. ऋषि पंचमी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 8 सितंबर को सुबह 11 बजकर 03 मिनट से दोपहर 01 बजकर 34 मिनट तक रहेगा. ऐसी मान्यता है कि ऋषि पंचमी के दिन सप्तऋषियों की पूजा शुभ मुहूर्त में करना शुभ फलदायी माना जाता है. इसलिए शुभ मुहूर्त में ही सप्तऋषियों की पूजा किया जा रहा है.

सनातनी महिलाओं के लिए ऋषि पंचमी का महत्व

सनातन धर्म में ऋषि पंचमी का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत अधिक महत्व रखता है. महिलाएं हर साल सप्तऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विधि-विधान से पूजा करती है. ऐसी मान्यता है कि ऋषि पंचमी का व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है. इसके अलावा वैवाहिक जीवन खुशहाली से भर जाता है. ऋषि पंचमी का पर्व हर साल भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है. यह पर्व विनायक चतुर्थी के अगले दिन आता है. इस पर्व के दिन सप्त ऋषियों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त किया जाता है. यह व्रत जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति दिलाता है. इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है. यह व्रत पुरुष भी अपनी पत्नी के लिए रख सकते हैं. ऋषि पंचमी के दिन सप्त ऋषियों कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ, गौतम, जमदग्नि, और विश्वामित्र की पूजा की जाती है. ये सात ऋषि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अंश माने जाते हैं. ये ही वेदों और धर्मशास्त्रों के रचयिता हैं. माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है.

पूजा कराने वाले ने क्या बताया

बटुक महाराज ने बताया कि ऋषि पंचमी व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह व्रत अगर सच्ची आस्था और निष्ठा के साथ किया जाए तो इंसान के जीवन के सारे दुख अवश्य ही समाप्त हो जाते हैं. इसके अलावा अविवाहित युवतियों के लिए यह व्रत विशेष फलदायी माना जाता है. इस दिन हल से जोते हुए किसी भी अनाज का सेवन वर्जित माना जाता है. साथ ही इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व भी बताया गया है. ऐसी मान्यता है कि ऋषि पंचमी के दिन सप्त ऋषियों के स्वर्ण की प्रतिमा बनाकर किसी योग्य ब्राह्मण को दान करने से अनंत पुण्य फल की प्राप्ति होती है. सप्तऋषियों के आशीर्वाद से लोगों को किसी प्रकार की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है और जीवन में खुशियां बनी रहती हैं.

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पूजा करने के लिए घाटों पर पहुंची महिलाएं

ऋषि पंचमी मनाने के लिए महिलाएं गंगा घाटों पर पहुंच रही है. इस पूजा को महिलाएं काफी संख्या में मानती हैं. अपने सारे जाने अनजाने में किए गए पाप कर्मों से मुक्ति पाने का यह महिलाओं का आसान तरीका होता है. लोग इसी कामना को लेकर घाटो कुंडों और तालाबों पर पहुंचती है. घाटों पर पहुंची महिलाएं कथा का श्रवण करती है. और अपने इच्छा अनुसार फल फूल माला भी चढ़ती है.

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