मुस्लिम शासक होने के बाद भी ज्येष्ठ मंगल को वाजिद अली ने क्यों की भंडारे की शुरूआत ?
ज्येष्ठ महीने की शुरूआत के साथ ही शुरू हो जाता है बजरंग बली की महिमा और सड़को, गलियों चौराहों पर भंडारों को दौर. इस साल ज्येष्ठ के चार मंगलवार पड़ रहे हैं, जिसमें से दो मंगलवार भव्य भंडारों के आयोजन के साथ संपन्न हो चुके हैं. राम भक्त भारी संख्या में जगह जगह पर इन भंडारों का आयोजन करते हैं, यही वजह है कि, मंगलवार को शहर में कोई भूखा नहीं रहता है. लेकिन क्या आप जानते है कि, ज्येष्ठ के मंगलवार को भंडारे के आयोजन की शुरूआत कैसे हुई? इसकी कहानी क्या रही होगी?
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लखनऊ में ज्येष्ठ माह के बड़े मंगलवार को भंडारे की परंपरा कुछ सालों, दशकों की नहीं बल्कि सदियों पहले से चली आ रही है. यह सुनकर शायद आपको हैरानी भी होगी, लेकिन यह सच है कि, ज्येष्ठ के बड़े मंगलवार को होने वाले भंडारों की शुरूआत किसी राम भक्त ने नहीं, किसी हिन्दू ने नहीं बल्कि लखनऊ के मुस्लिम शासक वाजिद अली शाह द्वारा की गयी थी, तब से यह परंपरा चली आ रही है और हर साल ज्येष्ठ के मंगलवार को भंडारे का आयोजन किया जाता है. लेकिन इसके पीछें की वजह क्या रही होगी आइए जानते हैं …
कैसे शुरू हुई बड़े मंगल पर भंडारे की परंपरा ?
ऐसा कहा जाता है कि, एक बार अवध के मुगल शासक नवाब मोहम्मद वाजिद अली शाह के बेटे की तबीयत बहुत खराब हो गयी थी, काफी इलाज कराने के बाद भी उनके बेटे की हालत में कुछ खास सुधार नहीं हो रहा था. जिसके बाद हालत बिगड़ती हुई देखते हुए कुछ लोगों ने नवाब वाजिद अली और उनकी बेगम आलिया को लखनऊ के अलीगंज स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर जाने और वहां बजरंग बली से तबीयत को लेकर मन्नत मांगने की सलाह दी. ऐसे में बेटे की जिंदगी के लिए उनकी बेगम ने यही किया. जिसके बाद चमत्कार हुआ और उनके बेटे की तबीयत में सुधार होना शुरू हो गया. फिर धीमी धीमी एक समय के बाद वह पूरी तरह से ठीक हो गया. अपने बेटे की तबीयत सही होने की खुशी में नवाब और उनकी बेगम ने अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर में मरम्मत करवाने के साथ – साथ पूरे लखनऊ में गुड़ और प्रसाद बंटवाया था. वो दिन ज्येष्ठ का बड़ा मंगल था. इसके बाद से तब से और आज तक ज्येष्ठ के हर मंगलवार को भंडारे का आयोजन कराया जाता है.
बड़ा मंगल क्यों कहा जाता बुढ़वा मंगल को?
भारत में बड़ा मंगल को बुढ़वा मंगल भी कहते हैं. इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा है कि, एक बार बजरंग बली के वन में विचरण के दौरान उनकी भेंट प्रभु राम से एक पुरोहित के तौर पर हुई थी. कहते है जिस दिन यह भेंट हुई उस दिन ज्येष्ठ महीने का मंगलवार था. वहीं एक और कथा है जिसमें बताते हैं कि, महाभारत काल में भीम को अपने बल पर काफी अभिमान हुआ करता था. इस घमंड को तोड़ने के लिए हनुमान जी ने बूढे वानर का रूप लिया था और भीम का अभिमान को चूरचूर कर डाला था. जिस दिन हनुमान जी ने भीम का घमंड तोड़ा था, उस दिन भी ज्येष्ठ का मंगलवार था. यही वजह है कि, ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले बड़े मंगल को कुछ स्थानों पर बुढवा मंगल के नाम से भी बुलाया जाता है.