अखंड भारत में क्यों शुरू हुई “स्थानीय बनाम बाहरी” की लड़ाई ? मनोवैज्ञानिक ने बताई ये वजह!
वे लोग जिन्होंने ईंटों को जोड़कर घर बनाए, बंजर जमीन को सींचा और खून पसीना बहाकर फसलें उगाई. जो सालों-साल पंजाब की मिट्टी में नहाएं हैं और आज इस मिट्ट्री को अपना ही मान चुके हैं लेकिन इस मिट्टी के सपूतों ने न तो पहले उन्हें अपनाया था और न आज अपना पा रहे हैं. इससे पहले उनके घरों में इन लोगों का प्रवेश वर्जित हुआ करता था. घर के बाहर बने पंप के कच्चे कमरे इनके अस्थायी आशियां हुआ करते थे. वहीं इनका खाना पीना रहना सबकुछ होता था, लेकिन अब उस कच्चे मकान का आशियां भी सर से छिन गया है. अब न वो कच्चा मकान अपना रहा है और न ही वो पिंड जहां सालों साल गुजारे हैं.
बता दें कि पंजाब के गांवों से इन प्रवासियों का अब दाना पानी उठ गया है. उनके गांव में आने पर मनाही है जिससे ये प्रवासी लोग दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हो गए हैं. यह कहानी सिर्फ पंजाब के गांवों की नहीं है बल्कि यह किस्सा अपने देश के अधिकांश राज्यों में देखने को मिलती है. जहां एक विशेष स्थान, लोगों से भेदभाव का बर्ताव किया जाता है, जिसको लेकर समय – समय पर ऐसी घटनाएं और मामले सामने आते रहे हैं. इनमें यह देखने को मिलता है. वहीं अब यह सवाल यह उठता है कि ये घटनाएं भारत के किन राज्यो से अब तक देखने को मिली है और इस सोच के आने का कारण वास्तव में है क्या ?
इन देशों और राज्यों से सामने आई भेदभाव की समस्या …
भारत एक विविधतापूर्ण देश है जहां विभिन्न सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक समूह निवास करते हैं. इसके बाद भी उत्तर भारत के लोग जो मुख्यतः उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश से आते हैं, कभी-कभी विभिन्न राज्यों में भेदभाव का शिकार हो जाते हैं. यह भेदभाव विभिन्न कारणों से उत्पन्न होता है, जिनमें स्थानीय रोजगार की प्रतिस्पर्धा, सांस्कृतिक मतभेद और राजनीतिक विवाद शामिल हैं. आइए इसे विस्तार से समझें…
1. महाराष्ट्र
समय: 2008 और उसके बाद
घटनाएँ:
राज ठाकरे और एमएनएस का विरोध: महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के खिलाफ सबसे प्रमुख घटनाएं 2008 में हुईं. जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों को निशाना बनाया. उन्होंने मुंबई में उत्तर भारतीयों को स्थानीय रोजगार और संसाधनों के लिए खतरा बताते हुए भाषण दिए. उनके इन भाषणों के परिणामस्वरूप मुंबई में कई उत्तर भारतीयों के घरों और व्यवसाय समेत उनपर हमले किए गए.
हिंसक प्रदर्शन: इस विरोध के दौरान उत्तर भारतीयों को हिंसक हमलों और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. यह स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि कई उत्तर भारतीय परिवारों को मुंबई से पलायन करना पड़ा था.
2. कर्नाटक
समय: 2008-2009
घटनाएं:
भाषाई और सांस्कृतिक तनाव कर्नाटक विशेषकर बंगलुरू में उत्तर भारतीयों को स्थानीय भाषा, कन्नड़ न बोलने के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा था. इसके साथ ही स्थानीय राजनीति में उत्तर भारतीयों के खिलाफ नाराजगी और विरोध ने स्थिति को और बिगाड़ दिया था.
हिंसक संघर्ष: इस भेदभाव ने हिंसक संघर्षों को जन्म दिया जिसमें उत्तर भारतीयों को शारीरिक हमलों और संपत्ति के नुकसान का सामना करना पड़ा. मजबूर होकर उन्हें अपने राज्य की तरफ पलायन करना पड़ा था.
3. आंध्र प्रदेश
समय: 2007-2008
घटनाए:
स्थानीय बनाम बाहरी विवाद: आंध्र प्रदेश में उत्तर भारतीयों को स्थानीय संस्कृति और भाषा को लेकर संवेदनशीलता की कमी के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा था. उत्तर भारतीयों द्वारा स्थापित व्यवसाय और रोजगार की प्रतिस्पर्धा ने स्थानीय लोगों की नाराजगी को जन्म दिया था.
सामाजिक भेदभाव: कई उत्तर भारतीयों ने रिपोर्ट किया कि उन्हें समाज में समग्र रूप से स्वीकार्यता प्राप्त करने में कठिनाइयां आईं, खासकर उन स्थानों पर जहां वे अल्पसंख्यक थे.
4. दिल्ली
समय: 2000 के दशक के अंत में
घटनाएं:
स्थानीय बनाम बाहरी लोगों का तनाव: दिल्ली में बाहरी राज्यों से आने वाले लोगों को स्थानीय लोगों से विरोध का सामना करना पड़ा रहा था. यह विरोध विशेष रूप से उस समय उभरा जब बाहरी लोग रोजगार और शिक्षा के लिए दिल्ली में बसने लगे थे. स्थानीय लोगों ने बाहरी लोगों के बढ़ते प्रभाव और उनके द्वारा संसाधनों पर कब्जा करने के आरोप लगाए थे.
5. पश्चिम बंगाल
समय: 2010 के दशक की शुरुआत
घटनाएं:
बंगाली बनाम बाहरी संघर्ष: पश्चिम बंगाल में, विशेष रूप से सिलीगुड़ी और अन्य उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में बाहरी लोगों के खिलाफ विवाद उभरे थे. यहां बाहरी लोग, विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाले लोग, स्थानीय संसाधनों और रोजगार के अवसरों के लिए प्रतिस्पर्धा के कारण विवादित हुए.
6. सिक्किम
समय: 2000 के दशक के मध्य
घटनाएं:
स्थानीय जनसंख्या और बाहरी प्रवासियों के बीच तनाव: सिक्किम में बाहरी प्रवासियों, विशेषकर नेपाली भाषी समुदाय को स्थानीय लोगों के साथ सांस्कृतिक और आर्थिक तनाव का सामना करना पड़ा था. यहां स्थानीय लोगों ने बाहरी प्रवासियों द्वारा संसाधनों के अधिग्रहण और सांस्कृतिक प्रभाव को लेकर असंतोष व्यक्त किया.
और ऐसी तमाम समय और कई घटनाक्रम जिसमें उत्तर भारतीय और बाहरी लोगों को शिकार बनाया गया, लेकिन आखिर क्यों ? अखंड भारत में ये भेदभाव की सोच को जन्म देती विचार धारा के पीछे की वजह क्या है ? इस समस्या की जड़ को खोजते हुए हमने मनोचिकित्सक डा. अर्चना से बातचीत की और जानने का प्रयास किया कि आखिर इस भेदभाव की भावना के पीछे की वजह क्या है ?
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इस सवाल का जवाब देते हुए डा. अर्चना ने बताया कि, ”हमारे देश में जो विविधताएं है उनके प्रति हमारी संवेदन शीलता कम है और यह ऐसा नही है कि उधर ही होता है बल्कि हमारे यूपी बिहार में भी जब कोई साउथ का आता है तो उसे चिढाया जाता है. क्यों हमारे अंदर विविधताओं से प्रति स्वीकृति काफी कम है. साथ ही वे कहती हैं कि, यह इसलिए भी हो रहा है कि क्योंकि हम आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं और अपने – अपने तक ही सीमित होते जा रहे हैं.”
विविधताओं के प्रति कम होती संवेदनशीलता
इसके आगे उन्होंने कहा कि, ”इसका एक मनोवैज्ञानिक कारण यह भी है कि, हम अपने कंफर्ट जोन से बाहर नहीं आना चाहते हैं. हम सोचते है कि जो फैमेलियर है जो हमारे जैसा तो इन ग्रुप फिलिंग होती है. इस बात को उदारहण से समझ सकते हैं कि किसी क्लास में एक समान होने के बाद भी यदि कोई बच्चा अलग है तो दूसरे बच्चें उसे परेशान करते हैं और चिढाते हैं. उन्होंने कहा है कि यह कहीं न कहीं हमारे आत्मकेंद्रित होने की पहचान है और हमारी संवेदनशीलता कही न कही विविधताओं के प्रति कम होती जा रही है.”