क्या है दल- बदल राजनीति, जो कांग्रेस के लिए बनती जा रही अभिशाप?…
देश में लोकसभा चुनाव का माहौल है साथ ही सियासी माहौल भी गर्म है. सत्ता पाने के लिए भाजपा और कांग्रेस एड़ी- चोट का जोर लगाए हुए है. इस बीच देश में एक के बाद एक नेता पार्टी बदल रहे है. इसमें सबसे ऊपर नाम आता है कांग्रेस का. चुनाव से पहले या चुनाव के दौरान ऐसे कई नेता है जिन्होंने अपमानित होने तो किसी ने अंतरात्मा जागने का हवाला दिया और पार्टी का साथ छोड़ दिया.
क्या है दल-बदल
बता दें कि दल-बदल का तात्पर्य शब्द विद्रोह असंतोष और एक व्यक्ति या पार्टी द्वारा की गई बगावत का संकेत करता है. आम तौर पर दल-बदल को एक दल को छोड़कर दुसरे दल में शामिल होने के लिए कहा जाता है. राजनीतिक परिदृश्य में जब एक राजनीतिक दल का सदस्य अपना दल छोड़ कर दूसरे राजनीतिक दल में शामिल होता है तो यह दल-बदल कहा जाता है.
संसद में कब पारित हुआ दल-बदल विरोधी कानून
बता दें कि देश में इमरजेंसी के बाद साल 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दल-बदल विरोधी कानून पारित किया गया. साथ ही संविधान की दसवीं अनुसूची जिसमें दल-बदल विरोधी कानून शामिल है, को संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में जोड़ा गया. इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में दल-बदल के मामलों पर अंकुश लगाना था.
भारत में दल- बदल का इतिहास…
आपको बता दें कि भारत की राजनीति में दल-बदल का इतिहास काफी पुराना है. यहीं कारण है कि भारत में कई बार दल- बदल के चलते राजनीतिक अस्थिरता का दौर देखा गया है. यही एक कारण था कि सरकारें प्रशासन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाए सरकार बचाने पर ज्यादा जोर देती रही हैं. आया राम गया राम का नारा 20 वीं सदी के छठे दशक में विधायकों के लगातार दल-बदल की पृष्ठभूमि में ही बना था.
बता दें कि दल बदल केंद्रीय विधायिका के दिनों से शुरू होता है, जब केंद्रीय विधायिका के एक सदस्य श्याम ने कांग्रेस पार्टी छोड़ कर अपनी निष्ठा ब्रिटिश पक्ष के लिए बदल ली थी. दल- बदल का एक और उदाहरण 1937 का है जब मुस्लिम लीग के टिकट पर उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए हाफिज मोहम्मद इब्राहिम दल बदल कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. 20 वीं सदी के छठे दशक में विचारधारा के बजाए अन्य वजहों से राजनीतिक दल बदलने के मामले तेजी से बढ़े.
कानून में अयोग्य घोषित करने की शक्ति
बता दें कि कानून के अनुसार संसद के अध्यक्ष के पास सांसदों को अयोग्य घोषित करने की शक्ति है. कहा जाता है कि यदि सदन के अध्यक्ष के दल से संबंधित कोई शिकायत प्राप्त होती है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है.
इतिहास में पहली बार हिमाचल में हुआ दल- बदल कानून का इस्तेमाल…
बता दें कि देश में आजादी के बाद पहली बार हिमाचल में दल- बदल कानून का इस्तेमाल किया गया. जहाँ इस कानून के तहत विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया गया. विधानसभा अध्यक्ष ने 6 विधायकों पर कार्यवाही करते हुए कहा कि वे दल- बदल रोधी कानून के तहत अयोग्यता के पात्र है क्यूंकि उन्होंने व्हिप का उल्लंघन किया है.
कांग्रेस के लिए अभिशाप बनती दल- बदल की राजनीति
बता दें कि लोकतंत्र का सबसे बड़ा अपराध दल- बदल को कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने लागू किया था वही कानून अब कांग्रेस के लिए अभिशाप बनता जा रहा है. जबकि भाजपा के लिए वरदान बनता जा रहा है.