काशी के इस मंदिर में दर्शन से केदारनाथ धाम के बराबर मिलता है फल
वाराणसी: काशी को भगवान शिव शंकर की नगरी कहा जाता है. यहां पर कई प्राचीन शिव मंदिर विद्यमान हैं. इसमें से ही एक मंदिर ऐसा भी है जहां के दर्शन करना केदारनाथ धाम के दर्शन करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है. भगवान भोलेनाथ की नगरी वाराणसी में शिवजी का एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे में यह मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शंकर खिचड़ी के रूप में मौजूद है. यह ज्योतिर्लिंग दो भागों में बांटा हुआ है. यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है.
गौरी केदारेश्वर मंदिर में देर रात से ही लगी लाइन
गौरी केदारेश्वर मंदिर में देर रात से दर्शन पूजन के लिए लंबी लाइन लग गई थी. यह मंदिर गंगा तट से सटा हुआ है. इस मंदिर की विशेषता यह है कि जब सूर्य उदय होता है तो सूर्य की पहली किरण मां गंगा को छूते हुए इस मंदिर के शिवलिंग पर पड़ती है. इस मंदिर का ज्योतिर्लिंग दो भागों में बांटा हुआ है. जिसके दर्शन करने के लिए देर रात से ही महिलाएं और पुरुषों का हुजूम उमड़ पड़ा था. बाबा की सप्त ऋषि आरती के बाद से पट दर्शनार्थियों के लिए खोल दिया गया. हर हर महादेव के उद्घोष से मंदिर परिसर गूंजायमान हो रहा था. इस मंदिर में दर्शन करने से ही मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.
केदारेश्वर महादेव मंदिर की विशेषता
काशी को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है. यह नगरी बाबा भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिकी हुई है. यहां बाबा भोले भंडारी विभिन्न रूपों में विराजमान हैं जिसमें सबसे महत्वपूर्ण मंदिर विशेश्वर धाम बाबा का काशी विश्वनाथ मंदिर है. यहां त्रिलोचन महादेव, तिलभंडेश्वर महादेव और केदारनाथ धाम मौजूद है. सभी ज्योतिर्लिंग के अपने विशेष महत्व हैं. ऐसा कहा जाता है कि यह शिवलिंग (स्वयंभू) स्वयं प्रकट हुआ था.
शिवजी खुद आते हैं खिचड़ी खाने
इस मंदिर में पूजा करने का विधि विधान भी और शिव मंदिरों से अलग है. इस गौरी केदारेश्वर मंदिर में पूजा पाठ करने वाले ब्राह्मण बिना सिला हुआ वस्त्र पहनकर ही चार पहर की आरती करते हैं. वहीं इस स्वंभू शिवलिंग पर बेलपत्र, दूध, गंगाजल के साथ ही खिचड़ी की भोग अवश्य लगाया जाता है. एक मान्यता के अनुसार भगवान भोलेनाथ स्वयं यहां पर खिचड़ी का भोग ग्रहण करने आते हैं.
दो भागों में बंटा है शिवलिंग
वाराणसी के इस शिवलिंग की एक नहीं बल्कि अनेको महिमा हैं. यह शिवलिंग आमतौर पर दिखने वाले बाकी शिवलिंग की तरह न होकर दो भागों में बंटा हुआ है. एक भाग में भगवान शिव और माता पार्वती हैं, वहीं दूसरे भाग में भगवान नारायण अपनी अर्धांगिनी माता लक्ष्मी के साथ हैं. जिस कारण यहां पर सावन में दर्शन पूजन से भगवान शंकर माता पार्वती के साथ ही भगवान नारायण और माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है.
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तपस्या से खुश होकर आए गौरी केदारेश्वर
पौराणिक मान्यता के अनुसार ऋषि मांधाता की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं आए थे और मांधाता को दर्शन दिए थे. भगवान शंकर जब मांधाता को दर्शन दिए थे तो उन्होंने कहा था कि चारों युगों में इस ज्योतिर्लिंग के चार रूप होंगे. सतयुग में नवरत्नमय, त्रेता में स्वर्णमय, द्वापर में रजतमय और कलयुग में शिलामय होकर यह शुभ मनोकामनाओं को प्रदान करेगा.