Vinoba Bhave Birthday: गरीब किसानों के मसीहा थे विनोबा भावे, भूमिहीनों में बांट दी थी 44 लाख एकड़ जमीन
अहिंसावादी, समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी, धर्मगुरू के तौर पर जाने जाने वाले आचार्य विनोबा भावे की आज हम जयंती मना रहे हैं. वहीं अफसोस की बात यह है कि काल के गाल में यह सेनानी और उनके द्वारा किए गए कार्यों को लोग भूलते जा रहे हैं. आधुनिक युग के गिने चुने युवा या फिर शायद वो भी नहीं जो विनोबा भावे की महानता और उनके द्वारा किए गए कामों को जानते होंगे.
दूसरी ओर अतीत के इन महान व्यक्तित्व को भूलाया तो जा सकता है, लेकिन कभी मिटाया नहीं जा सकता है, क्योंकि भावे जी ने हमारे देश के अतीत पर वो गहरी छाप छोड़ी है, जिसकी चर्चा देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक भी की गयी थी. साथ में सिर्फ चर्चा ही नहीं बल्कि सराहना भी की गई थी. ऐसे में आज हम उनके द्वारा किए गए भूदान आंदोलन के बारे में आपको बताने जा रहे हैं…
कौन थे आचार्य विनोबा भावे ?
विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के बारे में पढने से पहले जरूरी है कि हम उन्हें जान लें. साल 1895 में 11 सितंबर को महाराष्ट्र के जिला कोलाबा के गांव गागोड में उनका जन्म हुआ था. इनका बचपन का नाम विनायक नरहरि भावे हुआ करता था. इनकी माता का नाम रूक्मिणी देवी औऱ पिता का नाम शम्भू राव था. रूक्मिणी देवी काफी धार्मिक स्वभाव की महिला थीं. उनके ही मार्ग पर अग्रसर होने से ही विनोबा भावे को धर्मगुरू बनने की प्रेरणा मिली थी. बताते हैं कि छात्र जीवन में उन्हें गणित विषय में काफी रूची थी. काफी कम उम्र में उनका रूझान आध्यात्म की ओर हो चला था और फिर उन्होंने सामाजिक जीवन त्याग कर हिमालय पर जाकर संत बनने का फैसला लिया.
उसी दौरान देश में अंग्रेजी शासन के चलते बदहाल होते देश की स्थिति को देखते हुए वे लौट आए और स्वंत्रतता संग्राम में हिस्सा लिया. उन्होंने देश के कोने – कोने की यात्रा करनी शुरू कर दी. इन यात्राओं के दौरान वह क्षेत्रीय भाषा, शास्त्रों एवं संस्कृत का ज्ञान हासिल करते जाते. इस दौरान उन्होंने भूदान आंदोलन शुरू किया जिसकी गूंज विदेशों तक पहुंची थी. भूदान आंदोलन सिर्फ भूमि का वितरण नहीं बल्कि एक प्रक्रिया थी जिसके तहत समाज के हर वर्ग के हितों की रक्षा करना था.
क्या है भूदान आंदोलन ?
बात 1951 की है जब विनोबा भावे आंध्र प्रदेश के हिंसाग्रस्त इलाकों की यात्रा कर रहे थे. उस दौरान वे पोचमपल्ली गांव के दलितों से मुलाकात करने के लिए पहुंचे थे. इस दौरान दलित समाज ने विनोबा भावे से करीब 80 एकड़ भूमि दिलाने का आग्रह किया, ताकि वे लोग इस मुश्किल समय में अपना जीवन यापन कर पाएं. इस आग्रह के बाद आचार्य विनोबा भावे ने गांव के जमींदारों से आगे बढकर अपनी जमीन का छठां हिस्सा दान करने की अपील की ताकि दलितों को बचाया जा सकें. उस समय पर बिना सोशल मीडिया और बिना किसी भी पीआर के विनोबा भावे की वो लोकप्रियता हो गई थी कि उनके आग्रह भर एक जमींदार अपनी भूमि का एक हिस्सा दान करने को तैयार हो गया.
इसके बाद तो यह दौर ही चल पड़ा. इसके साथ ही भारत के त्याग और अहिंसा के इतिहास में एक नया अध्याय शामिल हो गया. यहीं से शुरूआत हुई आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन की जो 13 सालों तक निरंतर जारी रहा. बताते है कि विनोबा भावे ने उस दौरान देश के कई हिस्सों को भ्रमण कर दलितों को करीब 44 लाख एकड़ भूमि दान के रूप में दिलाने का काम किया जिसमें से 13 लाख एकड़ जमीन भूमिहीन किसानों में बांटी गई. विनोबा भावे की इस आंदोलन की न सिर्फ देश बल्कि विश्व भर में अपार प्रशंसा की गई थी औऱ आज भी की जाती है.
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कब और क्यों शुरू किया गया ये आंदोलन ?
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सर्वोदय संकल्प का दूसरा स्वरूप था भूदान आंदोलन. श्रीचारुचंद्र भंडारी की बांग्ला कृति ‘भूदान यज्ञ: के ओ केन’ में इस पूरे संकल्प की विस्तार से चर्चा की गई है. बताते हैं कि भंडारी विनोबा भावे के करीबी लोगों में से एक माने जाते थे. वे लिखते हैं कि 18 अप्रैल 1951 का ही वो दिन था जब उस आंदोलन में पहला भूदान किया गया. इस भूदान की गंगोत्री तेलंगाना के शिवरामपल्ली द्वारा फूटी थी.
शिवरामपल्ली गांधी के परम शिष्य में से एक माने जाते थे. उनका मानना था कि भगवान के दिए हवा, पानी और प्रकाश पर जैसे सबका अधिकार है ऐसे ही भगवान की जमीन पर भी सबका एकाधिकार होता है. अपने इसी सिद्धांत के आधार पर तमाम भूस्वामियों में से शिवरापल्ली ने पहला भूदान किया था. इस आंदोलन का उद्देश्य भूमिहीनों को आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली बनाना था, ताकि वे अपने पांव पर खड़े हो सकें.